मुलाजमीन के साथ हुस्ने सुलूक

हजरत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ी अल्लाहु तआला अनहु से रिवायत है, रसूल-ए-पाक (स०)से एक शख्स ने दरयाफ्त किया,
में अपने मुलाजिम की ख़ताओं को कहाँ तक माफ़ करूं?। आप स०)ने फ़रमाया “हर दिन में सत्तर बार”। (अबू दाऊद)