मुंबई में पहली शरई अदालत का क़ियाम

मुंबई, 01 मई: अरूसुलबिलाद मुंबई में 1992-93 ‍फ़िर्कावाराना फ़सादाद के बाद इस शहर को फ़िर्क़ा परस्तों का शहर कहा जाने लगा था जहां मुसलमानों का कोई हमदर्द‌ नहीं है, लेकिन ये सोच सिर्फ़ कुछ मख़सूस ज़हनों की थी। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड (AIMPLB) के जनरल सेक्रेटरी सय्यद मुहम्मद वली रहमानी ने यहां के मशहूर रेलवे स्टेशन सी एस टी (साबिक़ वी टी) के रूबरू अंजुमन इस्लाम कैंप्स में मुंबई की पहली शरई अदालत या दारुलक़ज़ा का इफ़्तिताह किया।

दारुलक़ज़ा बीलासस रोड मस्जिद से मुत्तसिल इमारत केडी शॉपिंग सैंटर मौक़ूआ नागपाड़ा से अपनी सरगर्मियां अंजाम देगी जहां तजरबेकार और हमदर्द क़ाज़ियों और मुफ़्तियों की ख़िदमात सुबह 9 ता दोपहर एक बजे तक दस्तियाब रहेंगी जबकि रजिस्ट्रेशन का आग़ाज़ 30 अप्रैल से हो चुका है। इफ़्तिताह अंजाम देते हुए जनाब सय्यद मुहम्मद वली रहमानी ने कहा कि दारुलक़ज़ा की सियोल अदालतों से कोई मुसबिक़त नहीं है बल्कि इस का मक़सद सियोल अदालतों के बोझ को कम करना है।

उन्होंने कहा कि आम तौर पर ये ज़हनियत पाई जाती है कि शरई अदालतें दरअसल सियोल अदालतों के लिए एक चैलेंज है, लेकिन हक़ीक़तन ऐसा नहीं है बल्कि इस के बरअक्स शरई अदालत के ज़रिये सियोल अदालतों के बोझ को कम किया जाएगा। सियोल अदालतों में हज़ारों मामले ज़ेरे अलतवा हैं जहां जज्स भी शबाना रोज़ ज़ाइद ज़िम्मेदारियां निभाने पर मजबूर हैं। याद रहे कि मुल्क के दीगर शहरों जैसे हैदराबाद, पटना और मालेगांव में भी शरई अदालतें काम कर रही हैं।

शरई अदालतों में क़ाज़ियों की तक़र्रुरी पर्सनल ला बोर्ड करता है जहां मुसलमानों के मसाइल (फ़ौजदारी मामलों के सिवा) की समाअत की जाती है और मुनासिब फ़ैसले सुनाए जाते हैं। शादीशुदा ज़िंदगी में पैदा हुए मसाइल और सियोल मामलों में शरई अदालत सालसी के फ़राइज़ अंजाम देगी। फ़ौजदारी के मामले या फिर ऐसे दीगर मामले जिस में किसी फ़रीक़ ने पहले ही अदालत से रुजू कर लिया हो, ऐसे मामलों की समाअत नहीं की जाएगी।