नई दिल्ली, 05 जनवरी: सुप्रीम कोर्ट ने 16 दिसंबर की रात चलती बस में लडकी से गैंगरेप की वारदात को मौजूदा वक्त की सबसे घिनौना हादिसा बताया है। मणिपुर में फर्जी मुठभेड़ के संबंध में दायर दरखास्त की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस खौफनाक वारदात के मुल्ज़िमीनो पर मुल्क के कानून के मुताबिक मुकदमा चलेगा।
जस्टिस आफताब आलम और जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई की बेंच ने कहा कि इस घिनौने जुर्म के मुल्ज़िमीन को सरेआम फांसी पर नहीं लटकाया जा सकता। इस मुल्क में जब तक सुप्रीम कोर्ट है और कानून का राज कायम है, ऐसे मुल्ज़िमीन को गोली से नहीं उड़ाया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने यह रद्दे अमल उस वक़्त जाहिर की जब मणिपुर हुकूमत ने मुबय्यना तौर पर फर्जी मुठभेड़ को लेकर अदालत में दरखास्त दायर करने वालों को मुल्क का दुश्मन यानी देशद्रोही कहा और मुठभेड़ों को जायज ठहराने की कोशिश की।
बेंच ने रियासती हुकूमत के कहने पर गहरा ऐतराज़ जताते हुए रयासती हुकूमत से कहा कि आप बिना किसी सबूत के दरखास्त गुजारों को राष्ट्रविरोधी कैसे कह सकते हैं। कौमियत पर हुकूमत का एकाधिकार नहीं है। हुकूमत किसी को यूं ही राष्ट्रविरोधी नहीं कह सकती। इक्तेदार पर काबिज होने का मतलब यह नहीं कि किसी को भी मुल्क का दुश्मन कह दिया जाए। दरखास्त दायर करने वालों पर उंगली उठाना ठीक नहीं है। अदालत आम आदमी और फौजियो के मारे जाने पर भी उतना ही अफसोस इज़हार करती है।
वहीं फर्जी मुठभेड़ में मारे गए एक नाबालिग को दरखास्तगुजार की ओर से जुवेनाइल कहे जाने पर अदालत ने ऐतराज जताया। बेंच ने कहा कि उसे जुवेनाइल कहना ठीक नहीं है। वह भी एक इंसान है। अदालत ने कहा कि मुल्क के एक वज़ीर ए आज़म और एक साबिक वज़ीर ए आज़म दहशतगर्द का शिकार हुए। लेकिन उनके कातिलो को भी कानून के दायरे में रहकर सजा दी गई। उन्हें भीड़ के हवाले नहीं किया गया।
गौरतलब है कि गैंगरेप को अंजाम देने वाले दरिंदों के खिलाफ उभरे आवामी गुस्से के चलते कई बार गुनहगारों को आवामी तौर पर फांसी लगाने की मांग हो रही है।