मुसलमानों पर हमले के लिए दूसरोँ का उपयोग बंद हो

ब्रिटेन के अखबार ‘इंडिपेंडेंट’ में लिखे एक लेख में ‘मिक़दाद वेरसी’ ने अधिकारहीन समूहों को इस्लाम के खिलाफ इस्तेमाल किये जाने वाली घटनाओ से अवगत करने की कोशिश की है|

एलजीबीटी अधिकारों के लिए लड़ने वालो को एक अप्रत्याशित साथी ” द सन ” अखबार के रूप में मिल गया है। अखबार ने इस्लामोफोबिया को बढ़ावा देते हुए समलैंगिक अधिकारों के लिए लड़ने वाले एक समूह स्टोनवाल को इस्लाम से लड़ने को कहा।

जी हाँ, अखबार ने “इस्लाम से लड़ाई” शीर्षक का उपयोग किया। दिलचस्प बात यह है कि बीबीसी में आने वाले एक कार्यक्रम से एक समलैंगिक पात्र को हटाने के लिए इसी अखबार ने “ईस्टबेन्डेर्स” नामक अभियान शुरू किया था।

उन्होंने उस वक्त ” समलैंगिक सेक्स से एड्स नहीं होता ” शीर्षक से इसको चलाया था। इस शीर्षक के कारण समलैंगिक लोग जिनको एड्स था, उनके लिए लोगो के दिलोँ में घृणा उत्पन्न हो गई थी।

इससे साफ़ पता चलता है कि कैसे समलैंगिक अधिकारों का उपयोग लोग अपनी कट्टरता को फ़ैलाने के लिए कर सकते हैं। हमारे समाज मे इस्लामोफोबिया बहुत ही साधारण सी बात हो गयी है। 37 % लोग उस राजनीतिक दल को समर्थन देते हैं जो वादा करता है कि ब्रिटेन में मुसलमानो की संख्या कम करेगा और 30 % से अधिक नौजवान यह सोचते हैं कि मुसलमान ब्रिटेन पर कब्ज़ा कर रहे हैं।

दूसरा उदाहरण है कि कैसे महिलाओ के अधिकारों को मुसलमानों के विरोध इस्तेमाल किया जा रहा है। सोचिये, ट्रेवोर कवनघ के बारे में जिन्होंने कभी भी “सन” अखबार में आने वाले अपने लेखों मे महिलाओ के अधिकारों के बारे में बात नहीं की, वो अब महिलाओ को प्रोत्साहित कर रहे है कि वे मुस्लिम औरतो का साथ दे और हिजाब के विरुद्ध उनकी लड़ाई को समर्थन दे।

हम उन सभी लोगों को जो महिलाओ और समलैंगिको के अधिकारों के लिए अब बोल रहे हैं, उन्हें हम इन समस्याओ से भावुकता से जुड़े कार्यकर्ता मान सकते हैं परंतु असल मे वे इस्लाम को ढाल बनाकर इन समूहों का मसीहा बनने की कोशिश कर रहे हैं।

इसका परिणाम हम सब देख सकते हैं, लोगों में मुसलमानो को लेकर नफरत की भावना बढ़ रही। जागरूकता और नफरत फ़ैलाने में एक बहुत ही बारीक़ अंतर होता है और जब यह अंतर ख़त्म हो जाता है तब सिर्फ नफरत ही बढ़ती है और आज यही हो रहा है।