मुसलामानों के जज़्बात से खेलने वाली तसलीमा नसरीन का “हेट स्पीच” “फ़्री स्पीच” कैसे?

आजकल फिर वो एक मुद्दा उठ खड़ा हुआ है जिसकी चर्चा पूरे साल होती रही है या यूं कहें कि पिछले कई साल से हो रही है. एक तरफ जहां डॉ ज़ाकिर नाइक को कटहरे में खड़ा होने से पहले ही लोग सज़ा सुनाने पे उतारू हैं तो दूसरी तरफ़ जो उनके समर्थक हैं वो इस बात पे ज़ोर दे रहे हैं कि कुछ उनकी सिखाई हुई बातें ठीक ना भी हों लेकिन वो आतंकवाद के हमेशा विरोध में रहे हैं, साथ ही वो ये भी कह रहे हैं कि जिस बात को लेकर उनका विरोध किया जा रहा है उसे बिलकुल ही ग़लत ढंग से पेश किया गया है. ये तो पक्ष दर पक्ष की बात है कोई ये कह रहा है कोई वो कह रहा है, इस मुद्दे पर सही बात तो ये है कि क़ानून के हिसाब से जो भी कार्यवाही होती है और फिर अदालत जो भी फ़ैसला देती है बस वही एहम है, बाक़ी सब बकवास है.
लेकिन मैं यहाँ पर आपका ध्यान एक और मुद्दे की तरफ़ दिलाना चाहता हूँ, जी मेरा भी ध्यान किसी ने इस और दिलाया तो मैंने सोचा मैं भी आपका ध्यान इस ओर ले जाऊं. कौन है जो डॉ ज़ाकिर का विरोध करने में ज्यादा आगे हैं, इनमें बहुत से नाम हैं जिन नामों में प्रमुखता से अर्नब गोस्वामी और कुछ पत्रकार और इसके अलावा तसलीमा नसरीन. ठीक है विरोध करने का बात कहने का सबको हक़ होना चाहिए और किसी भी धर्म को बुरा कहने का आपको कोई अधिकार नहीं ये बात ज़ाकिर पे जो आ रही थी उससे बड़ी तरह से तसलीमा पे लागू होती है. तसलीमा नसरीन की एक नावेल है लज्जा जो निहायत बोरिंग है, ये मैं नहीं बहुत सारे उनके फैन भी कहते हैं . वो बोरिंग किताब तो खैर जाने दीजिये लेकिन ये टीवी चैनल पे जिस तरह की बातें करती हैं ये तो निंदनीय ही नहीं दंडनीय भी है. हाल ही में एक प्रोग्राम में आयीं और कहने लगीं कि “रूढ़ीवादी मुसलमान आतंकवादी होता है और जो रूढ़िवादी नहीं होते वो पाखंडी होते हैं.” इस बयान को अगर फ़्री स्पीच माना जा रहा है तो दुनिया में हर एक स्पीच फ़्री स्पीच है. इस तरह का बयान तो मुझे लगता कि योगी आदित्यनाथ ने भी नहीं दिया होगा. ये तो बहुत बुरा बयान है और समझने की बात है कि जो लोग अपने को लिबरल या यूं कहें कि होशियार कहते हैं और सब धर्मों का समर्थक कहते हैं, उन्हें ये बयान कुछ अजीब नहीं लग रहे. बंगलादेशी लेखिका जो कई मुल्कों में बैन झेल रही हैं ने आगे कहा कि क़ुरान में बहुत सारी ग़लत बातें हैं. ये भी फ़्री स्पीच है, क्या इस बयान से किसी की भावनाएं तकलीफ में नहीं पहुंचतीं? क्या मुसलामानों की भावनाओं का कोई मतलब नहीं है?
मैं चाहता हूँ कि डॉ ज़ाकिर नाइक और बाक़ी विवादित लोगों की तरह इस पाखंडी लेखिका पर भी जांच बैठनी चाहिए और जब दुनिया के कई देशों में इस लेखिका पर पाबंदी है तो हम क्यूँ इस पाखंडी को झेल रहे हैं.

(अरग़वान रब्बही)