इस्लाम से मुराद ख़ालिक़ और मख़लूक़ से पुरअमन ताल्लुक़ है। अहकाम इलाहि के तहत इंसानों के साथ भलाई करना एक नेक नसब उलएन है, जो इंसान के दिल-ओ-दिमाग़ को मुतमइन करता है।
डी बी ओलड सारम वेल्टस का कहना है कि मैं दीन ए इस्लाम के पांचों अरकान पर ईमान रखता हूँ, मुझे ये ईमान इस्लामी लेट्रेचर के गहरे मुताला से नहीं, बल्कि अकली तफ़क्कुर के तवस्सुत से हासिल हुआ है। चर्च का अक़ीदा मुझ से तस्लीस पर ईमान लाने का तक़ाज़ा करता है। ईसाई चर्च का कोई भी पादरी तीन ख़दाओं पर ईमान रखने का एतराफ़ नहीं करता, किसी भी पादरी ने तस्लीस की माहीयत के हवाले से मेरे सवालात का तसल्ली बख़श जवाब दिया ना कोई पादरी मुझे इस बात का क़ाइल करसका कि तस्लीस की इबादत कुफ्र पर क़ायम रहने के मुतरादिफ़ नहीं। चुनांचे चंद साल पहले मैंने गिरजे की इबादत में शरीक होना छोड़ दिया था।
मैं मज़हबी किताब (बाइबल) की लफ़्ज़ी तशरीह पर यक़ीन नहीं रखता, जैसा कि प्योरेटीन मसीही यक़ीन रखते हैं। उन्हें इंसानों ने लिखा था, जो बिलाशुबा रुहानी जज्बा से मामूर थे, मगर वो आप और मुझ जैसे इंसान ही थे। इन किताबों के ग़लत तर्जुमे हुए हैं और उन में गलत फहमियां फैलाई गई हैं और हम इन (तहरीफ़ शूदा) किताबों और ख़ुद अपने ज़मीर से रहनुमाई लेने पर मज्बूर होते हैं। मैं दुआ पर यक़ीन रखता हूँ, क्योंकि इस तरह इंसान अपने ज़मीर को रहनुमाई के लिए अल्लाह के सामने पेश कर देता है।
टी यू डेनीयल का कहना है कि सिर्फ शरीयत-ए-मुहम्मदी आलमी अमन-ओ-आश्ती की ज़ामिन है। मैं ये तस्लीम करता हूँ कि इस्लाम और इस के रसूल के बारे में मेरे नज्रियात रिसाला इस्लामिक रिव्यू ने यकसर तब्दील कर दिए हैं। चंद माह क़ब्ल मेरा ख़्याल था कि नबी करीम स.व. ने बजोर ए शमशीर तब्लीग़ दीन की और गु़लामी की वकालत की, मगर अल्लाह का शुक्र है कि अब मुझे हक़ नज़र आगया है। अब मुझे पुख़्ता यक़ीन है कि दुनिया में अमन की वाहिद ज़मानत हज़रत मुहम्मद स.व. का सच्चा दीन है।
टी यू डेनीयल का कहना है कि मुझे क़ुरान हकीम की बलीग़ ज़बान मुतास्सिर करती है। मुझे अपने कूबूल इस्लाम के बारे में लिख कर बहुत ख़ुशी महसूस हो रही है। मैं अपनी इबतेदाई उम्र में भी अक़ीदा तस्लीस के मुताल्लिक़ ताम्मुल में था। मैं ये नहीं समझ सकता था कि अल्लाह ताला इस ज़मान पर (आम इंसानों की तरह) बेटा पैदा कर सकता है। मैं रब ताला को हमेशा दस्तरस से बाहर और क़ादिर-ए-मुतलक़ समझता था। मुझे ईसाईयत के तमाम अनबिया-ए-अलैहिम अस्सलाम से मुहब्बत है और उन का एहतिराम भी करता हूँ, क्योंकि उन्हों ने मुश्किलात में साबित क़दम रह कर अपने अपने इलाक़ों में दीन हक़ की तब्लीग़ की।
मुझे एक अजीब सी बेचैनी महसूस होती थी और इस की वजह से मेरे मुआमलात ना सुधर सके। अब मैंने तक़रीबन निस्फ़ सूरा बक़रा पढ़ ली है। इस कलाम मुक़द्दस में जो बात मुझे बहुत ज़्यादा मुतास्सिर करती है, वो उस की बलाग़त लिसानी और अल्लाह की अज़मत का सबूत है, जिसे क़ुरआन-ए-करीम बार बार पेश करता है।
डेविड (उम्र) निकल्सन का कहना है कि क़ुरान बिलाशुबा वही इलाहि है। क़ुरान हकीम बिलाशुबा अल्लाह ताला की तरफ़ से इंसान की हिदायत के लिए नाज़िल किया गया। (इस्लामिक रिव्यू)