औरंगाबाद: जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी औरंगाबाद में राष्ट्रीय एकता सम्मेलन को संबोधित कर करते हुए कहा कि देश के संविधान ने हर नागरिक को अपने अपने पर्सनल ला पर अमल करने का अधिकार दिया है और संविधान से प्रिय कोई नहीं है। मौलाना ने कहा कि देश में मुस्लिमों और दलितों को अगर ऐसे ही निशाना बनाया जाता रहा तो यह देश फिर विभाजन के कगार पर पहुंच सकता है। मौलाना ने कहा कि मुस्लिम पर्सनल ला में अगर बदलाव करनी है तो इसके लिए मुसलमानों की राय ली जाए न कि पूरे देश की।
न्यूज़ नेटवर्क समूह प्रदेश 18 के अनुसार अधिवेशन से हिंदू, सिख, ईसाई,दलित और धार्मिक नेताओं ने भी संबोधित किया और आपसी एकता को सफलता की कुंजी बताते हुए एक दूसरे के साथ खड़े रहने की अपील की। इस मौके पर मौलाना सैयद अरशद मदनी ने जमीयत के लगातार संघर्ष और इतिहास से नई पीढ़ी को अवगत कराया और देश की स्वतंत्रता, पुनर्निर्माण और सांप्रदायिकता से मुकाबला में जमीयत के प्रयासों का उल्लेख किया। साथ ही साथ मौलाना ने मौजूदा दौर में सांप्रदायिकता की बढती वृद्धि के लिए प्रधानमंत्री की चुप्पी पर कटाक्ष भी किया।
धार्मिक नेताओं ने भी अपने विचार व्यक्त किए और आपसी एकता के संदेश को सार्वजनिक करने पर जोर दिया। अधिवेशन में जमीयत उलेमा-ए-हिंद की ओर से एक संकल्प भी पारित किया गया जिसमें सांप्रदायिक ताकतों के बढ़ते महत्वाकांक्षाओं पर सरकार की चुप्पी की निंदा की गई और देश के सभी निवासियों से आपसी सहिष्णुता से रहने की अपील की गई।
मौलाना मदनी ने कहा कि घर वापसी, लव जिहाद और मताधिकार छीनने की बात की जा रही थी, लेकिन प्रधानमंत्री तीन साल तक बिल्कुल चुप रहे। और जब बोले तो तीन तलाक की आड़ में मुस्लिम महिलाओं को उनके अधिकार दिलाने की बात कही।मौलाना मदनी ने अपने संबोधन में ला आयोग प्रश्नावली का हवाला देते हुए आयोग के इरादे को संदिग्ध बताया और यह स्पष्ट किया कि मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड ने इसका बहिष्कार क्यों किया।