नई दिल्ली 28 सितंबर (एजैंसीज़) मौजूदा बेहस-ओ-मुबाहिस का मौज़ू ग़ुर्बत और सतह ग़ुर्बत बना हुआ है, जहां एक आदमी की यौमिया ज़रूरत केलिए 32 रुपय ही काफ़ी तसव्वुर किया जा रहा है, ये ज़हनीयत और प्लानिंग कमीशन का ये नज़रिया अपने निशाने से भटकने की निशानदेही करता है और हुकूमत को इस बात का जवाब देना चाहीए कि क्यों मुल्क में ग़रीब अफ़राद उपर नहीं उठ पारहे हैं। ये बात नैशनल एडवाइज़री कौंसल के मैंबर एन ऐस सक्सेना ने बताई। 1972-73 मैं हुकूमत ने ग़ुर्बत की सतह मुतय्यन करते हुए 1.5 रुपय यौमिया आमदनी मुक़र्रर किया था। उसे आज की तारीख़ में यौमिया 32 रुपय क़रार दिया गया है। इस तख़मीने में कोई नई बात नहीं ही। ये बात सुबकदोश ब्यूरोक्रेट ने बताई। वज़ीर-ए-आज़म के सामने भी हक़ायक़ का इन्किशाफ़ करने से कभी नहीं हिचकिचाती। हुकूमत को इस बात का ज़रूरत एतराफ़ करना चाहीए कि मुल्क में ग़ुर्बत बढ़ी है, जो लोग सतहे ग़र्ब से नीचे ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं उन की तादाद 40 करोड़ होचुकी है जबकि 1947-में इन की तादाद 32 करोड़ थी। मिस्टर सक्सेना ने ये बात बताई। उन्हों ने बताया कि अवाम में तक़सीम कारी के निज़ाम में बहुत ही बदउ नाव इंयां और ख़ुरद बुरद पाई जाती है और इस के तहत जो लोग आते हैं उन्हें सतह ग़ुर्बत से नीचे ज़िंदगी गुज़ारने वाले अफ़राद तस्लीम किया जाता है वो इस के मुस्तहिक़ हैं कि उन्हें रियायती शरहों पर अनाज फ़राहम किया जाए। इस बात को भी मल्हूज़ रखना चाआई। इन का ये ब्यान प्लानिंग कमीशन के इस ब्यान के बाद आया जिस में कहा गया है कि जो शख़्स शहरी इलाक़े में 965 रुपय माहाने ख़र्च करता है और देही इलाक़े में जो शख़्स की माहाना 781 रुपय आमदनी है, उसे ग़रीब उन्हें तसव्वुर किया जाएगा और ग़रीबों के वीलफ़ीर स्कीम के ज़ुमरे में उन्हें लाया जा सकता।