सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम पर्सनल लॉ में बहुपत्नी प्रथा और निकाह हलाला को मान्यता देने वाले प्रावधानों को असंवैधानिक घोषित करने के लिए दायर याचिका पर सोमवार को केंद्र सरकार से जवाब माँगा है.
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर और न्यायमूर्ति धनन्जय वाई. चंद्रचूड़ की पीठ ने केंद्र और राष्ट्रीय महिला आयोग को नोटिस जारी करने के साथ ही इन मुद्दों को लेकर पहले से ही लंबित याचिकाओं के साथ सलंग्न करने का आदेश दिया. यह याचिकाएं पहले ही पाँच सदस्यीय संविधान पीठ के पास सुनवाई के लिए भेजी जा चुकीं हैं.
न्यायालय ने लखनऊ निवासी नैश हसन की याचिका पर सोमवार को यह आदेश दिया. इस याचिका में अनुरोध किया गया है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ कानून 1937 की धारा दो को उस सीमा तक असंवैधानिक और संविधान के अनुछेद 14 (कानून समक्ष बराबर), अनुछेद 15 (जाति, धर्म जन्म स्थान या लिंग के आधार पर भेदभाव पर प्रतिबंध) और अनुछेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत आज़ादी को संरक्षण) का उल्लंघन करने वाली घोषित किया जाए वह बहुपत्नी प्रथा, निकाह हलाला और निकाह मुताह और निकाह मिसयार को मान्यता देता है.
हसन ने अपनी नई याचिका में कहा है कि इस सवाल के जवाब की आवश्यकता है कि क्या धर्मनिरपेक्ष संविधान के तहत महिलाओं को महज उनकी धार्मिक पहचान के सहारे दूसरी आस्थायों का पालन करने वाली महिलाओं की तुलना में कमज़ोर दर्जा दिया जा सकता है.
याचिका में कहा गया है कि बहुपत्नी, निकाह हलाला, निकाह मुताह और निकाह मिसयार की प्रथाएं मुस्लिम महिलाओं की सामाजिक हैसियत और गरिमा पर असर डालती है.