मुहलिक अमराज़ से बरसों नेजात दिलाने वाला तरकिश बाथ …!

(मो.जसीम उद्दीन नेज़ामी) ये बात तस्लीम शूदा है कि कोई भी फ़न हुकूमत की सरपरस्ती और तआवुन के बगैर बुलंदियों को नहीं छू सकता। तिब्ब-ए-यूनानी के हवाले से ये बात वोसूक़(यकीन) से कही जा सकती है कि हुकूमत की जानिब से तिब्ब-ए- मग़रिब ( एलोपैथिक तरीका ईलाज) की तरह अगर तिब्ब-ए-यूनानी को भी अमराज़-ओ-अदवियात के हवाले से रिसर्च और तजुर्बात के लिए इमदाद और जदीद सहूलतें फ़राहम की जातीं ,तवो यूनानी तरीका ईलाज भी आज इंसानियत के हर दुख का मदावा कर रहा होता।

ताहम हुकूमत की नीम दिलाना इमदाद और अदम तवज्जही के बावजूद अगर आज भी अवाम की एक कसीर तादाद इस तरीका ईलाज को ,जोकि आम इंसानों की आदत व मिज़ाज के ऐन मुताबिक़ है,पसंद करती है तो उसे तिब्बे यूनानी के कामयाब तरीका ईलाज के सिवा और क्या कहा जा सकता है। गर्वनमेंट निज़ामीया जनरल हॉस्पिटल (शिफ़ा ख़ाना यूनानी) चारमीनार, उन्ही यूनानी दवा ख़ानों में से एक है जहां सिर्फ आउट पेशंट की हैसियत से यौमिया 800 ता 1500 मरीज़ रुजू होते हैं जबकि 250 बिस्तरों पर मुश्तमिल इस दवाखाने में मरीज़ों के लिए मतलूबा बेड्स भी कम पड़ जाते हैं,

।938 मैं हुज़ूर मीर उसमान अली ख़ान के हाथों क़ायम होने वाले इस अज़ीम उल-शान यूनानी दवाख़ाना में वैसे तो बीसियों अमराज़(बीमारी) के ईलाज किए जाते हैं ….मगर जो चीज़ इस दवाखाने को मुल्क के दीगर दवा ख़ानों से मुमताज़ करती है वो है यहां मौजूद Turkish bath (गर्म हमाम) जो बरसहा बरस तक ख़लक़-ए- ख़ुदा को अपनी ख़ुसूसियात से फ़ैज़याब करता रहा , लेकिन रफ़्ता रफ़्ता अर्बाब-ए-इक़तिदार की अदम तवज्जही का शिकार हो कर आज सिर्फ अपनी बेबसी की दास्तान सुनाने को रह गया है।

कहा जाता है कि ऐसे ऐसे अमराज़ जिस का ईलाज आम दवा खानो में लाखों रुपये ख़र्च करके किया जा ताहे ,उन अमराज़ को भी इस तरकिश बाथ के ज़रीया ठीक किया जा सकता है। आख़िर इस क़दर अहमियत के हामिल तरकिश बाथ जो लाखों मरीज़ों को कई एक तकलीफ दह अमराज़ से निजात दिला सकता है, क्यों बंद पड़ा है ? उसे फिर से मुकम्मल तोर पर कारकरद कियूं नहीं बनाया जाता?आख़िर इसके अहया (रिवाइवल)के लिए कितनी रक़म दरकार है ?और क्या इस बारे में हुकूमत से कभी नुमाइंदगी की गई ? मेरे इन सवालात पर डाक्टर मुहम्मद रफ़ी अहमद सुप्रिन्डेनट आफ़ निज़ामीया जनरल हॉस्पिटल ने कहाकि इस हवाले से हुकूमत से मुतअद्दिद बार नुमाइंदगी की गई लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला ।

उनके मुताबिक़ ,मज़कूरा तरकिश बाथ को मुकम्मल तोर पर फिर से कारकरद बनाने के लिए एक मुहतात अंदाज़े के मुताबिक़ ,सिर्फ ढाई ता तीन लाख रुपये दरकार हैं। बक़ौल उनके, अगरचे अभी भी इस को चंद ईलाज मसलन नोथोल, एस्टीम वगैरह के लिए इस्तिमाल किया जा रहा है ,लेकिन इस तरकिश बाथ को अगर मुकम्मल तौर पर नई ज़िंदगी दे दिजाए तवो वो लाखों मरीज़ों को नई ज़िंदगी अता करने काज़रीआ बन जाऐगा। डाक्टर साहब के मुताबिक़ ,इस तरकिश बाथ के ज़रीया,वज़ा उल मफ़ासिल (जोड़ों का दर्द), मोटापा,फ़ालिज , Spondylosis ( रीढ़ की हड्डी के अमराज़) और लकवा जैसे तकलीफ दह अमराज़ का कामयाब ईलाज किया जा सकता है।

बता या जाता है कि पहले ये तरकिश बाथ पुराना पुल में वाक़ै मियां मुशक महल में मौजूद था जिसे बाद में निज़ामीया जनरल हॉस्पिटल चार मीनार मुंतक़िल कर दिया गया जहां बेला लिहाज़ मज़हब व मिलत लाखों बंदगान खुदाने बरसों इस्तिफ़ादा किया, मगर हुकूमत की बे तवज्जही और अपनों की बेरुख़ी ने यूनानी तरीका ईलाज के इस लाजवाब फ़न से ख़ल्क़-ए-ख़ुदा को महरूम कर दिया,

…सवाल ये है कि इस क़दर अहमियत और ख़ुसूसियत के हामिल शाहकार को ,जिसे हमारे अस्लाफ़ ने क़ायम किया था, क्या उसे हम सिर्फ हुकूमत के रहमो करम पर छोड़ दें ? या शहर के इन कारपोरेटरस और ऐम एल एज़ की नज़रे-करम का इंतिज़ार करें ,जो अपने करोड़ं के फंड्स में से अगर चंद क़तरे निकाल दें तो बरसों से बंद पड़ा ये तरकिश बाथ फिर से बंदगान ख़ुदा को मुहलिक अमराज़ से नजात दिलाने का ज़रीया बन जाय,

या फिर हम जैसे आम अफ़राद में से ही कोई अल्लाह का बंदा ये सोच कर उठ खड़ा हो जाएं, कि ये लाजवाब फ़न जो हमारे अस्लाफ़ की मीरास है ,उसे फिरसे सारे बंदगान ख़ुदा के लिए सरचश्मा शिफ़ा-ए- बनाने ,सदक़ा जारीया के तौर पर अपनी दौलत का एक हिस्सा अता कर देंगे ,ताकि बिरादरान-ए-वतन को भी ये मालूम होजाए कि दौलतमंदमु स्लमानों में सिर्फ वही नहीं जो शादी वलीमा या लहो लअब(खेल कूद) के नाम पर लाखों ख़र्च कर देता है,बल्कि ऐसे भी साहब-ए-सरवत और हस्सास मुस्लमान मौजूद हैं जो अपनी दौलत को तड़पती हुई इंसानियत की भलाई के लिए ख़र्च करने ,मौक़ा की तलाश में रहता है।