राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली स्थित रामलीला मैदान में दलित मुस्लिम संयुक्त महासंग्राम रैली को संबोधित करते हुए मदनी ने कहा, देश में मुसलामानों से महजब के नाम पर और दलितों से जाति के नाम पर भेदभाव किया जाता है। उन्होंने कहा, अगर हमने सिर्फ अपनी लडाई लड़ी तो हम कभी कामयाब नहीं होंगे, क्योंकि आप अकेले होंगे। और जिस दिन आप दूसरे के बारे में सोचना शुरू कर देंगे, उनके ऊपर होने वाले अन्याय को लेकर अपने दिल में बैचनी महसूस करने लगेंगे, उनकी लड़ाई लड़ना शुरू कर देंगे उस दिन आप अकेले नहीं रहेंगे और एक और एक दो नहीं बल्कि ग्यारह हो जाएंगे। मदनी ने सच्चर आयोग की रिपोर्ट का जिक्र करते हुए कहा, सच्चर कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में साबित किया है कि मुसलमान सबसे निचले पायदान पर हैं। उन्होंने कहा, हुकमरानों के बदलने से हालात नहीं बदलते, कर्म और किरदार के बदलने से हालात बदलते हैं। अपने चरित्र को बदलना पड़ेगा। मदनी ने कहा कि यह हमारा देश है इसकी सुरक्षा करना, इसको आगे बढ़ाना, इसके लिए कुर्बानी देना हमारी जिम्मेदारी है, क्योंकि हम संयोगवश नहीं बल्कि अपनी पसंद से भारतीय हैं। मदनी ने मुस्लिमों से अपील की कि वह इस्लाम के रास्ते पर चलते हुए अपने इलाकों में रहने वाले दलितों के सुख–दुख में शामिल हों।
वहीं दलित नेता और नैकडोर के राष्ट्रीय संस्थापक अशोक भारती ने रैली को संबोधित करते हुए कहा कि अगर दलित–आदिवासी–अल्पसंख्यक साथ आएंगे तो बदलाव जरूर आएगा और यह बात कई लोगों को पसंद नहीं आएगी। उन्होंने कहा कि आज की राजनीति का चरित्र ऐसा हो गया है कि चाहे कोई किसी भी रंग का झंडा उठाता हो लेकिन उसकी राजनीति एक जैसी ही है। भारती ने कहा, जिन लोगों के सामाजिक आर्थिक हित, उनके सांस्कृतिक हित हमारे से टकराते हैं उनके साथ हमारी एकता नहीं हो सकती है। मुस्लिम समाज को आरक्षण देने का समर्थन करते हुए उन्होंने कहा कि मुस्लिम आज हर क्षेत्र में पिछड़ा हुआ है और उसका सरकारी नौकरियों में प्रतिनिधित्व कम है। लिहाजा उन्हें आरक्षण दिया जाए। उन्होंने कहा कि आरक्षण के लिए 50 फीसदी की सीमा अदालत ने तय की है। इसलिए संसद इसे खत्म कर सकती है। उन्होंने नोटबंदी पर कहा कि जनता से चर्चा किए बिना और समाज की हकीकत को समझे बिना सरकार ने रातों–रात नोटबंदी लागू कर दी। इससे 21 मंजिल की इमारत में रहने वाले को कालाधन रखने वाला घोषित नहीं किया बल्कि गरीब और आदिवासियों को कालाधन रखने वाला घोषित कर दिया। भारती ने कहा, इस फैसले का असर यह हुआ कि जिस आदिवासी ने मजदूरी करके 500-1000 रूपये जमा किए वो रातों–रात कालाधन हो गया। उन्होंने सरकार से पूछा कि देश में 75 आदिवासी जिले हैं। उन जिलों में सरकार ने बैंक की कितनी शाखाएं खोली हैं? आदिवासी इलाकों में बैंक नहीं है। जहां सड़के नहीं है वहां बैंक कहां से होंगे।