मुजफ्फरनगर दंगा: चारों तरफ सिर्फ मौत ही मौत

आठ सितंबर की शाम गली के कोने पर कुछ लोग जमा होना शुरू हो गए। शाम करीब साढ़े सात बजे अंधेरा होने पर हाथों में फावड़े, फरसे, लाठी डंडे व तमंचे लिए 35-40 लोगों ने मेरे घर पर हमला बोल दिया। कुछ अनासिर घर की छत पर पहुंच गए, तो कुछ गेट तोड़ने लगे। घर के सभी लोग सहमे-डरे एक कमरे में छुप गए।

चारों तरफ सिर्फ मौत ही मौत दिखाई दे रही थी। दरवाजा न खोलने पर अनासिरो ने घर में आग लगा दी। बाहर निकलने पर अनासिरो ने हमला बोल दिया। दादा वहीद, चचा ताहिर व मां रहीसा पर हथियारों से ताबड़तोड़ वार किए और उन्हें जिंदा जला दिया। तभी पुलिस के आने से सभी अनासिर मौके से भाग गए।

यह कहना था लोनी के आबिद का जो पनाह लेने के लिए मदरसे (राशिद अली गेट मदरसे ) में आए बकौल आबिद खानदान में कुल 35 मेम्बर थे। बहन की शादी के लिए इकट्ठा किया गया सारा सामान भी जल गया। मेरे खानदान के लोगों ने किसी का क्या बिगाड़ा था। इतना कहने के बाद उसकी आंखों से आंसू निकल गए। भूखे मरने की नौबत आ गई। हर दिन मौत से सामना होता था। किसी तरह जान बचाकर अपने घर वालों को लेकर लोनी में पनाह ली।

शामली गांव के साकिन यूसुफ ने बताया कि किसी तरह वहां से अपने खानदान को बचाकर लोनी में पनाह लेने आ सका हूं। दस दिन की की मासूम बच्ची को लेकर लोनी के राशिद अली गेट मदरसे में पहुंची शमा ने भी अपनी दुख भरी दास्तान सुनाई। बकौल शमा दंगे ने मेरे शौहर ताहिर को मुझसे छीन लिया। दो दिन तक खाना भी नसीब नहीं हुआ। नौमुलूद बच्ची को लेकर दर-दर की ठोकरे खाने के बाद जुमेरात को लोनी में आई तो राहत मिली। लेकिन शौहर को याद कर शमा रोने लगती है।

—————बशुक्रिया: अमर उजाला