मुस्तइद पूरा में 30 बिस्तरों के दवाख़ाना का वाअदा भी पूरा ना हुआ!

नुमाइंदा ख़ुसूसी– झूट और वाअदा ख़िलाफ़ इंतिहाई बुरी चीज़ है ! लेकिन इस से बदतरीन चीज़ ये है कि इस नीयत के साथ वाअदा किया जाना कि इस पर अमल नहीं करना है और वाअदा के ज़रीया मुख़ातब (संबोधित) (लोगों) को धोका में डाला जाय , जो शेवा बन चुका है आजकल के हमारे सयासी क़ाइदीन और रहनुमा यान क़ौम का । ये बात कि इन के ज़हनों में पैवस्त हो(बैठ) गई है कि अवाम (जनता) का हाफ़िज़ा (याददास्त) बहुत कमज़ोर है । माज़ी की बातें उन्हें याद नहीं रहती और वो अपने कारोबार में इतने मसरूफ़ हैं कि मसाइल (समस्सयाओं) से उन्हें वाक़फ़ीयत नहीं रहती , लेकिन बदलते बवक़्त के साथ सियासतदानों को अपनी इस सोच में तबदीली लाने की ज़रूरत है । इस तरक़्क़ी याफ्ता दौर में हर चीज़ महफ़ूज़ की जाती है ।

इस से उन्हें पूरे शऊर के साथ नपे तुले अलफ़ाज़ में ही किसी सयासी स्टेज से बोलने चाहिये , क्यूँ की अवाम (जनता) एक एक बात नोट करते हैं । सयासी हज़रात की जानिब से किया जाना वाला एक एक वाअदा उन के हाफ़िज़ा (याददास्त) में रहता है और इस वाअदे पर अमल आवरी ना होने की सूरत में अपनी बेदारी का मुज़ाहरा भी करते हैं जिस की वाज़िह मिसाल यूनानी डिसपेंसरी , मुस्तइद पूरा है । संग-ए-बुनियाद के मौक़ा पर इस दवाखाने के लिए 30 बिस्तरों का वाअदा किया गया था लेकिन आज वहां 30 तो दूर की बात एक भी बिस्तर नहीं है । इस दवाखाने का संग-ए-बुनियाद 10 जुलाई 2010 को इस वक़्त के वज़ीर-ए-सेहत (स्वास्थ मंत्री) मिस्टर डी नागेंद्र के हाथों रखा गया था ।

संग-ए-बुनियाद तक़रीब (समारोह) के मौक़ा पर वज़ीर-ए-सेहत (स्वास्थ मंत्री) ने ऐलान किया था कि तक़रीबन 35 लाख रुपय मसारिफ़ (खर्च) से तामीर होने वाली इस दवाखाने की जदीद इमारत में 30 बिस्तरों की सहूलत मुहय्या की जाएगी । क़ारईन की मालूमात के लिए अर्ज़ है कि ये दवाख़ाना बहुत क़दीम है । 62 साल क़ब्ल मुस्तइद यारजंग के पोते हकीम मुनीर उद्दीन ने यूनानी दवाखाने के लिए इस इमारत को वक़्फ़ कर दिया था जो उन की रिहायश गाह थी और 1070 गज़ पर मुश्तमिल थीं । ये इमारत इंतिहाई ख़स्ताहाल हो चुकी थी । लिहाज़ा उस की जगह जदीद इमारत के लिए संग-ए-बुनियाद रखा गया था ।

इस मौक़ा पर वज़ीर-ए-सेहत (स्वास्थ मंत्री) डी नागेंद्र ने यूनानी तरीक़ा-ए-इलाज की एहमीयत पर रोशनी डालते हुए कहा था कि ये तरीक़ा-ए-इलाज इंतिहाई क़दीम(बहुत पुराना) है और ख़ासकर फ़ालिज , लकवा , नसीयाँ , मर्दाना कमज़ोरी के साथ यरक़ान और मर्द-ओ-ख्वातीन के पोशीदा अमराज़ (बीमारीयों) के ईलाज में बहुत मुआविन (फायदे मंद) है और उन्हें इस बात का अंदाज़ा है कि मुस्तइद पूरा के दवाख़ाना से इस तरह के अमराज़ (बीमारीयों) में मुबतला मरीज़ रुजू होंगे । वज़ीर मौसूफ़ ने दवाओं के सालाना बजट को 15 हज़ार से बढ़ाकर 50 हज़ार करने का वाअदा किया था और सेक्रेटरी को हिदायत दी थी कि वो दरकार इक़दामात फ़ौरी शुरू करें लेकिन आज तक इस पर अमल ना हो सका । जो वज़ीर-ए-सेहत (स्वास्थ मंत्री) ने लोगों की भीड़ को मुख़ातब (संबोधित) करते हुए ऐलान किया था कि ये दवाख़ाना 30 बिस्तरों वाला होगा तो उस वक़्त नारे लगे थे और लोगों ने इस ऐलान की सताइश (तारीफ) की थी ।

