महंगाई ने आम आदमी का जीना चाहे कितना भी मुश्किल कर दिया हो लेकिन हुकूमत की नजर में गरीबों की तादाद में तेजी से कमी आ रही है। हुकूमत का कहना है कि मुल्क में गरीबों की तादाद 37.2 फीसद से घटकर 21.9 फीसद रह गई है।
फायनेंस मिनिस्टर अरूण जेटली की तरफ से पार्लियामेंट में पेश पहलेअहम इक्तेसादी दस्तावेज में कहा गया है कि मुल्क में गरीबो की तादाद 2004-05 के 40.71 करोड यानी 37.2 फीसद के मुकाबले में 2011-12 में 26.93 करोड यानि 21.9 फीसद रह गई है।
इक्तेसादी सर्वे में 2011-12 में देही इलाके में 816 रूपए महीना खर्च करने वाले और शहरी इलाको में एक हजार रूपए महीना खर्च करने वाले को गरीब माना गया है। इससे ऊपर खर्च करने वाले गरीबी की लकीर से ऊपर के जुमरे में हैं।
सर्वे में नौजवान को टार्गेट बनाकर उनके लिए तरक्कियाती पालीसीयां बनाने और उन्हें ऐक्टिव करने पर जोर दिया गया है। मुल्क में नौजवानो की तादाद 2001 में कुल आबादी का 58 फीसद थी जिसके साल 2021 तक 64 फीसद के पार पहुंचने की उम्मीद है। हुकूमत का कहना है कि आबादी को सेहतमंद , तालीम याफ्ता और महारत बनाने के लिए वक्त पर मज़कूरा पालिसीयां बनानी होंगी।
सर्वे में मरकज़ और रियासती हुकूमतों की तरफ से सामाजी खिदमात पर कुल खर्च साल 2008-09 के 23.8 फीसद से बढकर साल 2013-14 में 25.2 फीसद पहुंच गया।
साल 2008-09 में यह जीडीपी का 6.8 फीसद था जो मार्च में खत्म इक्तेसादी साल में बढकर 7.2 फीसद पर आ गया। इसी तरह से तालीम पर खर्च भी साल 2008-09 के 2.9 फीसद के मुकाबले में साल 2013-14 में 3.3 फीसद पर पहुंच गया। सर्वे में इसमें न सिर्फ बढोतरी करने बल्कि मयार जैसे मुद्दो पर खुसूसी जोर देने की ज़रूरत बताई गई है।