मुस्लमानों के मसाइल

क़ौमी सतह पर गुज़श्ता एक हफ़्ता के दौरान मुस्लमानों के मसाइल का मौज़ू छाया रहा। नई दिल्ली में पॉपुलर फ्रंट आफ़ इंडिया का जलसा और मुक़र्ररीन के ख़्यालात की रोशनी में हिंदूस्तानी मुस्लमानों को दरपेश मसाइल और उन की यकसूई के लिए पेश करदा तजावीज़ गौरतलब हैं। दूसरी जानिब आलमी सतह पर मुस्लमानों के सामने उभरते चैलेंज और इस्लामी तालीमात से अटूट वाबस्तगी का अहाता करते हुए मुंबई के सुमय्या ग्रोऊनड पर मुनाक़िदा दस रोज़ा आलमी अमन कान्फ़्रैंस के मुक़र्ररीन ने मुस्लमानों के माज़ी हाल औरमुस्तक़बिल के हालात से हाज़िरीन को वाक़िफ़ करवाया।

इमाम काअबा फ़ज़ीलत उल-शेख़ डाक्टर सऊद बिन इबराहीम अलशरीम ने इस्लाम की अहमीयत को उजागर किया जबकि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड ने मुस्लमानों के मुख़्तलिफ़ हुक़ूक़ के लिए मुल्क गीरमुहिम शुरू करने का ऐलान किया। हर दो जलसों और कान्फ़्रैंस या ख़ुसूसी इजलास में सयासी-ओ-मज़हबी क़ाइदीन ने मुस्लमानों की ज़िंदगी को बेहतर बनाने के उमूर पर तवज्जादी। पार्लीमैंट और असैंबलीयों में मुस्लमानों के लिए ज़्यादा से ज़्यादा नुमाइंदगी के लिए ज़ोर दिया गया। इस बात में सच्चाई है कि जब तक मुस्लमानों को पार्लीमैंट और असमबलीयों में मुनासिब नुमाइंदगी नहीं दी जाय तो उन की ज़ाती ज़िंदगीयां बेहतर होने के लिए जद्द-ओ-जहद की नज़र होती रहेंगी।

तल्ख़ हक़ीक़त ये है कि तमाम ज़िंदगी में मुस्लमानों कीपसमांदगी दूर करने की बातें करने वाले क़ाइदीन ने सिर्फ स्टेज तक ही ख़ुद को मुस्लमानों का हमदरद साबित करने की कोशिश की है। मुस्लमानों ने इस ख़सूस में अब तक कई सयासी पार्टीयों को आज़माया है। अब पार्लीमैंट और असैंबलीयों में मुस्लमानों के लिए तहफ़्फुज़ात देने का मुतालिबा किया जा रहा है तो इस पर अमल आवरी या मुतालिबा कीतकमील की कोई यक़ीन दहानी नहीं होसकती। मुस्लमानों की हालत-ए-ज़ार के बारे में राजिंदर सच्चर कमेटी हो या जस्टिस रंगनाथ मिश्रा कमीशन की रिपोर्टस हर दो रिपोर्ट में मुस्लमानों की हालत ज़िंदगी को हिंदूस्तान के दलितों से अबतर क़रार दिया गया है।

इस कड़वी सच्चाई के बावजूद मुस्लमानों के वोटों पर नज़र रखने वाली पार्टीयों ने उन के हक़ में कोई ठोस क़दम नहीं उठाया। मुस्लमानों की नुमाइंदगी करने वाले भी सिर्फ एक दायरा में रह कर हुकूमत से मुतालिबा करसकते हैं। इन का असर-ओ-रसूख़ स्टेज तक ही महिदूददिखाई देता है। मुस्लमानों के हक़ में ज़्यादा दिन तक नाइंसाफ़ीयों को बर्दाश्त ना करने का ऐलान करने वाले गुज़श्ता 60 साल से यही नारा बुलंद करते आरहे हैं। मुस्लमानों कीमआशी तालीमी, समाजी-ओ-सयासी ज़िंदगी को बेहतर बनाने के मक़सद से हुकूमत ने सच्चर कमेटी और जस्टिस रंगनाथ मिश्रा कमीशन क़ायम किया और उन से रिपोर्ट भी तैय्यार करदी।

