मुल्क को इंसाफ का इंतेजार

नई दिल्ली, 13 दिसंबर: पार्लीमेंट पर हमले के 11 साल पूरे हो गए। 13 दिसंबर, 2001 को दिन में करीब 11:45 मिनट पर मुल्क के पार्लीमेंट हाउस पर दहशतगर्दों ने गोलीबारी शुरू कर दी थी। पार्लीमेंट पर हुए हमले की खबर ने सबको हैरान ही नहीं बल्कि हिलाकर रख दिया था।

दहशतगर्दों के इस हमले का सेक्योरिटी फोर्स ने बहादुरी से मुकाबला करते हुए सभी दहशतगर्दों को मार गिराया था। इस हमले में हैंड ग्रेनेड और ए के-47 से लैस पांच दहशतगर्द शामिल थे। जमहूरियत पर हुए इस सबसे बड़े हमले में दिल्ली पुलिस के पांच जवान, सीआरपीएफ की एक खातून कांस्टेबल, संसद के दो गार्ड, संसद में काम कर रहा एक माली और एक सहाफी शहीद हो गए थे।

जिस वक्त ये हमला हुआ था, संसद में कई सीनीयर मंत्री समेत तकरीबन दो सौ संसद सदस्य मौजूद थे। इसे एक तरह से पार्लीमेंट पर नहीं, बल्की मुल्क की आज़ादी पर भी हमला कहा जा सकता है।

गौरतलब है कि 13 दिसंबर 2001 को पार्लीमेंट पर हमले की साजिश करने के इल्ज़ाम में सुप्रीम कोर्ट ने 4 अगस्त 2005 को अफजल गुरु को फांसी की सजा सुनाई थी और कहा था कि 20 अक्टूबर 2006 को अफजल को फांसी के तख्ते पर लटका दिया जाए। लेकिन इसके ठीक पहले तीन अक्टूबर 2006 को अफजल की बीवी तब्बसुम ने सदर जमहूरीया यानी राष्ट्रपति के पास रहम की दर्खास्त दाखिल कर दी।

आज छह साल के बाद भी इस पर कोई फैसला नहीं लिया जा सका है। सदर जमहूरीया ने इस दर्खास्त पर वज़ारत ए दाखिला से राय मांगी। वज़ारत ने इसे दिल्ली हुकूमत को भेज दिया, जहां दिल्ली हुकूमत ने इसे खारिज करके वज़ारत ए दाखिला को भेजा। वज़ारत ए दाखिला (गृहमंत्रालय) ने भी रहम की दर्खास्तपर फैसला लेने में काफी वक्त लगाया। अब आखिरी फैसला सदर जमहूरीया को लेना है।

अफजल गुरु को फांसी मिलने में हो रही देरी से नाराज शहीदों के घर वालो का न तो दर्द कम हुआ है न ही उनके घर वालो की हुकूमत ने सही तरह से तवज्जो दी है। नाराज शहीदों के घर वालों ने बहादुरी के तमगे भी लौटा दिए। बावजूद इंसाफ पाने का उनका इंतजार अब तक खत्म नहीं हुआ है। सभी को आज भी इंसाफ का इंतजार है।

13 दिसंबर को पार्लीमेंट हमले की बरसी पर पूरा हिंदुस्तान उन शहीदों को याद कर रहा है, जिन्होंने अपने मुल्क की हिफाज़त के लिए अपनी जान की कुर्बानी दे दी।