मुसलमानों को लीडर नहीं मसीहा चाहिए

आज़ादी के 67 बरसों में मुल्क ने किसी न किसी तौर से तरक़्क़ी ज़रूर की, यहाँ आबाद सभी क़ौमों ने तरक़्क़ी और खुशहाली की रफ्तार में शामिल होकर आगे बढ़े लेकिन मुस्लिम एक ऐसी क़ौम है जो हर मुहाज़ पर पसमानदगी का शिकार होती चली गयी और वो दलितों से भी बदतर हो गयी इसके पीछे वाहिद वजह मुखलिस और साफ व श्फ़ाफ कियादत का न होना है। इन खयालात का इज़हार मारूफ समाजी रहनुमा जनाब मोहम्मद मुईज़ आलम ने आज यहाँ शाद होटल में एक प्रेस कोन्फ्रेंस के दौरान कहीं।

उन्होने कहा की मुसलमानों को नाम निहाद मुस्लिम नामों वाले लीडर नहीं बल्कि सच्चा मसीहा चाहिए, जो उन के दुख दर्द में काम आ सके। मुसलमानों का एक बड़ा अलमिया ये रहा के यहाँ हर पार्टी ने सेकुलरिज़्म के नाम पर उनका इस्तहसाल किया, उनको वोट बैंक के तौर पर इस्तेमाल किया। मिस्टर आलम ने किसी का नाम लिए बेगैर सीमांचल की मिसाल देते हुये कहा के वहाँ आज़ादी के बाद से ही बड़ी सियासी पार्टियों से वाबस्ता मुस्लिम चेहरे ही इक्तिदार में रहे जो उनको भेड़ बकरी की तरह दाम लगा कर बेचते रहे और अपनी सियासी दुकान चमकाते रहे लेकिन गरीब आवाम का कभी ख्याल नहीं किया। उन्होने कहा की मुसलमानों अपने हाकूक के लिए बेदार होना पड़ेगा और ये समझना होगा जो लोग उनको फ़िर्क़ा परस्ती खौफ दिखा कर डरा रहे हैं वो उनके सच्चे मुखलिस नहीं। मुसलमानों को तालीम, तिजारत के साथ साथ शफाफ़ और पुर खुलूस कियादत की भी ज़रूरत है। मजहबी फरीजा के साथ मुखलीस कायद की शिनाख्त भी उनकी ज़िम्मेदारी है।