मुस्लिम युवाओं का एनकाउंटर खुली हत्या: जमीअत उलेमा

मुंबई। जमीअत उलेमा महाराष्ट्र के अध्यक्ष मौलाना हाफ़िज़ मोहम्मद नदीम सिद्दीकी ने भोपाल जेल से भागने का आरोप लगा कर के मध्यप्रदेश पुलिस द्वारा 8 मुस्लिम युवकों के एनकाउंटर पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इसे खुली हत्या करार दिया है और कहा है कि यह केवल उन मुस्लिम युवाओं का ही नहीं बल्कि न्यायपालिका और जमहूरियत पर हमारा जो भरोसा था, उस की भी हत्या है। अगर इन मुस्लिम युवकों की हत्या ही करनी थी तो उन्हें पिछले तीन सालों से जेल में रखने और अदालती कार्रवाई की जरूरत ही क्या थी।
मौलाना नदीम सिद्दीकी ने कहा कि हमारी एजेंसियों ने मुसलमानों को मारने का यह एक नया तरीका ढूंढ लिया है कि न्यायिक हिरासत के दौरान उन्हें जेल से निकाला जाए और फिर उन्हें भागने का आरोप लगा कर एनकाउंटर के नाम पर उन्हें मार डाला जाए। उन्होंने कहा कि एक साल पहले भी तेलंगाना में सात मुस्लिम युवकों को इसी तरह मार दिया गया था, तथा खनडोह जेल से भागने के आरोप में भी पांच मुस्लिम युवकों को मौत के घाट उतार दिया गया था। उन्होंने कहा कि हम एक लोकतांत्रिक देश में रहते हैं, इस देश के लोकतंत्र और न्यायपालिका में हमारा विश्वास अन्य देशवासियों से अधिक मजबूत है, लेकिन इस तरह की घटनाओं से हमारे इस विश्वास को कमज़ोर किया जा रहा है।

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प्रदेश 18 के अनुसार, जमीअत उलेमा महाराष्ट्र के अध्यक्ष मौलाना हाफ़िज़ मोहम्मद नदीम सिद्दीकी ने कहा कि मुस्लिम नौजवानों के इस सामूहिक हत्या के बाद देश के लोकतंत्र के ऊपर से हमारा विश्वास हिला हुआ है, फिर भी हम उच्च स्तरीय जांच की मांग करते हैं और देश की सर्वोच्च अदालत के सामने यह बात लेकर जाएंगे और पूछेंगे कि क्या वास्तव में, झूठे आरोप में कैद सिमी के यह मुस्लिम युवा इतने खतरनाक थे कि उन्होंने बिना बंदूक के पुलिसकर्मियों पर गोली चलाई थी जैसा कि मध्य प्रदेश के गृहमंत्री ने घोषणा की? हमें अदालत से पूछना होगा कि क्या जेल के इस सेल में जहां जेड सुरक्षा की तीन कतारें मौजूद होती हैं, वहाँ से कोई कैसे बच सकता है और यही नहीं बल्कि एक पुलिसकर्मी को भी उन्होंने मार डाला हो और किसी को कानों कान खबर भी नहीं हुई हो?
उन्होंने कहा कि पुलिस की ओर से उसे एनकाउंटर साबित करने की वैसी ही कोशिश हो रही है, जैसी एक साल पहले तेलंगाना में सिमी से संबंध के आरोप में कैद सात युवाओं को मौत के घाट उतार दिया गया था और उनके मरने के बाद उनके हाथों में बन्दूक पकड़ा दी गई थी। हमें न्याय मिले या न मिले, लेकिन हम इस मामले को सुप्रीम कोर्ट तक ले जाएंगे और कतल की इस साजिश को पूरी तरह उजागर कर दम लेंगे।
यहां यह बात उल्लेखनीय है कि जिन मुस्लिम नौजवानों की हत्या हुई है, उनमें से कई मुस्लिम युवाओं की मुकदमें की पेरवी जमीअत उलेमा महाराष्ट्र कर रही थी और उसकी ओर से अधिवक्ता तहव्वुर खान पठान अदालत में हाजिर हो रहे थे। इन युवाओं पर तीन मामले भोपाल में दर्ज हुए थे जो सिमी से संबंध रखने पर आधारित थे, उन पर अवैध हथियार, पुलिस पर फायरिंग और देश द्रोह के आरोप थे, जिनके बारे में अधिवक्ता तहव्वुर खान पठान का कहना है कि यह ऐसे आरोप थे जिन को साबित करने के लिए पुलिस पास कोई सबूत नहीं था, केवल लचर सिस्टम का सहारा लेकर यह मामला घसीट रहे थे, फिर भी मुकदमा ऐसे मोड़ पर आ गया था कि जहां इन युवकों की रिहाई सुनिश्चित हो गयी थी कि इन सभी को एनकाउंटर में हत्या कर दी गई। अधिवक्ता तहव्वुर खान पठान के अनुसार मुझे इस घटना से गहरा सदमा पहुंचा है क्योंकि इन युवकों के स्वभाव तक मैं जानता था, उनमें से कोई हिंसक नहीं था, बल्कि यह सब न्यायपालिका, कानून और लोकतंत्र पर पूर्ण विश्वास रखने वाले थे और उम्मीद थी कि एक न एक दिन हमारी बेगुनाही साबित हो जाएगी और हम जेल से रिहा हो जाएंगे।
अधिवक्ता खान ने भी इसे प्रकट सरासर कतल करार देते हुए कहा कि जिस तरह आतंकवाद से संबंधित के अन्य मामलों में एजेंसियां कानून के उल्लंघन की दोषी होती हैं, उसी तरह इस मामले में भी हुआ था। यह मुकदमा कानूनी तौर पर स्थापित करने में अभियोजन विफल हो चुका था क्योंकि जिन अदालतों को ऐसे मामलों की सुनवाई का इख्तियार होता है वहाँ यह मुकदमा दाखिल ही नहीं हुआ था, और यह बात मृतकों को मालूम था कि उनका मामला बहुत कमजोर है और वह जल्द से जल्द रिहा होने वाले हैं। ऐसे में उनके जेल से भागने के लिए कोई कारण समझ में नहीं आती। इसके अलावा इन मामलों की जो चार्जशीट अदालत में पेश हुई थी, वह किसी बी ग्रेड फिल्म की कहानी से भी अधिक लचर थी, जो ऐसे बिंदुओं पर आधारित थे जो तर्क की दृष्टि से बहुत बोदे थे। बहरहाल हम इस मामले को देश की सबसे बड़ी अदालत तक ले जाएंगे और मृतकों को न्याय दिलाने की कोशिश करेंगे।