बादअज़ां काफ़ी ख़ूबसूरत इमारत तामीर की गई जो नतीजा है मुहल्ला के समाजी कारकुनों और दवाखाने से मुताल्लिक़ स्टाफ़ की बार बार नुमाइंदगी और कोशिशों का और 3 मार्च 2012 को वज़ीर-ए-सेहत (स्वास्थ मंत्री) के मुरली मोहन ने इमारत का इफ़्तिताह क्या । अब रोज़ाना तक़रीबन 100 से ज़ाइद मरीज़ मज़कूरा दवाखाने से इस्तिफ़ादा करते हैं । जिन में अक्सरीयत गुर्दे के मरीज़ों की होती है । डाक्टर एम एस मख़दूम अली और डाक्टर शमीम सुलताना जिन के हाथों में अल्लाह ताअला ने काफ़ी शिफ़ा रखा है उन की भरपूर कोशिश है कि तमाम मरीज़ों को बेहतर ईलाज के ज़रीया राहत पहुंचाई जाय ।

लेकिन वज़ीर-ए-सेहत (स्वास्थ मंत्री) के ऐलान पर जब हम ने मुस्तइद पूरा की अवाम (जनता) और दवाखाने के स्टाफ़ से दरयाफ्त किया कि संग-ए-बुनियाद के मौक़ा पर जो वाअदा किया गया था कि ये 30 बिस्तरों वाला दवाख़ाना होगा , इस पर कहां तक अमल हुआ ? इन का जवाब था कि आप ख़ुद दवाख़ाना का मुआइना करके देख लें , हम ने दवाखाने का मुकम्मल जायज़ा ले लिया मगर हमें एक भी बिस्तर नज़र नहीं आया । नीज़ मरीज़ों को शिकायत है कि दवाओं के लिए बजट मुख़तस (आवंटन) बिलकुल नाकाफ़ी है , इस में फ़ौरी इज़ाफ़ा करना चाहिये और नुमाइंदा सियासत ने भी देखा कि इतनी अच्छी इमारत रखने वाले दवाखाने में दवाएं ना के बराबर हैं ।

सिर्फ टेबल पर कुछ दवाएं रखी हुई थीं । नीज़ यहां का मुकम्मल स्टाफ़ 5 अफ़राद पर मुश्तमिल है । इस दवाखाने का बिलकुल वही हाल है , जो कामाटी पूरा , पालम रोड के दावख़ाने का है , जिस के ताल्लुक़ से हम ने अपनी एक रिपोर्ट भी शाए की थी । इस दवाखाने के बाहर भी बोर्ड पर लिखा है कि ये 30 बिस्तरों वाला दवाख़ाना है , जबकि अंदर एक भी नहीं है । काबिल-ए-ग़ौर अमर ये है कि सयासी क़ाइदीन 30 बिस्तरों का ही ऐलान क्यों करते हैं । 1 , 2 , 5 , 10 की बात क्यों नहीं करते । यकलख्त (सीधे) 30 की ही बात क्यों करते हैं । ये बात समझ से बाहर है । एलान 30 का होता है और दवाख़ाना का मुआइना करो तो एक भी नदारद ।

मुस्तइद पूरा के अवाम (जनता) अख़बार सियासत के ज़रीया वज़ीर सेहत से सवाल करते हैं कि संग बुनियाद की तक़रीब (समारोह) के मौक़ा पर 30 बिस्तरों और दवाओं के बजट में इज़ाफ़ा का जो एलान किया गया था आख़िर इस पर आज तक अमल क्यों नहीं हो सका जबकि सैंकड़ों मरीज़ इस दवाखाने से रुजू हो रहे हैं । दवाएं बहुत मुख़्तसर हैं एक दो दिन से ज़्यादा की दवाएं नहीं दी जाती । अवाम (जनता) ने मुतालिबा किया कि हुकूमत को फ़ौरी वाअदे पर अमल करना चाहिये । इस तरह के एलानात से अवाम (जनता) हुकूमत से बेज़ार होती जा रही है । सयासी लीडरान समझते हैं कि अवाम (जनता) की याददाश्त बहुत कमज़ोर है ,

इस लिए उन्हें हथेली में जन्नत दखाओ , झूटे वाअदे करो और गुमराह करो , लेकिन सयासी हज़रात को अब अपनी ये पालिसी बदल देनी चाहिये क्यों कि अवाम (जनता) अब बाशऊर हो चुकी है अब ये झूटे वाअदे चलने वाले नहीं है जो हुकूमत अमली मैदान में पेश पेश रहेगी , अवाम (जनता) उसे ही मुंतख़ब करेगी । दवाख़ाना के एक पड़ोसी जनाब यूसुफ़ ने कहा कि इस तरह झूटे वाअदे करके अवाम (जनता) को बेवक़ूफ़ बनाना कहां तक दरुस्त है ? हम हुकूमत से मुतालिबा करते हैं कि इस दवाखाने में 30 ना सही कम अज़ कम 3 ही बिस्तर डाले जाएं ताकि मरीज़ों को राहत हासिल हो । अगर ऐसा नहीं होता तो आने वाले दिनों में मुस्तइद पूरा की अवाम (जनता) इस का अपने वोट के ज़रीया जवाब देगी ।