मुसलमानों की हमा जहती तरक़्क़ी को यक़ीनी बनाने के मक़सद से इदारा सियासत की तरफ से बेहतर इक़दामात किए जा रहे हैं। मिल्लत में इत्तेहाद वक़्त की अहम ज़रूरत है और साथ ही साथ मुसलमानों को तालीमी शोबा में तरक़्क़ी यक़ीनी बनाना होगा। यही नहीं समाजी सतह पर भी हमारी तर्ज़-ए-ज़िदंगी में तबदीली लाने की ज़रूरत है बिलख़सूस शादीयों में इसराफ़ के ज़रीये हम ख़ुद को नुक़्सान पहुंचा रहे हैं और ये तरीका-ए-कार तर्क करते हुए मिल्लत की मआशी तरक़्क़ी को भी यक़ीनी बनाया जा सकता है।
इन ख़्यालात का इज़हार ज़ाहिद अली ख़ान एडीटर सियासत ने मनचरयाल में मुनाक़िदा अज़ीमुश्शान नाअतिया मुशायरा में बतौर मेहमान ख़ुसूसी ख़िताब करते हुए किया। उन्होंने इदारा सियासत के फ़लाही इक़दामात का ज़िक्र किया और कहा कि गुजरात फ़सादाद, मुज़फ़्फ़रनगर फ़सादाद, कश्मीर में सैलाब के मुतास्सिरीन की मदद में सियासत हमेशा पेश पेश रहा। गुजरात फ़सादाद के मुतास्सिरीन के लिए तक़रीबन 3.5 करोड़ रुपये की रक़म रीलीफ़ फ़ंड में जमा हुई और इस के ज़रीये तक़रीबन 10 हज़ार मकानात तामीर किए गए। कश्मीर में सैलाब से मुतास्सिरीन की राहत कारी-ओ-बाज़ आबादकारी में भरपूर तआवुन किया गया। मुज़फ़्फ़रनगर में मुतास्सिरीन की मदद के साथ साथ रीलीफ़ कैम्पों में उनकी तालीम का इंतेज़ाम किया गया।
उन्होंने शादीयों में इसराफ़ का बिलख़सूस तज़किरा करते हुए कहा कि ये उमूमन समाजी-ओ-मआशी बोझ बनता जा रहा है। इस ज़िमन में ज़ाहिद अली ख़ां ने सादगी इख़तियार करने की अपील की। उन्होंने कहा कि लड़के और लड़की वालों को मिल बैठ कर मश्वरह करते हुए इस बात को यक़ीनी बनाना चाहीए कि किसी पर भी माली बोझ आइद ना हो। आपसी ताल मेल से सादगी से शादी को यक़ीनी बनाया जा सकता है। ज़ाहिद अली ख़ान ने इदारा सियासत की तरफ से रिश्ते तै करने के लिए दु बा दु प्रोग्राम के इनइक़ाद और ग़ैरमामूली हौसला अफ़्ज़ा-ए-अवामी रद्द-ए-अमल का ज़िक्र किया।
उन्होंने निर्मल (आदिलाबाद) और मनचरयाल में भी दु बा दु प्रोग्राम मुनाक़िद करने का एलान किया। मुशायरा का आग़ाज़ हमद-ओ-नाअत शरीफ़ से हुआ। अबदुल्लाह राही देवबंदी ने अपने कलाम से सामईन को महज़ूज़ किया। मुमताज़ मेहमान शारा-ए-ताबिश रिहान (बनारस), क़मर उल-इस्लाम क़मर (ओडीशा), फ़िर्दोस कौसर (बैंगलौर) , तारिक़ अनवर (कोलकता) और मुज़म्मिल हयात सीतामढ़ी (बिहार) ने नाअतिया कलाम पेश करते हुए दाद-ओ-तहसीन हासिल की। कन्वीनर मुशायरा मुफ़्ती मशकूर अहमद क़ासिमी थे। दुआ पर मुशायरा का इख़तेताम अमल में आया।