मुस्लिम होने के कारण बेगुनाह इशरत को गुजरात पुलिस ने किया था कत्ल: रिहाई मंच

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लखनऊ 2 मार्च 2016। रिहाई मंच ने इशरत जहां मामले में आईबी के पूर्व विशेष निदेशक राजेंद्र कुमार और पूर्व गृह सचिव जीके पिल्लई के बाद अब गृहमंत्रालय के पूर्व अवर सचिव आरवीएस मणि द्वारा इशरत के लश्कर से जुड़े होने के दावों को इशरत हत्या कांड के दोषियों को बचाने के लिए किया जा रहा सुनियोजित नाटक करार दिया है।
रिहाई मंच द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में शाहनवाज आलम और राजीव यादव ने कहा कि इशरत जहां को आतंकी साबित करने की पूरी पटकथा एक सुनियोजित रणनीति के तहत मीडिया के जरिए प्रसारित करवाई जा रही है। रिहाई मंच इशरत मामले में यूपीए को असल दोषी मानता है जिसने खुफिया विभाग द्वारा मुस्लिमों की आतंकी छवि निमार्ण के लिए बेगुनाह इशरत की हत्या करवाई। जिसकी तस्दीक 2009 में आई मैजिस्ट्रेट एसपी तमांग की रिपोर्ट ने भी करते हुए अपने 243 पेज की रिपोर्ट में कहा है कि इशरत जहां बेगुनाह थी और उसकी हत्या सिर्फ इसलिए की गई कि वह मुस्लिम है और गुजरात पुलिस के आतंकवाद की थियोरी में फिट बैठती थी।

रिहाई मंच नेताओं ने कहा कि एक सुनियोजित रणनीति के तहत हेडली के झूठे बयानों के बाद खुफिया और गृहमंत्रालय से जुडे़ रहे अफसरों से बयान दिलवाए जा रहे हैं ताकि इशरत के हत्यारों को बचाने का रास्ता साफ हो सके। इसी रणनीति के तहत इन बयानों के आने के बाद सुप्रीम के वकील और संघ परिवार के कार्यकर्ता एमएल शर्मा ने इस फर्जी मुठभेड़ मामले में गुजरात पुलिस के अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक साजिश का अभियोग खत्म करने के लिए जनहित याचिका दायर कर दी। जिसे आश्चर्यजनक तरीके से मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर और सोहराबुद्दीन शेख तथा तुसली प्रजापति फर्जी मुठभेड़ के आरोपी अमित शाह के वकील रहे यूयू ललित की खंडपीठ ने मोदी भक्ति में अपने ही मैजिस्ट्रेट के फैसले को नकारते हुए याचिका स्वीकार भी कर ली। जो साबित करता है कि सिर्फ राजनीतिक सत्ता ही नहीं न्यायपालिका भी अब खुलकर साम्प्रदायिक नजरिए से की गई हत्याओं के आरोपियों को बचाने के लिए बेशर्मी से आगे आने लगी है।

रिहाई मंच नेताओं ने कहा कि जिस हेडली के बयान पर इशरत को दुबारा लश्कर की आतंकी साबित करने का खेल शुरू हुआ है वह खुद सीआईए और आईएसआई का घोषित एजेंट है और उसने भी इशरत जहां का नाम खुद नहीं लिया बल्कि अभियोजन के वकील ने जबरन उसके मुंह से इशरत का नाम लिवाया। उन्होंने कहा कि हेडली जिसे किसी कीमत पर अमरीका भारत को प्रत्यर्पित नहीं करना चाहता क्यांेकि उससे खुद अमरीकी खुफिया एजेंसियों के भारत विरोधी अभियानों का खुलासा हो जाएगा के बयानों को भारत सरकार और उसकी एजेंसियों द्वारा देववाणी मान लेना साबित करता है कि भारत अपनी जांच एजेंसियों से ज्यादा अमरीका और आईएसआई के घोषित जासूस को विश्वसनीय मानता है। जो देश की सम्प्रभुता को कलंकित करने जैसा है।

