मुझे मुजरिम बनाने में लालू का हाथ: पप्पू यादव

पटना: राजद चीफ लालू यादव के बेहद करीबी माने जाने वाले पप्पू यादव ने पार्टी से निकाले जाने के बाद नई पार्टी बनाने का ऐलान कर दिया है. इस पार्टी का नाम जन अधिकार मोर्चा होगा. पप्पू ने लालू पर तीखा हमला भी बोला है.

पप्पू यादव ने इल्ज़ाम लगाया कि उन्हें मुज़रिम के तौर पर बदनाम करने में लालू यादव का हाथ है. पप्पू ने कहा कि, ”लालू अपने मुताबिक मुझे इस्तेमाल करते रहे. जब जरूरत हुई, तो इस्तेमाल किया और बाद में मुझे बाहर निकाल दिया.”

पप्पू ने कहा, ”मैं तो एक सीधा-साधा स्टूडेंट था. लालू का मद्दाह था और लालू को अपना मिशाली (Ideal) मानता था, लेकिन लालू मेरे साथ हमेशा छल करते गए. मेरे जज़्बातों से खेलते रहे. मुझे बिना जुर्म किए ही कुर्सी का नाजायज फायदा उठाते हुए बदनाम और दबंग बना दिया.

पप्पू ने कहा कि ”बात 1986- 87 की है. लालू मुखालिफ पार्टी के लीडर बनना चाहते थे. इस दौड़ में अनूप लाल यादव, मुंशी लाल और सूर्य नारायण भी शामिल थे. मैं अनूप लाल यादव के घर में ही रहता था, इसके बावजूद मैं लालू की ताईद कर रहा था.

लालू उस वक्त समाजवाद की बात कर रहे थे. डॉ रवि भी लालू को मुखालिफ पार्टी का लीडर बनाना चाहते थे. इनके कहने पर ही मैंने नवल किशोर से बात कर लालू के लिए जमीन तैयार किया. लालू के लीडर मुखालिफ पार्टी बनने के अगले ही दिन पटना के सभी अखबारों में एक खबर शाय हुई “कांग्रेस लीडर शिवचंद्र झा का क़त्ल करने के लिए पूर्णिया से एक बदनाम मुजरिम पप्पू यादव पटना पहुंचा.”

पप्पू ने आगे बताया, ”मैं इस सब से बेखबर होकर अनूप लाल के घर के बाहर चाय पी रहा था. सुबह के छह बजे थे, हमारे एक दोस्त नवल किशोर आए और अपनी स्कूटर पर बैठाकर हमें लेकर पटना युनिवर्सिटी के पीजी हॉस्टल पहुंचे.यहां पर मुझे मालूम कि मैं तो बदनाम मुजरिम हूं. मैं एक ऐसा बदनाम मुजरिम था, जिसके खिलाफ तब तक किसी थाने में कोई मामला तक नहीं दर्ज था. मैं तीन दिनों तक अपने एक दोस्त गोपाल के कमरे में रहा.

फिर वहां से मैं कोलकता गया. पुलिस मेरे पीछे पड़ गई. मेरे घर की कुर्की हो गयी. वालिदैन को सड़क पर रात गुजारनी पड़ी. मेरे वालिद लालू प्रसाद से मिले. मेरी रिहाई और इंसाफ के लिए गुहार लगाई, लेकिन लालू ने मेरी मदद करने से इनकार कर दिया. मेरे ऊपर मीसा लगा दिया गया. भागलपुर जेल में हमें नजरबंद कर दिया गया.”

पप्पू ने आगे बताया कि, मीसा से मैं जब 9 माह बाद निकला तो मैं लालू से मिलने उनके रिहायशगाह पर गया. लालू से अपने लिए टिकट मांगा. लेकिन लालू ने हमें टिकट नहीं दिया, तो हम आज़ाद इंतेखाबात लड़े और जीत गए. इलेक्शन के बाद लालू अपनी हुकूमत बनाने के लिए जब कोशिश कर रहे थे तो फिर लालू ने हमारी मदद ली.

मैंने अपने साथ दिगर चार आज़ाद एमएलए का लालू की ताईद दिलवायी. लालू वज़ीर ए आला बन गए, लेकिन फिर 1991 लोकसभा के इलेक्शन में मैंने लोकसभा का इलेक्शन लड़ने के लिए पार्टी से टिकट मांगा तो हमें नहीं दिया गया. मैंने हार नहीं मानी और पूर्णिया से आज़ाद इंतेखाबात लड़ा और जीत गया. लालू इससे खुश नहीं हुए.

पप्पू ने बताया, ”मधेपुरा में जब लोकसभा का जिम्नी इंतेखाबात हुआ तो लालू नहीं चाहते थे कि शरद यहां से चुनाव जीते, लेकिन मैंने शरद की ताईद की . शरद के इंतेखाबी इजलास में हम और लालू एक साथ बैठे. यहीं पर ही यह खबर मिली कि पूर्णिया में दंगा हो गया है. आनंद मोहन पर हमला हो गया है. मैं सीएम लालू प्रसाद के साथ था, लेकिन इस सब का मुजरिम मुझे बनाया गया. पुलिस ने मेरा घर घेर लिया.

मेरे लोग जब लालू से मिलने गए तो उन्होंने कहा कि आप क्या चाहते हैं कि लालू मुजरिम पप्पू की हिमायत लेकर बदनाम हो जाए. हम ऐसा नहीं करेंगे. खैर, तब लोगों के एहतिजाज के सबब पुलिस मुझे गिरफ्तारी नहीं कर सकी. इसी तरह अजीत सरकार का क़त्ल हुआ , लालू के कहने पर पुलिस ने मुझे मुजरिम बना दिया.

पटना में दंगा हुआ और मुजरिम पप्पू बने. रियासत में कोई बड़ा क़त्ल हुआ मुजरिम पप्पू बनता चल गया.”

पप्पू ने बताया कि, ”बेऊर से हमें तिहाड़ भेज दिया गया. यह सब लालू के कहने पर और उनकी हुकूमत के दौर में हुआ. फिर भी मैंने उनका साथ नहीं छोड़ा. लालू अपने मुताबिक मुझे इस्तेमाल करते रहे. जब जरूरत पड़ी हम मंडल के मसीहा हो गए और जब उनका काम पूरा हो गया मुझे बाहर निकाल दिया.

पप्पू कहते हैं कि हम लालू की नज़र में कब मसीहा और कब बदनाम मुजरिम बन गए हमें भी मालूम नहीं चला. खैर, अब दोनों के रास्ते अलग-अलग हो गए हैं. इंतेखाबात के मैदान में ही अब सब तय होगा.