मुस्लिम तबक़ा तालीम के शोबे में तवील अर्से से नजरअंदाज़

मुंबई 30 मई (पी टी आई) मुस्लिम बिरादरी को तालीम देने की ज़रूरत पर ज़ोर देते हुए नायाब सदर जम्हूरिया मुहम्मद हामिद अंसारी ने कहा कि हिन्दुस्तान एक असरी, तरक़्क़ी याफ़ता क़ौम बन कर उस वक़्त तक नहीं उभर सकता जब तक कि इस अक़लियत की कसीर(बहुत) तादाद तरक़्क़ी के शोबे में अमली हिस्सा ना ले।
वो मौलाना आज़ाद विचार मंच के ज़ेर-ए‍हतेमाम मुस्लिम तालीमी कान्फ़्रैंस का इफ़्तिताह करने के बाद ख़िताब कररहे थे। उन्होंने कहा कि मुस्लिम तबक़े को दरपेश समाजी । मआशी चैलेंजों का सामना करने के लिए तालीम इंतेहाई अहम है। उन्होंने कहा कि मुस्लिम तबक़े की तरक़्क़ी, ख़ुशहाली और बाइख़तयारी में सब से बड़ी रुकावट तालीम की कमी है।

उन्होंने कहा कि मुस्लिम तबक़े को तवील अर्से से तालीम के सिलसिले में नजरअंदाज़ किया गया है। जिस के नतीजे में ये तबक़ा तालीम के हुसूल से हासिल होने वाले अच्छे नताइज से ख़ुद को महरूम कर चुका है। उन्होंने कहा कि मुस्लमान इंसानी तरक़्क़ी के हर एतबार से सब से पीछे हैं। देही इलाक़े जहां मुस्लमानों की ग़ालिब आबादी है, समाजी और तिब्बी ज़ीरीं ढांचा जैसे स्कूल्स, हिफ़्ज़ान-ए-सेहत मराकिज़, शवारा, तामीर इमकना, डरेंज और सरबराही आब तक रसाई में सब से पीछे हैं।

उन्होंने कहा कि बैंकों से उन्हें बहुत कम क़र्ज़ दिए जाते हैं और जो दिए जाते हैं वो भी नाकाफ़ी होते हैं। हिन्दुस्तान में हालिया बरसों में तेज़ रफ़्तार तरक़्क़ी देखी जा रही है लेकिन तमाम मज़हबी और समाजी ग्रुप्स तरक़्क़ी के अमल के फ़वाइद से मुसावी इस्तेफ़ादा करने से क़ासिर हैं। इन में मुस्लमान जो मुल्क की सब से बड़ी अक़ल्लीयत हैं, इंसानी तरक़्क़ी के हर शोबे में दीगर तमाम से पीछे हैं।

नायाब सदर जम्हूरीया ने इज़हार-ए-अफ़सोस किया कि मर्कज़ी और रियास्ती अवामी ख़िदमात जैसे पुलिस और मुसल्लह अफ़्वाज में इस तबक़े की नुमाइंदगी बहुत कम है। उन्होंने कहा कि तालीम में पसमांदा होने की वजह से वो अपने साथी शहरीयों को हासिल फ़वाइद से महरूम हैं।

हामिद अंसारी ने कहा कि मुस्लिम तबक़े की तालीमी पसमांदगी के नतीजे में इन में बेरोज़गारी और कम आमदनी वाले रोज़गार में शामिल होने के वाक़ियात आम हैं। वो रिवायती कम आमदनी वाले पेशों तक महिदूद हैं और असरी, मुनज़्ज़म बिज़नस शोबे में उनकी नुमाइंदगी कम है।

उन्होंने ख़ुशी ज़ाहिर किया कि प्राइमरी सतह के स्कूलों में दाख़िले की शरह मुस्लमानों में बढ़ रही है। इस से ज़ाहिर होता है कि वो असरी तालीम हासिल करने की शदीद ख़ाहिश रखते हैं। हामिद अंसारी ने मुस्लिम ख़वातीन की तालीम की ज़रूरत पर ज़ोर देते हुए कहा कि हमें ख़वातीन की ख़वांदगी पर तवज्जु मर्कूज़ करनी होगी।

क़ौमी पस-ए-मंज़र में और मुस्लिम तबक़ा जो देही इलाक़ों में मुक़ीम है, लड़कीयां सीनीयर सकैंडरी सतह तक नहीं पहूंच रही हैं। इसका लज़ूम आइद किया जाना चाहीए कि लड़कीयां अपनी तालीम का सिलसिला जारी रख सकीं। उन्होंने कहा कि देही सतह के मरकज़ का क़ियाम ज़रूरी है ताकि स्कूली तालीम तर्क करनेवाली लड़कीयों की शरह में कमी आए। इसका रोज़गार और ख़ानदानों के ज़राए आमदनी पर मुसबत असर मुरत्तिब होगा।