अब जबकि दोनों रिपोर्टस हुकूमत के सामने हैं उन पर अमल आवरी के लिए हुकूमत के पास मुसम्मम (पक्का)इरादे का फ़ुक़दान दिखाई देता है। कांग्रेस ने अपने 2009-के इंतिख़ाबी मंशूर में मुस्लमानों के लिए तहफ़्फुज़ात का वाअदा किया था। मगर अब तक वो अपने वाअदा को वफ़ा नहीं करसकी। अगर इस का इरादा नेक होता तो वो मुस्लमानों को कोटा फ़राहम करने के लिए ज़रूरी होतो दस्तूरी तरमीम भी लासकती है। लेकिन ऐसा करने का ख़्याल भी इस के नज़दीक से नहीं गुज़रा। रियास्ती सतह पर केराला, कर्नाटक और आंधरा प्रदेश में जो कुछ कोटा या तहफ़्फुज़ात दिए जा रहे हैं इस ख़ुतूत पर क़ौमी सतह पर तहफ़्फुज़ात का इंतिज़ाम किया जाता तो कई मुस्लमानों को फ़वाइद हासिल होती।

मुस्लमानों से किए गए कांग्रेस के ऐलान और इस के इंतिख़ाबी मंशूर की जानिब जब कभीतवज्जा दिलाई जाती है तो इस के मुस्लिम चेहरे नुमा क़ाइदीन बात को टाल देने या बात का रुख मोड़ने की कोशिश करते हैं। अक़ल्लीयती उमूर की निगरानी का क़लमदान रखने के बावजूद सलमान ख़ुरशीद ने अपनी पार्टी के इंतिख़ाबी वाअदा को पूरा करने पूरा करवाने की कोशिश नहीं की। मुस्लमानों के हालात-ए-ज़िंदगी से मुताल्लिक़ दो मज़बूत रिपोर्टस सामने होने के बावजूद हुकूमत मुस्लमानों के लिए 27 फ़ीसद ओ बी सी कोटा में से ही सिर्फ 6फ़ीसद कोटा देने पर ग़ौर करे तो ये ख़ुलूस-ए-नीयत से आरी जज़बा कहलाएगा। हक़ीक़त तो ये है कि मिश्रा कमीशन की सिफ़ारिशात के मुताबिक़ मुस्लमानों के लिए क़ौमी सतह पर 10 फ़ीसद कोटा का मुतालिबा क़बूल करलिया जाना चाहिये।

मुस्लमानों के मुक़द्दर में अंधेरे नहीं हैं। ताहम उन के मसाइल को बे यक़ीनी कैफ़ीयत से दो-चार करदिया जाय तो क़ौमीपार्टीयां या हुकूमत इस के लिए ज़िम्मेदार होंगी। मर्कज़ में इस वक़्त मुस्लमानों के मसाइलके ताल्लुक़ हुक्मराँ पार्टी कांग्रेस और हुकूमत ने इस मौज़ू पर ख़ुद को दरमयान में फंसा पाया है ख़ास को यूपी में असैंबली इंतिख़ाबात के पेशे नज़र मुस्लमानों के वोटों को हासिल करने की कोशिश करनी है तो कांग्रेस को कुछ अमली काम भी करके दिखाने हैं। लेकिन येअमली काम करने से वो क़ासिर नज़र आती है इस मौज़ू पर पूरी सयासी हुनरमंदी के साथ बयानबाज़ी और कनफ़यूज़न के ज़रीया मुस्लमानों को गुमराह कररही है।

ऐसे में मुस्लमान भी अज़ ख़ुद अपने रोज़मर्रा के हालात-ओ-वाक़ियात पर नज़र डालें तो उन्हें ये हक़ीक़त तस्लीम करनी पड़ेगी कि बहुत सारे मसाइल की वजह वो ख़ुद भी हैं बाक़ौल इमाम काअबा डाक्टर सऊद बिन इबराहीम अलशरीम, मुस्लमानों को अपने दीन-ओ-ईमान को क़वी बनाने की ज़रूरत है। जब ईमान क़वी हो जाय तो मसाइल को हल करने की भी हिम्मत-ओ-हौसला आजाएगा। अपनी बात मनवाने की तरकीब भी समझ में आएगी।