बंटवारे के वक़्त पाकिस्तान जाने वाले लोगों की संपत्ति के अधिग्रहण के सम्बन्ध में कानून आज़ादी के कुछ वक़्त बाद ही बना दिया गया था। विस्थापित व्यक्ति संपत्ति अधिनियम, 1950 सबसे पहला कानून था जिसे पाकिस्तान के साथ युद्ध के बाद लागु किया गया था। इस कानून की निरंतरता में कुछ दूसरे प्रावधान भी जोड़े गए और बाद में इस अधिनियम का नाम बदल कर शत्रु संपत्ति अधिनियम कर दिया गया।
विस्थापित व्यक्ति संपत्ति अधिनियम के तहत, जो लोग भारत छोड़ कर पाकिस्तान चले गए थे उनकी संपत्ति को भारत सरकार ने अधिग्रहित कर लिया था। इसकी वजह से कई विवाद उत्पन्न हुए जो न्यायलय में पहुंचे।
इस कानून के तहत प्रवासियों ने अपने पीछे जो संपत्ति छोड़ी थी, वह यहाँ रह गए उनके परिजनों से छीन ली गयी।
मुकदमों ने कई नागरिकों के लिए अनेक परेशानियों को जन्म दिया। बाद में, कानून में शामिल नए प्रावधानों से इन परेशानियों में और इज़ाफा हुआ। ये मुकदमें अभी भी न्यायालय में चल रहे हैं। उदहारण के लिए भोपल के नवाब की संपत्ति जो पटौदी परिवार के अधीन है उसका मुकदमा अभी भी जबलपुर उच्च न्यायलय में लंबित है।
16000 के करीब संपत्तियों के मामले, जिनमें अधिकाँश मुसलमानों के हैं, उनमें एक बड़ा मुकदमा महमूदाबाद के राजा एम ए एम खान का है, जिनकी लखनऊ, सीतापुर और लखीमपुर में 936 संपत्तियां हैं।
हालाँकि, सर्वोच्च न्यायालय अपने निर्णय में यह साफ़ कर चुका है कि ये संपत्तियां राजा मोहम्मद आमिर मोहम्मद खान के स्वामित्व में हैं, जो राजा महमूदाबाद के कानूनन उत्तराधिकारी हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने अक्तूबर 21, 2005 को दिए अपने उल्लेखनीय फैसले, यूनियन ऑफ़ इंडिया बनाम राजा एमएएम खान में कहा था कि दुश्मन की मौत के बाद संपत्ति को शत्रु संपत्ति नहीं कहा जा सकता और यह सम्पति कानूनन उतराधिकारी को उत्तराधिकार में दे दी जानी चाहिए यदि उत्तराधिकारी भारत का नागरिक है।
इस निर्णय के बावजूद केंद्र सरकार एक कानून बनाकर कर इन संपत्तियों से उनके कानूनन उत्तराधिकारियों को वंचित करना चाहती है।
संपत्ति को अधिग्रहित करने के लिए यह अधिनियम लोकसभा में परीट हो चुका है लेकिन राज्यसभा में लेकिन डी राजा, सीताराम येचुरी, शरद यादव, के सी त्यागी जैसे विपक्ष के सदस्यों के कड़े विरोध की वजह से राज्यसभा में पांच बार प्रस्तावित होने के बावजूद पारित नहीं हो पाया है। 23 दिसम्बर, 2016 को यह बिल राज्य सभा में पांचवी बार पेश किया गया था।
यहाँ यह बताना बहुत ज़रूरी है कि भारत के माननीय राष्ट्रपति ने शत्रु संपत्ति अध्यादेश पर हस्ताक्षर करते वक़्त कड़ी आपत्ति दर्ज की थी जब यह अध्यादेश उनके सामने हस्ताक्षर करने के लिए पांचवी बार भेजा गया था।
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा था कि किसी भी अध्यादेश की पुनरावृत्ति, चाहे वह दूसरी बार ही क्यों न हो, संविधान के साथ एक धोखा है।
अगर यह अध्यादेश एक अधिनियम बन जाता है तब आप कल्पना कर सकते हैं कि महमूदाबाद के मोहम्मद आमिर मोहम्मद खान, जो एक पूर्व विधायक हैं, जिन्होंने अपने पिता की इच्छा के विरुद्ध भारत में रहने को प्राथमिकता दी, और भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान, मरहूम मंसूर अली खान पटौदी, उनकी पत्नी शर्मिला टैगोर और उनके बच्चों सैफ, सबा और सोहा अली खान को भारत में ‘दुश्मन’ माना जाएगा। क्या इससे यह महसूस नहीं होता कि वर्तमान मोदी सरकार देशभक्त भारतीय मुसलमानों के साथ गद्दारों जैसा व्यव्हार कर रही है?