पूर्व गृहसचिव जीके पिल्लई के इस बयान पर कि उनपर दबाव डाल कर इशरत जहां के बेकसूर होने की एफिडेविट लिखवाई गई पर टिप्पणी करते हुए रिहाई मंच नेताओं ने कहा कि अगर इशरत जहां का मुठभेड़ सही था तो फिर गुजरात सरकार और पुलिस ने इस मामले को मैनेज करने के लिए 19 नवम्बर 2011 को आपसी बैठक क्यों की जिसमें जजों और गवाहों पर दबाव डालने की रणनीति बनाई गई। जिसका स्टिंग जीएल सिंघल ने किया और जिसे सीबीआई ने ट्रायल कोर्ट को भी सौंपा है। उन्होंने कहा कि इस बैठक में मोदी के करीबी तत्कालीन गृह राज्य मंत्री प्रफुल्ल पटेल के अलावा गुजरात के एडवोकेट जनरल कमल त्रिवेदी, वरिष्ठ आईएएस आॅफिसर जीसी मुर्मू, जीएल सिंघल के वकील रोहित वर्मा, तत्कालीन गृह राज्य विधि मंत्री प्रदीप सिंह जडेजा, पुलिस अधिकारी तरूण बारोट और अहमदाबाद के तत्कालीन क्राईम ब्रांच ज्वाइंट कम्शिनर एके शर्मा शामिल थे। आॅडियो में प्रफुल्ल पटेल यह कहते हुए सुने जा रहे हैं कि उन्होंने इस मामले के जांच अधिकारी सतीश वर्मा को यह जानते हुए भी अपने घर बुलाकर बात की कि ऐसा करने में खतरा है। बैठक में मौजूद लोगों को प्रफुल्ल बता रहे हैं कि उन्होंने वर्मा से चार घंटे से ज्यादा देर तक बात की और कहा कि इस मुठभेड़ में शामिल 18 लोगों की वह मदद करें। वहीं जीएल सिंघल को यह कहते हुए सुना जा सकता है कि यदि हाई कोर्ट एसआईटी रिपोर्ट को स्वीकार कर ले और एर्फआआर दर्ज करने का आदेश दे दे तो जिन पुलिस अधिकारियों ने पहले कहा था कि मुठभेड़ वास्तविक था वे अब मुकर सकते हैं। विभिन्न फर्जी मुठभेडों के़ मामले में लम्बे समय तक जेल में रहे जीएल सिंघल को आगे कहते हुए सुना जा सकता है ‘हम लोगों ने पिछले एक साल में डैमेज कंट्रोल का बहुत ही अच्छा काम किया है। एसआईटी ने 300 लोगों के बयान लिए हैं जिसमें से सिर्फ 2 ही हमारे खिलाफ हैं। 298 बयान हमारे पक्ष में हैं। लेकिन अगर नए सिरे से एफआईआर दर्ज होता है तो उनमें से अधिकतर मुकर सकते हैं’। वहीं आॅडियो में तत्कालीन विधि मंत्री जडेजा यह कहते सुने जा सकते हैं ‘अमित शाह निरंतर केस पर नजर रखे हुए हैं और वे लगातार फोन पर बने हुए हैं’।
शाहनवाज आलम और राजीव यादव ने कहा कि यदि देश में निष्पक्ष न्यायपालिका होती तो मोदी और अमित शाह इशरत जहां की हत्या की साजिश में जेल की सलाखों के पीछे होते। लेकिन न्यायपालिका खुद इन हत्यारों को बचा रही है।

रिहाई मंच प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य अनिल यादव और लक्षमण प्रसाद ने कहा कि रिहाई मंच इंसाफ और कानून का शासन लागू करने और लोकतंत्र पर हो रहे हमलों के खिलाफ 16 मार्च को रिफाहे आम से विधान सभा तक मार्च करने जा रहा है। उन्होंने कहा कि आज के ही दिन 3 साल पहले जियाउल हक की हत्या की गई थी लेकिन हत्यारे आज भी लाल बत्ती में घूम रहे हैं। पूरे प्रदेश को समाजवाद के नाम पर मुलायम सिंह का परिवार लूट रहा है, दंगाई खुलेआम मुसलमानों के जनसंहार का ऐलान कर रहे हैं। सुब्रह्मणियम स्वामी जैसे लोगों को प्रदेश सरकार ने खुली छूट दे दी है कि वे प्रदेश में आकर आजमगढ़ और मऊ जैसे मुस्लिम बहुल इलाकों को आतंक की नर्सरी कहें और तनाव फैला कर चले जाएं। जिसके खिलाफ रिहाई मंच व्यापक जनआंदोलन की जमीन तैयार कर रहा है। रिहाई मंच के नेता विभिन्न जिलों में बैठकें कर जनविकल्प मार्च को सफल बनाने की रणनीति बना रहे हैं।