मुझे किस बात ने कुबूल इस्लाम पर आमादा किया?

प्रोफ़ेसर आर्थर एलीसन लंदन यूनीवर्सिटी में इलेक्ट्रॉनिक इंजीनीयरिंग शोबा के सरबराह हैं। वो कई बरस तक बर्तानिया की सोसायटी बराए नफ़सियाती-ओ-रुहानी मुताला के सदर रहे। मज़हब के मुताला के दौरान उन्हें इस्लाम से वाक़फ़ीयत हुई। उन्होंने इस्लाम का दीगर मज़ाहिब-ओ-अक़ाइद से मुवाज़ना किया तो मालूम हुआ कि ये उनकी कलबी फ़ित्रत के ऐन मुताबिक़ और उनकी तमाम ज़रूरीयात पूरी कर सकता है।

क़ाहिरा में मुनाक़िदा क़ुरआन की बेमिसाल तिब्बी हैसियत कान्फ्रेंस से ख़िताब की उन्हें दावत दी गई तो उन्होंने अपने मक़ाला बउनवान नफ़सियाती और रुहानी तरीक़ा-ए-इलाज, क़ुरआन-ए-करीम की रोशनी में पेश किया। इस कान्फ्रेंस में जो हक़ायक़ पेश किए गए, उनसे प्रोफेसर साहब की आँखें खुल गईं।

हफ़तरोज़ा अल मुस्लीमीन लंदन को दिए गए इंटरव्यू में उन्होंने अपने क़ुबूल इस्लाम की दास्तान बयान करते हुए कहा कि बर्तानिया की सोसायटी बराए नफ़सियाती-ओ-रुहानी मुताला के सदर की हैसियत से नफ़सियात और मुताल्लिक़ा मज़ामीन के मुताला के दौरान मुझे मज़ाहिब से वाक़फ़ीयत हासिल हुई।

मैंने हिंदू मत, बुध मत और कुछ दीगर मज़ाहिब का मुताला किया। जब मैंने इस्लाम का मुताला किया तो दीगर मज़ाहिब से इसका मुवाज़ना किया।

प्रोफेसर साहब का कहना है कि जब उन्होंने क़ुरआन‍ ओ‍ सुन्न्तत में मौजूद ऐसे हक़ायक़ सुने, जिनसे ऐसी मख़लूक़ात का पता चलता है, जिनकी तसदीक़ साईंस ने भी कर दी है, तो उन्हें ये एहसास हुआ कि क़ुरान-ए-पाक किसी भी सूरत में इंसानी इख़तिरा नहीं है, बल्कि चौदह सौ साल क़बल जो बातें हुज़ूर नबी ( स०अ०व०) पर नाज़िल हुईं, उनसे ये साबित होता है कि आप ( स०अ०व०) अल्लाह के रसूल हैं।

मौसूफ़ कहते हैं कि इसी बिना पर में कलिमा शहादत पढ़ कर मुसलमान हो गया और अपना नाम उबैद उल्लाह एलीसन रखा।

उन्होंने मग़रिब में इस्लाम की दावत के लिए साईंसी हक़ायक़ के हवाले से बात करने की ज़रूरत पर ज़ोर देते हुए कहा कि यही मुनासिब तरीन तरीक़ा है।

मग़रिब में हुसूल-ए-इल्म का तरीक़ा ये तास्सुर पैदा करता है कि इंसान एक महिदूद तादाद में ख़लयात का मजमूआ है और कायनात दिखाया और सुनाई देने वाली चीज़ों का मजमूआ है। जब कभी इंसान कोई चीज़ दरयाफ्त करता है तो उसे अपनी कम इल्मी का पहले ज़्यादा एहसास होता है। जब हम नफ़सियात और इस से मुताल्लिक़ा मज़ामीन पर ग़ौर करें तो ये हक़ीक़त मज़ीद वाज़िह हो जाती है।

फ़ाज़िल प्रोफेसर ने ये भी इन्किशाफ़ ( ज़ाहिर) किया कि वो क़ुरआन-ओ-हदीस की तालीम की रोशनी में मुताला नफ़सियात का एक इदारा लंदन में क़ायम करना चाहते हैं, ताकि वो क़ुरआन हकीम में मौजूद साईंसी हक़ायक़ मग़रिबी दुनिया को बता सके।

इस इदारा में अंग्रेज़ी और अरबी किताबों की एक लाइब्रेरी क़ुरआन-ए-करीम की रोशनी में साईंसी रिसर्च की तजुर्बा गाहों के इलावा होगी।