ख़ुसूसी रिपोर्ट-हैदराबाद 1 दिसम्बर नौजवान नसल किसी भी मुआशरे का कीमती सरमाया होते हैं,यही वोक़ुव्वत है जो आने वाली नसलों के रहन सहन और सोच वफ़करमेंतबदेली का सबब बनती है । क़ौमे मुस्लिम में नौजवानों के हवाले से एक ख़ुश आइंद पहलू ये है कि पिछले दो तीन अशरे के मुक़ाबले में अब उनकी सोचो फ़िकर ,रहन सहन और चाल व चलन पर एक एसा रंग हावी होता जा रहा है जिसे आप ज़िंदगी के क़ौस वक़ज़ह में सब से ख़ूबसूरत रंग कह सकते हैं , और वो रंग है मज़हब का।
मुम्किन है आप इसे महिज़ ख़ुशफ़हमी तसव्वुर करें ,मगर जब पिछले चंद अशरों को ज़हन में रखते हुए ,मसाजिद की सफ़ों में नौजवानों की बढ़ती तादाद ,दिनी इजतिमाआत में बढ़ती हुई उनकी मौजूदगी, मज़हबी और इस्लाही तंज़ीमों में उनकी शमूलीयत, और क़ौम वमज़हब केलिए कुछ कर गुज़रने उनके जज़बे का तक़ाबुली जायज़ा लें तो यक़ीनन आप भी यही कहेंगे कि रब क्रीम की रहमत से “भटके हुए आहू को सुए हर्म’’ का पता मिल गया है । मुस्लिम नौजवानों की बदलती हुई इस तस्वीर परनुमाइंदा सियासत ने जब शहर के मुख़्तलिफ़ मकतबे फ़िक्र के उल्मा किराम और दानिश्वरों से बात की तो उनका कहना था कि मुल्की और आलमी सतह पर इस्लाम ओर अहल इस्लाम के ख़िलाफ़ बढ़ता हुआ तास्सुब ,नौजवानों में बढ़ती हुई शरह ख़वांदगी और मज़हबी व इसलाही तनज़ीमों की काविशों का ये समरा है कि माज़ी के मुक़ाबले में मुस्लिम नौजवान मज़हबी उमूर की तरफ़ ज़्यादा माइल होरहे हैं।
मशहूर इस्लामी स्कालर और दर्जनों किताबों के मुसन्निफ़, मौलाना ख़ालिद सैफ उल्लाह रहमानी जनरल सेक्रेटरी इस्लामिक फ़िक़्ह एकेडमी ने सियासत से बात करते हुए कहा कि में इस बात से मुकम्मल इत्तिफ़ाक़ करता हूँ कि माज़ी के मुक़ाबिल मुस्लिम नौजवानों में मज़हबी रुजहान में इज़ाफ़ा हुआ है जो क़ौम-ओ-मिल्लत के हवाले से यक़ीनन एक ख़ुश आइंद पहलू है,इस ख़ुशगवार तबदीलीकी वजूहात पर तबसरा करते हुए उन्हों ने कहा कि उसकी पहली वजह नौजवानों में तालीम का आम होना है चूँकि तालीम आम होने से उन में तहक़ीक़ और ग़ौरोफ़िक्र का मिज़ाज पैदा हुआ और वो मुल्की या आलमी सतह पर होने वाले वाक़ियात-ओ-हादिसात का बारीक बेनी से जायज़ा लेने लगे ।
मौलाना मौसूफ़ ने बाहमी इर्तिबात में इज़ाफ़ा को दूसरी अहम वजह बताते हुए कहा कि ज़राए इबलाग़ और जदीद मुवासलाती निज़ाम ने मुस्लिम नौजवानों को उनके मज़हबी पेशवाओं से राबते को बढ़ा दिया है जहां से वो अपने ज़हन व फ़िकरमें उठने वाले हर सवाल का जवाब हासिल कर लेते हैं। इसके इलावा इस्लाम ओर अहले इस्लाम के ख़िलाफ़ मग़रिबी कुव्वतों के ज़ुल्मोसितम को सब से अहम वजह बताते हुए उन्हों ने कहा कि इस्लाम के ख़िलाफ़ मग़रिब के झूटे प्रोपेगंडे और आलमी सतह पर मुस्लमानों पर होने ज़ुल्मो सितम ने मुस्लिम नौजवानों के ज़हन को झिंझोड़ कर रख दिया है।बाक़ौल उनके , अगर कोई किसी के अपनों को मुसलसल बुराभला कहे तो जिस क़दर बुराभला कहने वाले से नफ़रत होने लगती है इसी क़दर अपनों से मुहब्बत में भी इज़ाफ़ा होने लगता है जोकि एक फ़ित्री अमर है और मुस्लिम नोजवा नों के साथ यही कुछ होरहा है।
