मुनश्शियात की आदत पर दिमाग़ का ग़ैरमामूली पन मुम्किन

लंदन, ०५ फ़रवरी (एजैंसीज़) कैंब्रिज यूनीवर्सिटी के साईंसदानों के मुताबिक़ बाज़ लोगों के दिमाग़ में ख़राबी की वजह से उन के मुनश्शियात का आदी बनने का ख़दशा ज़्यादा होता है। साईंसदानों का ये भी कहना है कि नशे के आदी अफ़राद के ऐसे भाई, बहन जो मुनश्शियात से दूर ही रहे इन का दिमाग़ भी इतना ही ग़ैरमामूली था।

बाज़ माहिरीन समझते हैं कि नशे का शिकार ना होने वाले भाई, बहन उम्मीद की एक किरण हो सकते हैं क्योंकि इनका मुताला करके ये मालूम किया जा सकता कि उन्होंने ख़ुद को नशे से दूर रखा। ये मुताला जरीदा साईंस में छिपा है और इसके मुताबिक़ दिमाग़ का ग़ैरमामूली पन नशे का आदी होने की एक वजह हो सकती है।

अब तक ये तो तस्लीम किया जाता रहा है कि नशे के आदी लोगों का दिमाग़ बाक़ी लोगों के दिमाग़ से अलग होता है मगर माहिरीन ये तय नहीं कर पा रहे थे कि दिमाग़ में ख़राबी नशे की वजह से होती है या फिर नशे के आदी लोगों का दिमाग़ पहले से ही ग़ैरमामूली होता है।

इसी सवाल का जवाब तलाश करने के लिए मुनश्शियात का इस्तिमाल करने वाले 50 लोगों के दिमाग़ का तक़ाबुली मुताला उन के ऐसे भाई, बहनों से किया गया जिन्होंने कभी नशा नहीं किया। नताइज के मुताबिक़ नशे के आदी लोगों और नशा ना करने वाले उन के भाई, बहनों के तर्ज़-ए-अमल को कंट्रोल करने वाले दिमाग़ के हिस्से एक जैसे ही ग़ैरमामूली थे।

इन नताइज के बाद साईंसदानों का ख़्याल है कि नशे के आदी लोगों का दिमाग़ पहले से ही ग़ैरमामूली था। मुताला करनेवाली टीम के सरबराह मुहक़्क़िक़ डाक्टर केरन अर्श ने कहा, ये काफ़ी पहले से पता था कि हर शख़्स जो नशा करता है वो इस का आदी नहीं हो जाता मगर ये जायज़ा बताता है कि नशे का आदी होने की वजह सिर्फ तर्ज़-ए-ज़िदंगी ही नहीं बल्कि ये ग़ैरमामूली दिमाग़ की वजह से भी होता है और हमें ये मानना होगा।