मुल्क की एक ही मांग, रेपिस्ट को फांसी दो

नई दिल्ली, 29 दिसंबर: दिल्ली गैंगरेप की मुतास्सिरा की मौत के बाद अब मुल्क का हर शख्स यही जानना चाहता है कि मुल्क में ख्वातीन कितनी महफूज़ हैं? क्या ख्वातीनों के लिए घर से निकलना जुर्म है ? ऐसे कई सारे सवाल हैं जिस पर हुकूमत बेबस नजर आ रही है।

रटे-रटाये बयानों के अलावा लोगों को कुछ होता हुआ नहीं दिख रहा है। वज़ीर ए आज़म समेत सभी लोग मुतास्सिरा की मौत से गमजदा हैं और इस्मत रेज़ि करने वालो को कड़ी से कड़ी सजा देने की बात कहते हैं। लेकिन सवाल यह है कि ख्वातीनों में सेक्योरिटी के जज़्बा कैसे पैदा की जाएगी?

भले ही हुकूमत कह रही हो कि मुल्ज़िमों को बख्‍शा नहीं जाएगा लेकिन जिसकी मौत हो गई है, वह तो वापस नहीं आएगी। अब बस लोगों की एक ही मांग है कि जितना जल्द हो सके ऐसे मुल्ज़िमों को फांसी के फंदे पर लटका दिया जाए।

इस मामले में ईरान में इस्मत रेज़ि के खिलाफ लिए गए कड़े फैसले को मीसाल के तौर पर पेश किया जा सकता है। अब यह सवाल उठता है कि ईरान और दिगर इस्लामिक मुल्को में ख्वातीनो में तहफ्फुज़ के जज़्बा पैदा करने के लिए इस्म्त रेज़ि जैसे घिनौने जुर्म के लिए सरेआम फांसी दी जा सकती है। तो ऐसे में क्या हिंदुस्तान में कानून में बदलाव कर इस्मत रेज़ि करने वालों के खिलाफ फांसी देने का कानून बनाया जा सकता है?

वाजेह है कि ईरान के जुनूबी मशरिकी शहर यासोउज में 48 घंटे पहले इस्मत रेज़ि के पांच कसूरवारों को एक पार्क में सरेआम फांसी दी गई। पांचों में से चार ने एक खातून को उसके मंगेतर के पास से उठा लिया और उसके साथ आबरू रेज़ी किया। वहीं पांचवां शख्स एक दूसरी खातून के साथ आबरू रेज़ि करने का मुल्ज़िम ठहराया गया था।

सबसे अहम बात यह है कि सजा-ए-मौत पाने वाले सभी गुनाहगारों की उम्र 30 साल के आसपास है। वैसे भी ईरान के कानून में मुनश्शियात की तस्करी, कत्ल, आबरू रेज़ि और डकैती के मुल्ज़िमों को पत्थर मार कर मौत की सजा देने का कानून है।