सुन्नी दावते इस्लामी के सिटी इंचार्ज , मुफ़्ती अबदुल अज़ीज़ कादरि कामिलुल फ़िक़ह जामिआ निज़ामीया ने सियासत से बात करते हुए कहा कि मज़हब इस्लाम में क़ुदरत ने इसी फ़ित्री लचक रखी है कि जिसे जितनी क़ुव्वत के साथ दबाने की कोशिश की जा रही है ये उतनी ही शिद्दत के साथ लोगों के क़लब-ओ-ज़हन पर छाता जा रहा है। उन्हों ने कहाकि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि मुस्लिम नौजवान ग़ैर इस्लामी तालीमात और लहू लाब में मुलव्वस नहीं हैं, और जुवा,शराब या दीगर मख़रबे अख़लाक़ हरकात से दूर हैं,मगर इस हक़ीक़त से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि माज़ी के मुक़ाबले में आज मसाजिद की सफ़ों में उनकी ही तादाद ज़्यादा नज़र आती है,दिनी इजतिमाआत उन्ही के दम से कामयाब हैं और मज़हबी यहइस्लाही तनज़ीमों की सरगर्मियां उन्ही नौजवानों की मरहून-ए-मिन्नत हैं।
मुफ़्ती मौसूफ़ ने कहाकि जोड़े घोड़े के सबब बन ब्याही बच्चियों केलिए अगर नौजवान ज़िम्मेदार हैं तो उन्ही नौजवानों में उसे कई नौजवान हैं जो सुनत-ए- नबवी पर अमल करते हुए रिश्ता-ए-इज़दवाज में बंधने को तर्जीह दे रहे हैं। बाक़ौल उनके आ ज से पंद्रह बीस साल क़बल मुस्लिम नौजवानों में एक किस्म की एहसास कमतरी पाई जाती थी ख़ास कर मज़हबी कामों की तरफ़ वो बहुत कम राग़िब होते थे , दाढ़ी रखना टोपी पहनना एक मायूब बात समझी जाती थी मगर अलहम्दो लिल्लाह अब हालात में काफ़ी तब्दीलियां आई हैं इस का मुशाहिदा आप कॉरपोरेट कंपनियों ,हॉस्पिटल्स ,स्कूल कॉलिजस ओरे व युनिवरसिटी जैसे असरी इदारों में भी करसकते हैं जहां मौजू द बहुत सारे मुस्लिम नौजवान उसे मिल जाऐंगे जो एहसास फ़ख़रके साथ इस्लामी हुल्या इख़तियार कर रहे हैं।
इसी तरह के ख़्यालात का इज़हारमौलाना अबदुलख़ालिक़ सलफ़ी ने भी किया और कहा कि इस तबदीली के अस्बाब ख़ाह कुछ भी हो , बिलाशुबा ये इंतिहाई ख़ुशगवार तबदीली है जिसकी हरमुमकिन हौसलाअफ़्ज़ाई की जानी चाहीए ।उन्हों ने अपने मुशाहदात की बुनियाद पर बताया कि नमाज़ फ़ज्र में आने वाले मुस्लियों ,दिनी सवालात करने वाले लोगों और इस्लाही सरगर्मियों मे हिस्सा लेने वालों में नौजवानों की तादाद ज़्यादा होती है। उनके मुताबिक़ जारीया साल रमज़ान में मस्जिद मुहम्मदिया फ़तह दरवाज़ा मैं ज़ाइद अज़ 100 अफ़राद मोतकिफ़ हुए थे जिनमें 90 से ज़ाइद मोतकेफ़िन की उमरें 16 से 30 के दरमियान थि ।
उन्होने कहा कि उसे नौजवानों की हौसलाअफ़्ज़ाई करते हुए अल्लाह ताली से ये दुआ करें मौला ताला हर मुस्लिम नौजवान को इस्लामी तर्ज़ हयात का ख़ूगर बनादे और इक़बाल के शाहीन को वो बाल-ओ-पर अता कर दे ,जिसे देख कर ही दुनिया इस्लामी तर्ज़ हयात कि असीर हो जाय।