मुस्लिम महिलाओं में बढ़ रही है राजनीतिक जागरूकता, अपनी मर्जी से डालना चाहती हैं वोट

लखनऊ: बदलते राजनीतिक परिदृश्य में महिला मतदाताओं के महत्व से इनकार असंभव है। महिलाओं में बढ़ती राजनीतिक जागरूकता स्पष्ट रूप से यह संकेत दे रही है कि अब महिलाएं भी अपने संवैधानिक और लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए खड़ी हुई हैं। वह समझ रही हैं कि उन्हें अपना वोट किसे देना है और क्यों देना है। न अब वह धर्म के नाम पर वोट डालना चाहती हैं और न ही किसी रिश्ते के दबाव में उसे बर्बाद करना चापती हैं।

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न्यूज़ नेटवर्क समूह प्रदेश 18 के अनुसार मुस्लिम महिलाओं का कहना है कि उन्हें भी अपनी समस्याओं का हल चाहिए. अब वह उत्पीड़न अत्याचार, घुटन और शोषण से बाहर निकलना चाहती हैं। सुरक्षा और विकास की तलाश है। बच्चों के लिए शिक्षा, उज्ज्वल भविष्य और समाज में एक स्थान पाने के लिए उत्सुक हैं। इस मुस्लिम मंत्रियों और अन्य राजनितिक नेताओं और आलिमों का तो सवाल ही क्या अब वह संवैधानिक अधिकार के उपयोग के लिए पति की बात भी मानने को तैयार नहीं।

भारतीय समाज को पुरूष प्रधान समाज यानी पुरुषों के एकाधिकार वाला समाज की कल्पना किया जाता रहा है। इस समाज में महिलाओं के दायरे बड़े सीमित हैं। बात अगर मुस्लिम समाज के हवाले से की जाए तो यह स्थिति अधिक खराब दिखता है।देखा यह गया है कि अधिकांश परिवारों में महिलायें अपना वोट अपने पति या परिवार के ज़िम्मेदार लोगों के कहने पर ही डाला करती हैं। लेकिन अब हालात पहले जैसे नहीं।

भारतीय महिलायें विद्रोही भले ही न हुई हों, लेकिन जागरूक और समझदार जरूर हो गई हैं। अब वह अपने वोट का महत्व समझने लगी हैं और अपना कीमती वोट का उपयोग किसी सामाजिक या धार्मिक रिश्ते के दबाव में नहीं बल्कि अपनी समस्याओं की रोशनी में करना चाहती हैं।हालांकि शहरों और गांवों के स्तर पर यह तस्वीर कुछ अलग दिखता है। साथ ही कई अन्य कारक भी प्रभावित हो रहे हैं। लेकिन यह एक तथ्य है कि जहां शिक्षा अधिक है, वहाँ महिलायें वोट के महत्व को भी अच्छी तरह समझ रही हैं।