मुता निकाह है नाजायज, मिस्यार का इस्लाम में कोई वजूद नहीं, कोर्ट पहुंचा मामला

दरउसल मुसलमानों में निकाह, हलाला और बहुविवाह के बाद अब सुन्नी मुसलमानों में चल रहे मिस्यार निकाह को लेकर हैदराबाद के मोलिम मोहसिन बिन हुसैन ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर मिस्यार निकाह को अवैध और रद्द करने की मांग की है। देवबंदी उलेमाओं ने भी समर्थन करते हुए कहा कि ये इस्लाम में हराम है। उन्होंने कहा की एक अवधि के बाद यह सोचा जाता है कि इसमें तलाक दे दिया जाएगा और हम इसे छोड़ देंगे।

देवबंदी उलेमाओं ने कहा कि तलाक देने की वजह से हमारे नबी ने इसे पसंद नहीं फरमाया है। उन्होंने कहा कि इसमें इसलिए शादी कर रहे हैं कि कुछ दिन के बाद तलाक दे देंगे तो इसे हमारे नबी ने नापसंद फरमाया है। हमारे नबी जिस चीज को नापसंद फरमाया है वह इस्लाम के अंदर कतई जायज नहीं हो सकता।

आपको बता दें कि शनिवार को अधिवक्ता अश्वनी उपाध्याय द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दाखिल जनहित याचिका में मुता व मिस्यार निकाह समेत निकाह, हलाला और बहुविवाह को रद्द करने की मांग की गई थी। देवबंदी उलेमा मुफ्ती अजहर ने कहा कि पुराने समय में अरब मुल्कों में निश्चित अवधि का करार कर निकाह कर लिया जाता था। अधिकांश जंग लड़ने वाले लोग ऐसा करते थे। वह जहां जंग लड़ने जाते थे, वहां निश्चित अवधि के लिए निकाह कर लेते थे। बाद में हजरत मोहम्मद साहब ने इसे हराम करार दिया। मिस्यार निकाह का इस्लाम में कोई वजूद नहीं है। जबकि बहुविवाह कुछ शर्तों के साथ जायज है।