मुस्लिम सरगर्मियों पर कड़ी नज़र लेकिन दूसरों के मामले में चश्म पोशी

हैदराबाद । 17 नवंबर (सियासत न्यूज़) पुलिस अपने ग़ैर जानिबदार होने के लाख दावे करे मगर उस की कार्यवायां और जराइम पर रद्द-ए-अमल ये ज़ाहिर करते हैं कि पुलिस का रवैय्या मुख़्तलिफ़ तबक़ात के साथ मुख़्तलिफ़ होता है ।

खु़फ़ीया सरगर्मीयों और मुश्तबा अफ़राद की नक़ल-ओ-हरकत पर नज़र रखने केलिए हैदराबाद पुलिस के पास एक ख़ुसूसी शोबा स्पैशल ब्रांच का है जिस के तहत हनदुवों और मुस्लमानों की मज़हबी सरगर्मीयों पर खु़फ़ीया निगरानी रखने केलिए अलहदा अलहदा सेल क़ायम हैं। यानी हिन्दू कम़्यूनल फ़ील्ड (HCF) और मुस्लिम कम़्यूनल फ़ील्ड (MCF) हैं जबकि मख़सूस कार्यवाईयों केलिए एक अलहदा सेल स्पैशल ऑप्रेशन सेल (SOC) भी मौजूद है ।

अगर ये कहा जाय तो ग़लत नहीं होगा कि स्पैशल ब्रांच के अव्वलु ज़िकर दो सेल की कारकर्दगी में किसी किस्म की मोताबेकत नहीं पाई जाती । अगरचे हिन्दू मज़हबी तंज़ीमों की तादाद और उन की सरगर्मीयां मुस्लिम मज़हबी तंज़ीमों और सरगर्मीयों के मुक़ाबिल कई गुना ज़्यादा हैं मगर स्पैशल ब्रांच के इन दो सेल में मुलाज़मीन की तादाद इस के बरअक्स है ।

यानी हिन्दू कम़्यूनल फ़ील्ड में सिर्फ 10 मुलाज़मीन हैं जबकि मुस्लिम कम़्यूनल फ़ील्ड में 14 मुलाज़मीन हैं । इलावा अज़ीं स्पैशल ऑप्रेशन सेल जिस में 15 मुलाज़मीन है ज़्यादा मुस्लिम तंज़ीमों पर निगरानी पर ही अपनी तवज्जा मर्कूज़ करता है ।जिस में मज़हबी रहनमाआं और दीगर मज़हबी अहम शख़्सियतों की तक़ारीर और ब्यानात का तजज़िया करने केलिए स्पैशल ब्रांच का अमला मसाजिदों और मज़हबी जलसों में भी सादे लिबास में मलबूस दिखाई देता है ।

दूसरी तरफ़ शहर में आर ऐस उसकी शाखाआं और दीगर हिन्दू बुनियाद परस्त तंज़ीमें बशमोल हिन्दू वाहिनी , विश्वा हिन्दू परिषद , बजरंग दल और कई तंज़ीमों की जानिब से मुनाक़िद होने वाले खु़फ़ीया इजलासों की तरफ़ तवज्जा नहीं दी जाती है । मज़हबी सरगर्मीयों के एतबार से मुस्लमानों की सरगर्मीयां बहुत ही महिदूद होती हैं । जबकि हनदिवों की सरगर्मीयां बहुत ज़्यादा होती हैं ।

जहां तक मज़हबी रहनमाआं की सरगर्मीयां और उन की तक़ारीर का ताल्लुक़ है मुस्लिम मज़हबी रहनुमा मज़हबी उमूर में ही मशग़ूल रहते हैं और उन की तक़ारीर भी इश्तिआल अंगेज़ नहीं होतीं जबकि अक्सर हिन्दू मज़हबी रहनुमा की सरगर्मीयां सयासी मक़सद बरारी पर भी मबनी होती हैं और उन की तक़ारीर भी इश्तिआल अंगेज़ होती हैं मगर इन सरगर्मीयों के ताल्लुक़ से मज़कूरा बाला दोनों सेल की रिपोर्टस का जायज़ा लिया जाय तो पता चलेगा कि हिन्दू कम़्यूनल फ़ील्ड की रिपोर्टस सिर्फ ख़ाना परी की हद तक होती हैं और मुश्तबा मज़हबी रहनमाॶं की सरगर्मीयों के ताल्लुक़ से भी जो रिपोर्टस दाख़िल की जाती हैं इन में तमाम अहम नकात को नज़रअंदाज करदिया जाता है ।

इस के बरख़िलाफ़ मुस्लिम कम़्यूनल फ़ील्ड की जानिब से महिकमा को मुदल्लिल-ओ-मुफ़स्सिल रिपोर्टस रवाना की जाती हैं । हता कि इंतिहाई गैर अहम मज़हबी रहनुमा के बारे में मुकम्मल मालूमात इकट्ठा की जाती हैं और उन की सरगर्मीयों पर कड़ी नज़र रखी जाती है । जहां तक स्पैशल ऑप्रेशन सेल की कारकर्दगी का ताल्लुक़ है वो भी सिर्फ मुस्लिम दहश्तगर्द कार्यवाईयों और सरगर्मीयों पर अपनी तवज्जा मर्कूज़ क्या हुआ है ।

अगर इन तीनों सेल्स की कारकर्दगी उन की जानिब से दाख़िल करदा रिपोर्टस और खु़फ़ीया निगरानी का जायज़ा लिया जाय तो मुस्लिम कम़्यूनल फ़ील्ड और स्पैशल ऑप्रेशन सेल ही कारकरद नज़र आएगा । काबिल-ए-ज़िकर अमर ये है कि इन तीनों सेल्स में ग़ैर मुस्लिम मुलाज़मीन हैं और ग़ैर मुस्लिम मुलाज़मीन के ज़रीया मुस्लिम मज़हबी सरगर्मीयों की निगरानी रखी जाती है मगर हिन्दू कम़्यूनल सेल में मुस्लिम मुलाज़मीन को नहीं रखा जाता जिस की वजह से दाख़िल की जाने वाली रिपोर्टस की ग़ैर जांबदारी मशकूक बन जाती है ।

वाज़िह रहे कि मक्का मस्जिद बम धमाकों में हिन्दू बुनियाद परस्त तंज़ीमों का रोल मंज़रे आम पर आने के बाद ही स्पैशल ब्रांच और अनटलीजनस का अमला शहर में इन तंज़ीमों से ताल्लुक़ रखने वाले अफ़राद पर कड़ी नज़र रखने और उन की नक़ल-ओ-हरकत से मुताल्लिक़ इत्तिलाआत हासिल करने में गुरेज़ करता दिखाई दे रहा है ।