मुस्लिम परिवार पर झूठे आरोप लगाने पर अकबर ने मांगी माफ़ी और भरा करीब 1.25 करोड़ रूपये का मुआवज़ा

मेल ऑनलाइन अकबर को ‘कैटी होपकिन्स’ के एक लेख के कारण एक मुस्लिम परिवार को £150000 का भुगतान करना पड़ा, गौरतलब है की इस लेख मे होपकिन्स ने ब्रिटिश मुस्लिम परिवार पर उग्रवाद के गलत इलज़ाम लगाये थे।

पिछले साल दिसम्बर में प्रकाशित हुए इस लेख में लिखा था की अमेरिकी अधिकारियों को मुहम्मद तारिक़ महमूद , उनके भाई मुहम्मद ज़ाहिद महमूद और उनके 9  बच्चो को लॉस एंगेल्स  में स्थित डिज्नीलैंड में जाने से रोकने का पूरा हक़ है। इस घटना को सही बताते हुए होपकिन्स ने कहा “की यह दोनों भाई उग्रवादी है और अल-क़ायदा से सम्बन्ध रखते है”|

 

रविवार मध्यरात्रि को जारी किये अपने प्रकाशन में , मेल ने अपनी भूल सुधारते हुए यह लिखा है की – ” हम और होपकिन्स, महमूद परिवार से उनके द्वारा झेली गयी शर्मिंदगी और पीड़ा के लिए माफ़ी मांगते हैं और इस एवज़ मे हम उन्हें पर्याप्त हर्जाना और उनकी कानूनी लागत का भुगतान करेंगे”।

हॉपकिंस ने अपने लेख मे सुझाव दिया था की परिवार ने अपने अमेरिका जाने का कारण झूठा बताया था, और अगर वह लन्दन एयरपोर्ट पर होती तो उन्हें विमान में सवार होने से ही रोक देती। एक सप्ताह बाद आए  अपने अलग लेख मे उन्होंने झूठा दावा किया कि मोहम्मद तारिक महमूद का बेटा हमजा कथित तौर पर एक फेसबुक पेज पर उग्रवादी सामग्री जमा करने के लिए जिम्मेदार है।

 

भाइयों ने कहा कि वे खुश हैं कि उनके एड़ी चोटी का ज़ोर लगाने के बाद मेल और हॉपकिंस ने स्वीकार किया है की उनके आरोप झूठे हैं।”हमे अब तक अमेरिकी अधिकारियों ने यात्रा की अनुमति न देने का कारण नहीं बताया है , परंतु हम यह मान के चल रहे हैं की यह एक त्रुटि या गलत पहचान का मामला है, ” उन्होंने यह बयान अपने वकील कार्टर बल द्वारा प्रदान दिया।

हलाकि ऐसे मामलो मे कोई मदद नहीं मिलती अगर ऐसे इस्लामोफोबिक लेख प्रकाशित होते रहें और इस कारण हमे बहुत परेशानियों और नफरत का सामना करना पड़ा है । हम खुश हैं की अब असलियत सबके सामने आ गयी है ।

होपकिन्स ने ट्विटर पर रात के 2  बजे खुद भी माफ़ी मांगी है । सन के बाद मेल ऑनलाइन ने उन्हें सितम्बर 2015 मे नियुक्त किया गया था जिसके बाद वे अपने विवादपूर्ण लेखों के लिए सुर्ख़ियों मे बनी रही हैं । सन मे लिखे अपने एक लेख मे उन्होंने शरण मांगने वालो की तिलचट्टे से तुलना कर दी थी। इस लेख को सन ने अपनी वेबसाइट से  हटा दिया था। इस लेख के लिए उन्हें संयुक्त राष्ट्र में मानव अधिकार के उच्च आयुक्त ज़ेईड बिन रा’अड़ अल-हुससें से निंदा झेलनी पड़ी थी।