मुस्लमान शादीयों में इसराफ़ से बच कर खुशहाल क़ौम बन सकते हैं

हैदराबाद 14 सितंबर: मुस्लिम मुआशरे में पाई जाने वाली मआशी पसमांदगी को दूर करने का नुस्ख़ा ख़ुद हमारे हाथ में है और अमली क़दम उठा कर ये काम अंजाम दिया जा सकता है। आज मुस्लमान शादी में बेजा रसूमात से लेकर घोड़े जोड़े और दावतों में पुरतकलफ़ ज़ियाफ़तों पर जो दौलत ज़ाए कर रहे हैं अगर वो इन सबको तर्क करते हुए इस्लामी तालीमात के एन मुताबिक़ सादगी से निकाह अंजाम दें तो वो दिन दूर नहीं जब मुसलमानों का शुमार भी खुशहाल  क़ौम में होगा।

इन ख़्यालात का इज़हार ज़ाहिद अली ख़ां एडीटर सियासत ने किया। उन्होंने कहा कि शादी-ओ-बेजा रसूमात में इसराफ़ के बजाये ये रक़म हम अपनी नई नसल की आला तालीम और उन्हें तरक़्क़ी के भरपूर मवाक़े फ़राहम करने पर ख़र्च कर सकते हैं, फिर उस के मुसबित असरात समाज में ज़ाहिर होना शुरू होजाएंगे।

ज़ाहिद अली ख़ां ने कहा कि हैदराबाद में मुस्लिम शादीयों का मसला संगीन नौईयत इख़तियार करता जा रहा है जिसके बाइस मुआशरे में अख़लाक़ी गिरावट और मआशी बदहाली दिन बह दिन बढ़ती जा रही है।

उन्होंने कहा कि इस मसले को सिर्फ मुस्लमान हल कर सकते हैं।ज़ाहिद अली ख़ां एस ए इम्पिरियल गार्डन ( टोली चौकी ) में वालिदैन-ओ-सरपरस्तों के एक पुरहजोम इजतेमा को मुख़ातिब कर रहे थे। उन्होंने कहा कि दु बा दु मुलाक़ात प्रोग्राम का मक़सद सिर्फ रिश्ता तए करना नहीं है बल्कि मुसलमानों की इन बुराईयों को दूर करना है जिसके मुज़ाहिरे हमारी शादीयों में दिखाई देते हैं।

इस के अलावा इस तहरीक का मक़सद मुस्लिम वालिदैन के अंदाज़ फ़िक्र में इस्लामी तालीमात की रोशनी में तबदीली लाना है। उन्होंने इस बात पर अफ़सोस का इज़हार किया कि रिश्तों का इंतेख़ाब भी ज़ाहिरी हुस्न-ओ-सूरत, दौलत-ओ-सर्वत की बुनियाद पर किया जा रहा है जबकि अल्लाह ने दिनदारी को मयार बनाने का हुक्म दिया है।

हमारे प्यारे नबी(स०) ने निकाह को आसान बनाने और शादीयों में इसराफ़ से बचने की तलक़ीन की है लेकिन हम उस के बरअक्स निकाह को पेचीदा और मुश्किल बनारहे हैं। दूसरी तरफ़ बेपनाह फुज़ूलखर्ची के ज़रीये मुआशरे में अदम तवाज़ुन पैदा कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि रिश्तों के इस प्रोग्राम के ज़रीये हमें उमीद हैके हालात तबदील होंगे और मुस्तक़बिल में मुस्लमान अपनी शादीयों और वलीमा की तक़ारीब का सादगी के साथ एहतेमाम करेंगे।