मुस्लिम युवाओं में बढ़ रहा IAS बनने का क्रेज, इस बार रिकार्ड 51 छात्रों ने मारी बाजी

हाल ही में घोषित सिविल सर्विसेज परिणामों में लगातार दूसरे साल 50 से ज्यादा मुस्लिम युवा कैंडिडेट्स ने सिविल सर्विसेज में अपनी जगह बनाई है। इन युवाओं में से 7 ने टॉप 100 में अपना स्थान सुनिश्चित किया है। इन सफल उम्मीदवारों में 14 मुस्लिम छात्राएं भी शामिल हैं, जो मुस्लिम समाज की सोच में आ रहे बदलावों को दिखाता है।

इस साल के सिविल सर्विसेज के आंकड़ों पर गौर करें, तो देश की सबसे कठिन परीक्षा मानी जाने वाले सिविल सर्विसेज में 990 सफल अभ्यर्थियों में से 54 मुस्लिम उम्मीदवारों ने सफलता हासिल की है। यह आंकड़ा 5.15 फीसदी रहा। वहीं, पिछले साल 2016 में यह आंकड़ा 52 था।

इस साल सफल घोषित टॉप 100 उम्मीदवारों में सबसे ऊपर 25वीं रैंक साद मिया खान रहे, समीरा एस (28वीं रैंक), फजलूल हसीब (36वीं रैंक), सलीम साई तेजा (43वीं रैंक), जमील फातिमा जेबा (62वीं रैंक), हसीन जाहेरा रिजवी (87वीं रैंक) और अजहर जिया ने 97वीं रैंक हासिल की। गौरतलब है कि चुने गए 990 उम्मीदवारों में 476 सामान्य वर्ग, 275 ओबीसी, 165 एससी और 74 अभ्यर्थी एसटी कैटेगरी से रहे।
क्या कहते हैं पहले के आंकड़े

वहीं 2016 में सिविल सर्विसेज एग्जाम की फाइनल लिस्ट में 1,099 उम्मीदवारों में से 52 मुस्लिम (4.7 फीसदी) उम्मीदवार ही सफल हो पाए। जबकि टॉप 100 में यह संख्या 10 थी, जो इस साल के मुकाबले ज्यादा थी।

इसी के साथ साल 2015 में 1,078 सफल अभ्यर्थियों में 34 सफल मुस्लिम उम्मीदवार थे। वहीं, 2014 में 1,236 सफल उम्मीदवारों में 38 मुस्लिम अभ्यर्थी थे। साल 2013 में यह आंकड़ा 1,112 कुल सफल कैंडिडेट्स में 34 मुस्लिम उम्मीदवारों का था।

यह आंकड़े बताते हैं कि जिस तरह से इस परीक्षा में मुस्लिम युवाओं का आंकड़ा बढ़ रहा है, उससे जाहिर होता है कि देश की सबसे कठिन परीक्षा में उनकी दिलचस्पी बढ़ रही है। यहां तक कि मुस्लिम समुदाय भी टॉप ब्यूरोक्रेसी में अपनी जगह बनाने के लिए मुस्लिम युवाओं को प्रशिक्षित करने में जुटा है।

मुस्लिम युवाओं में सिविल सर्विसेज का क्रेज बढ़ने के पीछे 2006 में बनी राजिंदर सच्चर कमेटी की रिपोर्ट रही है। तत्कालीन यूपीए सरकार ने दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश राजिंदर सच्चर के नेतृत्व में मुस्लिमों की आर्थिक, सामाजिक और शैक्षणिक दशा का पता लगाने के लिए सच्चर कमेटी बनाई थी। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में पाया था कि टॉप एडमिनिस्ट्रेटिव जॉब्स में मुस्लिमों की भागीदारी मात्र 3 फीसदी ही है।

सच्चर कमेटी ने नवंबर 2006 में संसद में 403 पेज की रिपोर्ट पेश की थी, जिसमें मुसलमानों के बीच पिछड़ेपन की सीमा को दिखाया गया था। जिसके बाद मुस्लिम असमानता पर सार्वजनिक रूप से बातचीत शुरू हुई।

रिपोर्ट के मुताबिक, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के मुकाबले मुस्लिमों में ज्यादा पिछड़ापन है। शिक्षा में कमी के साथ ही, प्रशासनिक सेवाओं और पुलिस बल में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व बेहद कम था।

गौरतलब है कि हाल ही में 94 साल की आयु में जस्टिस राजिंदर सच्चर की मृत्यु हुई है। सच्चर कमेटी की यह रिपोर्ट चौंकाने वाली थी, जिसके बाद 2007 में समाज के प्रमुख लोगों ने मुस्लिम युवाओं में सिविल सर्विसेज के प्रति जागरुकता लाने का काम शुरू किया।

1977 बैच के पूर्व सिविल सेवा अधिकारी सैयद जफर महमूद के मुताबिक, जस्टिस राजिंदर सच्चर के नेतृत्व में बनी सच्चर कमेटी यह रिपोर्ट हम लोगों के लिए आंखें खोल देने वाली थी। वह कहते हैं, पहले 90 फीसदी सरकारी आयोजनों में टॉप ब्यूरोक्रेट्स के हमारे समुदाय की उपस्थिति नाममात्र की हुआ करती थी।

उनके मुताबिक, उन्होंने स्वैच्छिक अवकाश लेने के बाद लगभग 33 जगहों पर मुस्लिम ग्रेजुएट्स और पोस्ट ग्रेजुएट्स स्डेंट्स से मुलाकात की थी। उन्हें बताया था कि सिविल सेवा में धर्म को लेकर कोई भेदभाव नहीं किया जाता, इसमें शफलता प्राप्त करने के लिए बस मेहनत और हुनर चाहिए।
मदरसों में 3 फीसदी ही स्टूडेंट्स

उन्होंने बताया कि मुसलमानों में शैक्षिक पिछड़ेपन के लिए मदरसों को जिम्मेदार ठहराया जाता है, जबकि सच्चाई बिल्कुल उलट है। सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक मात्र 3 फीसदी बच्चे ही मदरसों में पढ़ने के लिए जाते हैं। उन्होंने बताया कि मुस्लिम बहुल आबादी वाले क्षेत्रों में इंफ्रास्ट्रक्चर की बेहद कमी है।

सैयद जफर महमूद 2007 से जकात फाउंडेशन के तहत ‘सर सैयद कोचिंग और गाइडेंस सेंटर’ चला रहे हैं, जो हर साल 50 मुस्लिम छात्रों को स्कॉलरशिप देता है। इस साल उनके संस्थान के 26 मुस्लिम युवाओं ने सिविल सर्विसेज में सफलता हासिल की है।

साभार- ‘अमर उजाला’