मुसलमानों की समाजी-ओ-मआशी तरक़्क़ी के लिए मयस्सर लायेहा-ए-अमल नागुज़ीर ( जरूरी)

बीसवीं सदी में रोटी कपड़ा और मकान को बुनियादी एहमीयत हासिल थी लेकिन इक्कीसवीं सदी में ये नारा बदल कर मयारी तालीम सेहत और मईशत हो गया है ।

हिंदूस्तान की मईशत जिस तेज़ रफ़्तारी से तरक़्क़ी कर रही है इस पस-ए-मंज़र में मुसलमानों को भी चाहीए कि मयस्सर लायेहा-ए-अमल इख़तियार करते हुए तरक़्क़ी में बराबर के शराकतदार बनें। कानपूर में इक्कीसवीं सदी के समाजी-ओ-मआशी चैलेंजस के ज़ेर-ए-उनवान सेमीनार से ख़िताब करते हुए मौलाना फ़ज़ल अलरहीम मुजद्ददी सदर नशीन एस ई ई ने इन ख़्यालात का इज़हार किया ।

उन्होंने कहा कि मुसलमानों को तेज़ रफ़्तार तरक़्क़ी के अमल में सब के साथ चलना होगा । हज़रत मौलाना सय्यद राबा हसनी नदवी सदर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड नासाज़ी सेहत की वजह से सेमीनार में शिरकत ना कर सके। मर्कज़ी वज़ीर‍ ए‍ अक्क़लीयती उमोर ( Union Law and Justice Minister) सलमान ख़ुरशीद ने सदारती ख़िताब करते हुए कहा कि मुसलमान मसह बिकती मैदान में किसी से पीछे ना रहे।

उन्होंने बताया कि जद्द-ओ-जहद आज़ादी में मुसलमानों ने जो कारनामे नुमायां अंजाम दिए उसे फ़रामोश नहीं किया जा सकता । मौजूदा दौर में मुसलमानों को तालीम की दौलत और मुसबत सोच के ज़रीया दीगर ( अन्य) तबक़ात के शाना ब शाना चलने की ज़रूरत है । जनाब ज़हीरउद्दीन अली ख़ान मैनेजिंग एडीटर रोज़नामा सियासत ने मुसलमानों की समाजी-ओ-मआशी हालत पर तफ़सीली रोशनी डाली ।

उन्होंने आंधरा प्रदेश में वक़्फ़ अराज़ी ( भुमी ) स्कैंडल का भी ज़िक्र किया । इसके साथ साथ मुसलमानों की समाजी तरक़्क़ी के लिए इदारा ( संस्था) सियासत की मिली-ओ-फ़लाही ख़िदमात के बारे में प्रेजेंनटेशन दिया । उन्होंने कहा कि मुसलमानों को मुत्तहिद ( एक ) होकर ग़ुर्बत और पसमानदगी (पीछड़ेपन) का मुक़ाबला करना होगा ।

सेमीनार में इन एहसासात का इज़हार किया गया कि बारहवीं प‍ँचसाला मंसूबा ( अभियान) में भी मुसलमानों को नजरअंदाज़ किया गया तो वो समाजी-ओ-मआशी तौर पर मज़ीद ( और् भी) कमज़ोर हो जाएंगे । मिस्टर मुहम्मद आज़म ख़ान ने भी ग्यारवें मंसूबा में पाई जाने वाली ख़ामीयों को बारहवीं मंसूबा में दूर करने के लिए ज़ोर दिया ।

मिस्टर एस एम हिलाल ने कहा कि पँचसाला मंसूबा पर अमल आवरी के लिए मयस्सर मेकानिज़म ज़रूरी है । इस मौक़ा पर मिस्टर सलमान ख़ुरशीद ने मौलाना फ़ज़ल अलरहीम मुजद्ददी की तसनीफ़ ( लिखी हुई किताब) अक़ल्लीयतें और बारहवां पनचसाला मंसूबा की रस्म इजरा अंजाम दी।