मुलक की तारीख़ी बाबरी मस्जिद जिसे शरपसंदों ने सोचे समझे मंसूबे से शहीद क्या, आज उसे शहीद हुए 20 साल का अर्सा गुज़र चुका है।
आज ये मसला मुख़्तलिफ़ हीले-ओ-बहानों और तावीलात से जूं का तूं बरक़रार है। मुलक भर और अक़्ता आलम के मुसलमान भी इस आस में हैं कि अदालत इस मस्जिद के मुताल्लिक़ एसा फ़ैसला सादर करे जिस से मुनाफ़िरत ना फैले।
अब जबके सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का इंतेज़ार मुसलमानों को है कि वो इस तारीख़ी मस्जिद के मुताल्लिक़ क्या फ़ैसला देती है।हमें हर हाल में क़ानून की पासदारी करनी है।
इस मुलक में मुसलमानों ने 400 साल तक हुकूमत की और एसे नुक़ूश छोड़े जिस को याद किया जाता रहेगा। पिछ्ले 60 सालों से मुसलमानों को नित नए अंदाज़ से हिरासाँ करने की कोशिश की जा रही है। इन ख़्यालात का इज़हार मौलाना हुसामउद्दीन सानी आमिल उल-मारूफ़ जाफ़र पाशाह ने नमाज़ जुमा से क़बल जाम मस्जिद दारालशफ़ा में क्या।
उन्हों ने दुआ की के ख़ुदाया इस मस्जिद को जिस तरह तू ने पिछ्ले बरसों में आबाद किया और वहां मुसलमानों की बड़ी तादाद ने नमाज़ें अदा की इसी तरह इस मस्जिद को मुसलमानों के हवाले फ़र्मा ताके ख़ालिस्तन तेरी बंदगी की जाये। आज मस्जिद के मिंबर-ओ-महिराब तेरे पाक नाम लेने और तेरे रसूल(pbuh) के नाम लेने तरस रहे हैं। ए मालिक हम तुझ से इस बात की दुआ करते हैं कि इस अज़ीम मस्जिद के मुआमले को आसान फ़र्मा दे।
उन्हों ने कहा कि अल्लाह ताअला ने ज़माने की क़सम खाई है और इशारा किया कि इंसान बड़े ख़सारे में है। उन्हों ने कहा कि उम्मत ए मुस्लिमा को अल्लाह ताअला ने पैदा किया जो इस दुनिया में नेकियों को फ़रोग़ और बुराईयों को इस दुनिया से दूर करने का अहद करचुकी है जिस केलिए एसे नाज़ुक तरीन सूरत-ए-हाल में उस की ज़िम्मेदारी बढ़ जाती है कि वो अपनी ज़िम्मेदारी का एहसास रखे।
उन्हों ने इंसानों को ही अल्लाह ताअला ने बंदगी बजा लाने का हुक्म दिया, उस की बंदगी-ओ-इताअत के लिए और मख़लूक़ भी है जो दिन-ओ-रात उसी की तस्बीह में लगी हुई है।
रिवायतों में आता है कि बैत-उल-मामूर के पास फ़रिश्तों की बड़ी तादाद है जो दिन-ओ-रात काबता उल्लाह का तवाफ़ करती है, अगर एक फ़रिश्ते को तवाफ़ का मौक़ा मिला तो उसे नहीं मालूम कि फिर तवाफ़ का मौक़ा मिल सकेगा या नहीं लेकिन मोमिन को अल्लाह ताअला ने इस बात का मौक़ा नसीब फ़रमाया कि वो अल्लाह के घर का बार बार तवाफ़ करसकें। क़ारी अबदालबारी ने नमाज़ पढ़ाई।