मुस्लिम नौजवानों को मुआवज़ा

मक्का मस्जिद बम धमाका केस में माख़ूज़ किए गए बेक़सूर मुस्लिम नौजवानों को बिलआख़िर रियास्ती हुकूमत की जानिब से मुआवज़ा अदा किया जाने वाला है । हुकूमत ने मुसलसल काविशों के बाद इस ज़िमन में मुतालिबा को क़बूल करते हुए मुआवज़ा की रक़म का भी ऐलान कर दिया है और अब मुआवज़ा अदा करने की तक़रीब 6 जनवरी को मुनाक़िद होगी ।

इस सिलसिला में मुक़ाम का अभी शायद ताय्युन नहीं हुआ है ताहम ये तए है कि बेक़सूर नव जवानों को जिन्हें अदालत ने बाइज़्ज़त बरी करदिया है मुआवज़ा अदा किया जाएगा और उन्हें किरदार से मुताल्लिक़ सदाक़तनामा भी जारी किया जाएगा । ये सदाक़तनामा इन नौजवानों को मुस्तक़बिल में इंतिहाई कारआमद साबित हो सकता है क्योंकि जिस तरह से इस मुक़द्दमा में ग़लत माख़ूज़ किया गया था इस से समाज में इन बेक़सूर नौजवानों की शबीहा मुतास्सिर हुई थी ।

सदाक़तनामा की इजराई से इस शबीहा को बेहतर बनाने में मदद मिल सकती है । मक्का मस्जिद बम धमाका के मुक़द्दमा में गिरफ़्तारी की वजह से ये नौजवान बेतरह मसाइल का शिकार रहे हैं । उन्हें पुलिस के फ़िकरोपरस्त अनासिर की जानिब से ख़ानगी अज़ीयत ख़ानों में नित नई अज़ीयतें दी गईं ।

उन्हें जिस्मानी तकालीफ़ के इलावा ज़हनी अज़ीयतें देते हुए मज़हब के ख़िलाफ़ रिमार्कस किए गए । उन्हें ग़ैर इंसानी सुलूक के ज़रीया निशाना बनाया गया है । उन बेक़सूर नौजवानों के साथ ऐसा सुलूक किया गया जो इस मुल्क में दस्तूर-ओ-क़ानून के मुताबिक़ संगीन मुजरिमीन के साथ भी नहीं किया जाता ।

ये बात भी ज़हन नशीन रखनी चाहीए कि जो हिन्दू फ़िकरोपरस्त और दहश्तगर्द अनासिर मक्का मस्जिद बम धमाकों और दूसरी दहश्त गिरदाना कार्यवाईयों में मुलव्वस हैं और जिन्हों ने इबतदा में इक़बाल-ए-जुर्म भी करलिया था उन के साथ भी इस तरह का सुलूक नहीं किया गया बल्कि बाज़ मुल्ज़िमीन के साथ तो वे आई पी सुलूक हुआ ।

बेक़सूर नौजवानों को इंसाफ़ दिलाने केलिए समाज के मुख़्तलिफ़ गोशों की जानिब से जद्द-ओ-जहद की गई और क़ौमी अक़ल्लीयती कमीशन के सदर नशीन ने मुआवज़ा की सिफ़ारिश करते हुए एक ऐसा इक़दाम किया था जिस की इस मुल़्क की तारीख़ में कोई नज़ीर नहीं मिलती । हुकूमत को बहालत मजबूरी इन नौजवानों को मुआवज़ा देने की सिफ़ारिश क़बूल करनी पड़ी । अब उन्हें बेहतर किरदार से मुताल्लिक़ सदाक़तनामा भी हुकूमत जारी करेगी ।

जैसे ही इन नौजवानों को मुआवज़ा देने से इत्तिफ़ाक़ कियागया और इस ताल्लुक़ से रियास्ती हुकूमत ने रक़म भी जारी करदी इस के साथ ही ख़ुद हुकूमत में शामिल फ़िकरोपरस्त ज़हनीयत के हामिल वुज़रा सरगर्म होगए और उन्हों ने हुकूमत को इस ऐलान पर अमल आवरी से बाज़ रखने की कोशिश की ।

