मुफ्त राशन पाने के लिए भारी कीमत चुकाने पर मजबूर हैं यह आदिवासी परिवार।

झारखंड: आप इसे झारखंड सरकार की नाकामी कहें या वहां के रहने वाले आदिवासी परिवारों की बदकिस्मती, लेकिन सच बात तो यही है कि झारखंड में रहने वाले आदिवासी समुदायों को अपने परिवार का पेट भरने के लिए अच्छी कीमत चुकानी पड़ रही है। यह परेशानी भरी दास्ताँ है झारखंड में खत्म होने की कागार पर पहुंचे एक आदिवासी कबीले ‘ सोरिया पहारिया ‘ की।

हालाँकि सरकार की नीतियों के मुताबिक इन परिवारों को मुफ्त राशन मुहैया करवाने का हुक्म जारी है लेकिन फिर भी इन गरीबों को अपना महीने का राशन लेने के लिए पहले से ही खाली जेब में से 300 रूपये खर्च करने पड़ते हैं।

दरअसल इन आदिवासियों की ज़िन्दगी आसान बनाने के लिए सरकार ने इन्हें मुफ्त राशन इनके घर तक पहुंचाने की नीति बनायीं है और सरकार का दावा है कि उन्होंने हर इलाके के लोगों की सहूलियत के लिए उनके कस्बों में ही डिस्ट्रीब्यूशन कैंप लगाए हैं। लेकिन दावा कुछ भी हो हक़ीक़त तो यही है कि झारखण्ड के २ दूर दराज इलाके में बसे गाँव बहेरवा और अन्द्रोवेदो के लोगों के लिए बनाये गए इन डिस्ट्रीब्यूशन सेंटरों की दूरी इन गावों से 6o-70 किलोमीटर है। जिसकी वजह से महीने का राशन लेने आने वाले इन परिवारों को अपने राशन की ढुलाई के लिए तो पैसे खर्च करने पड़ते ही हैं साथ के साथ ही उनको मनरेगा योजना के तहत मिले काम से भी दिन भर की छुट्टी लेनी पड़ती है। 162 रूपये दिहाड़ी पर काम करने वाले इन मेहनतकश परिवारों का पैसा इस तरह से बर्बाद होने से इन परिवारों की परेशानियां और भी बढ़ जाती हैं। ३०० रूपये हर महीने के हिसाब से साल में 3600 रूपये की रकम सिर्फ अनाज ढोने पर खर्च करना इन लोगों के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है।

ऐसे में सरकार के अधिकारी अपनी चलायी हुई इन स्कीमों की खामियों से बेखबर बेफिक्री की नींद ले रहे हैं। इस परेशानी को जब फ़ूड एंड पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन के सेक्रेटरी, विनय चौबे के सामने रखा गया तो इस पर जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि वह इन खामियों पर ध्यान में रखते हुए बूथ सिस्टम से अनाज बंटवाने का काम जल्द ही शुरू करवाएंगे।