पहले दंगों ने घर छीना और जगह-जगह धक्के खाने के लिए मजबूर कर दिया फिर जब परिवार में औलाद का आना हुआ तो उसे भी पैदा होते ही सड़क नसीब हुई। हमारे लिए ही ज़िन्दगी इतनी बेरुखी क्यों है??
यह कहना है मुज़फ्फरनगर दंगा पीड़ित नाजिया (काल्पनिक नाम) का जिसने 2013 के दंगों में अपना घर, गाँव और सुकून सब खो दिया। दंगों के करीब तीन साल बाद भी बेरुख ज़िन्दगी ने नाजिया का साथ नहीं छोड़ा, हद तो तब हो गई जब पेट से होने पर नाजिया कांधला के सरकारी प्राइमरी हेल्थ सेंटर में बच्चे को जन्म देने पहुंची तो डॉकटरों ने उसे हॉस्पिटल में दाखिल करने से यह कहकर मना कर दिया कि “अभी वक़्त नहीं आया है तीन दिन बाद आना” लेकिन दर्द से परेशान नाजिया ने घर लौटते वक़्त सड़क पर ही एक बच्चे को जन्म दे दिया।
बच्चे के पैदा होने के बाद हॉस्पिटल मदद लेने पहुंचे बच्चा-जच्चा को आनन-फानन में जिला शामली के एक हॉस्पिटल में रेफर कर दिया गया।