हुकूमत की जानिब से बच्चों की मुफ़्त और लाज़िमी तालीम के क़ानून (RTE) के नफ़ाज़ ( लागू होने ) के दो साल बाद भी सूरत-ए-हाल ये है कि मुल्क के 95 फ़ीसद से ज़ाइद स्कूल क़ानून के रहनुमाया ना उसूलों पर अमल पैरा नहीं हैं। एक एन जी ओ की जानिब से किए गए सर्वे के बाद ये बात सामने आई।
मुल्क भर में आर टी ई फ़ोर्म की जानिब से तैयार करदा डाटा वाज़िह तौर पर ये ज़ाहिर करता है। 2010-11ए- के तालीमी साल के दौरान औसतन 10 स्कूल्स के मिनजुमला सिर्फ एक स्कूल में पीने के पानी की सहूलयात मौजूद है जबकि हर पाँच स्कूल के मिनजुमला सिर्फ दो स्कूलों में बैत उल-खुला ( शौचालय) की सहूलत मौजूद है।
आई ए एन एस की जानिब से इस रिपोर्ट का गहराई से मुताला के बाद ये बात सामने आई कि टीचर्स के लिए तर्बीयत का भी फ़ुक़दान ( कमी) है जिस की वजह हिंदूस्तान में प्राइमरी तालीम का मयार शदीद तौर पर मुतास्सिर (प्रभावित) हो रहा है। आर टी ई फ़ोर्म की रिपोर्ट के मुताबिक़ टीचर्स के लिए मंज़ूर शूदा 36 फ़ीसद जायदादें मख़लवा हैं।
हैरतअंगेज़ तौर पर दार-उल-ख़लाफ़ा दिल्ली में ही मख़लवा जायदादों की तादाद 21000 बताई गई है जबकि ओडीशा मैं 1000 जायदादें मख़लवा हैं। RTE से वाबस्ता रहनुमा या ना ख़ुतूत इस जानिब इशारा करते हैं कि किराए की इमारतों में क़ायम करदा, ज़ाती इमारत में क़ायम करदा और तमाम ऐसे स्कूल्स जिन पर हुकूमत का कंट्रोल हो या हुकूमत की जानिब से काबिल लिहाज़ इमदाद दी जाती हो या वो किसी मुक़ामी अथॉरीटी की मिल्कियत हो, को इस बात का यक़ीनी बनाना होगा कि टीचर्स की मख़लवा जायदादें मंज़ूर शूदा जायदादों से 10 फ़ीसद तजावुज़ नहीं करनी चाहीए।
रिपोर्ट के मुताबिक़ ये बात भी सामने आई है कि टीचर्स से ग़ैर तदरीसी काम भी लिए जा रहे हैं जैसे तामीराती काम और मिड डे मील स्कीम में कौंट्रेक्टर्स बनाया जा रहा है। याद रहे कि RTE के रहनुमा या ना ख़ुतूत के मुताबिक़ किसी भी टीचर को सिवाए मर्दुमशुमारी, आफ़ात समावी के दौरान राहत कारी और इंतिख़ाबी डयूटी के दीगर कोई ग़ैर तदरीसी फ़राइज़ की अंजाम दही सौंपी नहीं जा सकती।