नई दिल्ली : पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम ने देश में कायम हो चुके गहरे पोलोराईज़ेश्न और सांप्रदायिक एवं अन्य लाइनों पर बहसों को गढ़े जाने के चलन पर गंभीर चिंता जताई। उन्होंने यहां एक कार्यक्रम में कहा, किसी मुस्लिम, दलित या बेहद कम जमीन का मालिकाना हक रखने वाले किसी व्यक्ति से बात करें। उनमें बहुत असुरक्षा और भय का माहौल है कि आखिर हम किधर जा रहे हैं, गहरे तौर पर ध्रुवीकृत समाज की तरफ। हम चाहते हैं कि आप इस पर सोचें।
चिदंबरम ने कहा कि अब तक सिर्फ तीन मौके ऐसे आये जब भारत में गहरा ध्रुवीकरण कायम हुआ था। उन्होंने कहा कि ये तीन मौके थे – 1947 में हुआ विभाजन, 1992 में बाबरी मस्जिद शहादत के बाद और तीसरा 2015, जो अब तक के सबसे ध्रुवीकृत सालों में से एक रहा है।
चिदंबरम अपनी किताब स्टैंडिंग गार्ड- ए ईयर इन ऑपोजिशन के विमोचन के बाद बोल रहे थे। यह किताब 2015 में इंडियन एक्सप्रेस अखबार में छपे उनके कॉलम का तालीफ़ है। उन्होंने ने कहा कि जेएनयू में बहस यह है कि क्या कुछ गुमराह नौजवानों ने कथित तौर पर देशद्रोही नारेबाजी की या नहीं की। उन्होंने कहा, यूनिवर्सिटी क्या है। यूनिवर्सिटी कोई मठ नहीं है। मेरी उम्र में, मुझे गलत होने का हक है। किसी यूनिवर्सिटी में मुझे विद्वान नहीं बनना होता है। मुझ पर हंसा भी जा सकता है। लेकिन आप कितने बुरे तरीके से देश में बहस को गढ़ रहे हैं।
पूर्व वित्त मंत्री ने कहा, 2014 कड़वाहट का साल था और मैंने सोचा कि 2015 में इस सब में कमी आएगी, लेकिन 2015 के अंत तक जाते-जाते पता चला कि यह सबसे ध्रुवीकृत साल रहा। आज यह साल गहरे तौर पर ध्रुवीकृत हो चुका है। भारतीय समाज कितना ध्रुवीकृत हो गया है।