नई दिल्ली, 05 मार्च: जिया उल हक के कत्ल ने उत्तर प्रदेश की सियासत में हलचल मचा दी है। अखिलेश हुकूमत के महज 11 महीने के मुद्दत में 11 फिर्कावाराना दंगे और अब एक आला पुलिस आफीसर की मौत से समाजवादी पार्टी की अंदरूनी सियासत गर्मा गई है।
राजा भैया का इस्तीफा लेकर हुकूमत ने अपनी साख और सपा ने सियासी नुकसान से बचने की कोशिश की है लेकिन जामा मस्जिद के इमाम अहमद बुखारी की सरगर्मी ने रियासत में नए सयासी समीकरणों के इशारे जरूर दे दिए हैं।
वहीं, राजा भैया के हामियों को भी इस मामले में हुकूमत का रुख रास नहीं आ रहा है। पीर के दिन लखनऊ में असेंबली से लेकर राजा के घर तक कई पार्टी के एम एल ए उनसे मिलते-जुलते रहे।
बताया जा रहा है कि एतवार के दिन जियाउल हक के क़त्ल में नाम आने के बाद सपा चीफ मुलायम सिंह यादव और राजा भैया के बीच फोन पर बातचीत हुई। बातचीत में विधानमंडल सेशन अपोजिशन के हमले से हुकूमत को बचाने के तरीके पर गौर हुआ, उसी के तहत राजा भैया के इस्तीफे का फैसला हुआ।
राजा भैया ने वज़ीर ए आला अखिलेश यादव को पीर के दिन विधानमंडल सेशन के पहले ही इस्तीफा सौंप दिया। अखिलेश ने इसे खुद जाकर गवर्नर बीएल जोशी को सौंपा। बाद में वही हुआ, जिसकी उम्मीद थी। अपोजीशन के हमले से बचने के लिए बचने के लिए हुकूमत ने इसे ढाल के तौर पर इस्तेमाल किया।
बसपा, बीजेपी और कांग्रेस ने पार्लियामेंट में मामला उठाया तो हुकूमत ने दलील दिया कि वज़ीर ने इस्तीफा दे दिया है और आफीसरों को तेजी से जांच व कार्रवाई की हिदायत दे दिए गए हैं।
मौलाना अहमद बुखारी ने फील्ड आफीसर जिया उल हक के कत्ल पर जिस तरह के तल्ख तेवर अपनाए, उसके चलते सपा के पालिसी साज़ों को यह खदशा भी हो रहा है कि यह मामला न केवल हुकूमत की इमेज पर असर डालेगा बल्कि उन्हें सयासी तौर पर भी नुकसान पहुंचा सकता है।
राजा भैया का इस्तीफा और कत्ल की सीबीआई जांच का ऐलान भी इसी सियासी दबाव का नतीजा हो सकती है।