तालीम के बगै़र मईशत का हुसूल मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। इन ख़्यालात का इज़हार मुदीर रोज़नामा सियासत तरफ ज़ाहिद अली ख़ान ने मुस्तक़र महबूबनगर पर रेनबो कानसपट स्कूल में एक जलसे को मुख़ातब करते हुए क्या।
इस जलसे का एहतेमाम मुस्लिम शऊर बेदारी कमेटी ने किया था जो एक माही मुफ़्त फ़न्नी कोर्सेस की ट्रेनिंग के आग़ाज़ के मौके पर मुनाक़िद की गई थी।
उन्होंने अपनी बात जारी रखते हुए कहा कि महबूबनगर से उन्हें हद दर्जा लगाओ है क्युंकि उनके वालिद आबिद अली ख़ान मरहूम भी ज़िला की तालीमी और मआशी तरक़्क़ी के लिए हमेशा कोशां रहे थे।
इदारा सियासत ज़िला के अवाम बिलख़सूस अक़लियतों की तालीमी-ओ-मआशी पसमांदगी को दूर करने और उनको रोज़गार से जोड़ने के लिए उस नौईयत के कई एक कैंपस मुनाक़िद करता आरहा है। उन्होंने महबूबनगर में इस तंज़ीम के रूह रवां डॉ मधु सुदन रेड्डी की ख़िदमात को सराहा कि पिछ्ले 7 सालों से 1000 ता 1500 लड़के लड़कीयों को फ़न्नी तालीम से आरास्ता कराते हुए उन को रोज़गार की फ़राहमी में बड़ा हिस्सा अदा कररहे हैं।
क्लासेस के लिए उन्होंने बिल्डिंग मुफ़्त फ़राहम की है। ये काम सब के लिए काबिल तक़लीद है। उन्होंने तलबा को मश्वरा दिया कि वो एहसास कमसतरी का शिकार ना हूँ बल्कि तालीम को हासिल करें और उस को हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर के मुक के किसी भी मुक़ाम पर बाइज़्ज़त ज़िंदगी गुज़ारें।
ज़बानों के सीखने का मश्वरा उन्होंने तलबा को देते हुए कहा कि उर्दू ज़बान में हमारा क़ीमती असासा महफ़ूज़ है। हमारा इस्लाफ़ और बुज़ुर्गों की तारीख़ उर्दू में है इस लिए उर्दू का सीखना निहायत ज़रूरी है।