मुस्लिम पर्सनल लाव‌ पर अमल करने का क़ानूनी हक़

उल्मा ने फ़तवा की क़ानूनी हैसियत ना होने सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसला पर शदीद रद्द-ए-अमल का इज़हार किया और कहा कि दस्तूर ने उन्हें मुस्लिम पर्सनल लाव‌ के तहत काम करने की इजाज़त दी है। मुस्लिम पर्सनल लाव‌ बोर्ड के रुक्न ज़फ़र यार जीलानी ने कहा कि हम अदालती निज़ाम के मुतवाज़ी कुछ नहीं कररहे हैं और हम ये भी नहीं कहते कि क़ाज़ी के फ़ैसले के सब पाबंद हैं।

हमारा मक़सद सिर्फ़ ये है कि दो फ़रीक़ैन में बाहमी रजामंदी से शरियत के मुताबिक़ यकसूई की जाये। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लाव‌ बोर्ड रुक्न ख़ालिद रशीद फ़रंगी ने कहा कि दस्तूर के तहत मुसलमानों को ये हक़ है कि वो मुस्लिम पर्सनल लाव‌ के तहत अपने फ़ैसले करें।

हिंदुस्तान के दस्तूर ने हमें मुस्लिम पर्सनल लाव‌ के तहत चलने का हक़ दिया है। किसी को भी ये बात पेशे नज़र रहनी चाहिए कि शरई इतलाक़ क़ानून 1937 में ये वाज़िह तौर पर कहा गया है कि दोनों फ़रीक़ैन मुसलमान हैं और उनका ताल्लुक़ निकाह ,तलाक़ ,ज़िहार , खुला और मुबारात से हो तो फ़ैसला मुस्लिम पर्सनल लाव‌ की रोशनी में किया जाएगा।

उन्होंने कहा कि अदालत के फ़ैसले के तफ़सीली मुताला करने के बाद ही तबसरा किया जा सकता है। सदर कुल हिंद इमाम अइम्मा एसोसीएश‌ण मौलाना मुहम्मद साजिद रशीद ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में दायर करदा दरख़ास्त ख़ुद ग़लत है क्योंकि ये एक मज़हबी मुआमला है।

अगर कोई शख़्स किसी मज़हब का मानने वाला हो तो वो उस की तालीमात पर अमल करता है। अगर एक मुसलमान शरियत पर अमल ना करें तो हक़ीक़ी मुसलमान नहीं होसकता। शीया आलम दीन मौलाना कलब जव्वाद ने कहा कि अगर शरई अदालतों को क़ानूनी मौक़िफ़ दिया जाये तो अदलिया पर बोझ कम होसकता है।