लेकिन चूँकि हुकूमत की अपनी मजबूरियां हैं इस लिए हुकूमत ने इस दबाव को क़बूल नहीं किया है ताहम ये कहा जा रहा है कि चीफ़ मिनिस्टर मिस्टर किरण कुमार रेड्डी ने वुज़रा के दबाव को देखते हुए ख़ुद इस तक़रीब में शिरकत से गुरेज़ करने का फ़ैसला किया है । ये इक़दाम ग़ैर ज़रूरी दबाव क़बूल करने और इंसाफ़ के तक़ाज़ों की तकमील से गुरेज़ के मुतरादिफ़ है ।

होना तो ये चाहीए था कि ये मुआवज़ा ना सिर्फ चीफ़ मिनिस्टर की मौजूदगी में दिया जाता बल्कि रियासत की पूरी काबीना इस तक़रीब में मौजूद होती ताकि अक़ल्लीयतों के एतिमाद को बहाल किया जा सके और ये तास्सुर दिया जा सके कि इन के साथ जो नाइंसाफ़ी हुई है और बेक़सूर मुस्लिम नौजवानों के साथ जो ज़ुलम हुआ है और उन्हें जो अज़ीयतें दी गई हैं इस पर सारी काबीना को अफ़सोस है ।

लेकिन वोट बैंक की सियासत और फ़िकरोपरस्त ज़हनीयत ने हुकूमत को ऐसा करने से गुरेज़ किया बल्कि ये फ़िकरोपरस्त लॉबी जो महिज़ हिन्दू वोटों के ताल्लुक़ से फ़िक्रमंद रहती है चीफ़ मिनिस्टर को भी इस तक़रीब में शिरकत करने से रोकने में तक़रीबन कामयाबी हासिल कर ली है ।

वोटों की फ़िक्र हर हुकूमत को रहती है कि लेकिन किरण कमार रेडडी ने मुआवज़ा तक़रीब में शिरकत से गुरेज़ का फ़ैसला करते हुए ये नहीं सोचा कि ऐसा करने से उन्हें रियासत में मुस्लिम वोटों से महरूमी का ख़तरा लाहक़ होता है या फिर उन्हों ने ये तास्सुर देने की कोशिश की है कि कांग्रेस पार्टी को मुस्लिम वोटों की ज़रूरत नहीं है ।

अब जबकि हुकूमत ने मुआवज़ा देने की तक़रीब के इनइक़ाद से भी इत्तिफ़ाक़ करलिया है तो ये इंसाफ़ की कामयाबी है । इन्साफ़ रसानी ने जिन जिन गोशों ने कोशिशें की थीं ये उन की कामयाबी है । हुकूमत को क़ौमी अक़ल्लीयती कमीशन की दीगर सिफ़ारिशात पर भी अमल आवरी की कोशिश करनी चाहीए ताकि पुलिस फ़ोर्स में भी जवाबदेही का एहसास पैदा हो सके और मुस्तक़बिल में बेक़सूर मुस्लिम नौजवानों को फ़र्ज़ी मुक़द्दमात में माख़ूज़ करते वक़्त उन्हें मुस्तक़बिल में इस ताल्लुक़ से बाज़पुर्स का ख़ौफ़ रह सके ।

इस के इलावा हुकूमत वाक़्यता अगर इन नौजवानों के साथ इंसाफ़ का इरादा रखती है तो उसे इन नौजवानों को उन की तालीमी क़ाबिलियतों के एतबार से सरकारी मुलाज़मतें भी फ़राहम करनी चाहिऐं । सिर्फ़ चंद रुपये की मंज़ूरी या एक सदाक़तनामा किरदार की इजराई पर हुकूमत की ज़िम्मेदारी ख़तम नहीं हो जाती ।

सरकारी मुलाज़मत फ़राहम की जाती है तो उन नौजवानों को मुस्तक़बिल में समाज के किसी भी गोशा की जानिब से मशकूक नज़रों का सामना करने की अज़ीयत बर्दाश्त करनी नहीं पड़ेगी।