मुसलमानों के बिना देश का विकास सम्भव नहीं

भारत में मुसलमानों की आबादी किसी भी देशों से अधिक है | और भारत को सेकुलर बनाने में एक अहम भुमिका है और भारत में लोकतांत्रिक सरकार है | आजा़दी के बाद हमारे बाप -दादा ने खुशी खुशी इस मिट्टी को अपना वतन बनाया|

आजा़दी की जंग में मुसलमानों और हमारे उलेमाओं ने हजारों शहादत दी, और देशभक्ति का एक बहुत बङा नमुना है , भारत में सभी धर्म के लोग हिन्दू मुस्लिम ,सिख ,इसाई एक भाई की तरह रहते हैं |

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आजा़दी के बाद भारत विकास के पथ पर चल पङा और भारत सुपर पावर की कतार में खङा है लेकिन वहीं भारत की दुसरी सबसे बङी आबादी मुसलमान दिन ब दिन पिछङता चला गया जिसकी हालत आज दलित से भी बदतर हो चूंकि है |

कहें तो मुसलमानों की कयादत करने के लिये सभी पार्टी में माइनोरीटी सेल है , और उनसे समबन्धित प्रभारी नेता हैं | लेकिन सच्चाई कुछ और बयां करती है ये सेल का काम बस चूनाओ के समय मुसलमानों के वोट लेने के लिये बनाए गये हैं कुछ बहुत संघर्ष कर रहे हैं बाक़ी इद मिलन और इफ्तार तक ही महदुद है |
दुसरी तरफ़ मुसलमानों का पङा लिखा तबक़ा राजनीति को घटीया काम समझकर इस से दूर हो गया , जिस कारण बहुत बङा नुकसान हूआ और अच्छे लोग खुद को अलग कर लिये मुसलमान राजनीति में बहुत पिछङ गये |

समसयाअें
मुसलमानों की सबसे बङी समस्या गरीबी ,अशीक्षा ,बेरोजगारी और हर में पिक्षङापन जहाँ तक बीत है मुसलमानों के लिये अबतक सरकार के ज़रीये भी कोइ ठोस कदम नहीं उठा हाँ हुआ मुसलमानों को झुठे वादे कर के उनके वोटों का इस्तेमाल किया गया | समय जब आया मुसलमानों के विकास का तब काम हुआ लेकिन कोइ ठोस काम नही हुआ , आखिर कार मुसलमानों की हालत रोज़ बरोज़ दलित से बदतर हो गयी और मुसलमान आज देश की दुसरी बङी आबादी होन् के बावजूद देश के सबसे निचले पायदान पे पहुँच चुका हा | मुसलमानों के नाम पर आवंटित फंड और योजनायें भी पुरी तरह से ज़मीन तक नहीं तक नहीं पहुँच पाइ |

इस हालत को देखते हुऐ युपिऐ-1 के समय माननीये डा मनमोहन सिंह की सरकार ने सच्चर कमेटी का गठन किया और फिर कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर बहुत सारी योजनायें शुरु की गइ लेकिन जितना काम हेना चाहीये फिर भी बहुत कम हुआ अभी बहुत सारे कामों की आवश्यकता है | जहाँ तक सच्चाई ये है की मुसलमानों के विकास के बिना देश का विकास संभव नही है इसलिए की मुसलमान भारत की दुसरी सबसे बङी आबादी है ||
“के थक कर न बैठ अभी तेरी उङान बाक़ी है
ज़मी ख़त्म हुइ आसमान बाक़ी है ”

Er Zain Shahab Usmani
(लेखक सोशल एक्टिविस्ट हैं)