मुज़फ्फरनगर। उसके बाद कभी गाँव जाना नहीं हुआ , यह दर्द है मुज़फ्फरनगर दंगों में सब कुछ खो चुके लोमन अली का। साथ ही वह कहता है कि इस नरक में कौन रहना चाहता है। ये दंगे 27 अगस्त 2013 को मुज़फ़्फ़रनगर जिले के कवाल गाँव में जाट -मुस्लिम हिंसा के साथ शुरू हुए जिसके कारण 43 जाने गईं थी। कवाल गाँव में कथित तौर पर जाट समुदाय लड़की के साथ मुस्लिम युवक की छेड़खानी के साथ यह मामला शुरू हुआ उसके बाद लड़की के परिवार के दो जनो गौरव और सचिन ने शाहनवाज नाम के युवक को पीट-पीट कर मार डाला, उसके बाद मुस्लिमों ने दोनों युवकों को जान से मार डाला। इस खबर के फैलते ही मुज़फ़्फ़र नगर, शामली, बागपत और सहारनपुर में दंगा फ़ैल गया था।
घटना के साढ़े तीन साल बाद भी यहाँ से पलायन करने वाले मुस्लिम आज भी यहाँ आने के लिए कतराते हैं। वह कैराना की नाहिद कॉलोनी जो दंगा पीड़ितों के लिए बानी है, में रह रहा है। अली कहते हैं कि जब वह 9 वी की मध्यावधि परीक्षा देने के लिए गया था तो स्कूल से वापस अपने रास्ते पर अपने ही हिंदू दोस्तों ने हमला कर था, जबकि उनके चाचा की मौत हो गई। फ़िलहाल वह मजदूरी करता है जो नियमित नहीं है। उसको उम्मीद है कि 2017 में जरूर नौकरी मिल जाएगी। इन हालात से बाहर निकलने के लिए क्यों नहीं उसको नौकरी दी जाये। पैसा आने के बाद ही उसकी जिंदगी सामान्य हो सकती है। वे यह जगह छोड़कर चले जायेंगे। यह तो हमारे लिए नरक है, यहाँ उन्हें धमकाया जाता है। फ़िलहाल वह उसके पिता, दो भाई, दो सलहज और उनके पांच बच्चों के साथ एक कमरे के घर में रहते हैं।
अली का दर्द यह भी है कि कैसे वह अपनी बेटी की शादी करेगा। दो साल पहले वह इस कॉलोनी में आया था। वह याद करते हुए कहता है कि साल 2013 में उस लड़की से मिला था जिससे शादी हुई थी।उसने सफ़ेद रंग की वैन खरीदी थी तथा कैराना की एक फैक्ट्री में काम करता था।उस दिन मेरी शर्ट का रंग भी सफ़ेद था और वैन का भी सफ़ेद जा उस लड़की को पसंद आ गया था। उसके अब्बा इसके लिए लड़का देख रहे हैं. वह इंटर पास है, मैं पढ़ा लिखा नहीं उसके जितना मगर कमाने लगूंगा तो उसके अब्बा उसका हाथ मुझे दे देंगे, जितना खोना था खो दिया, माँ, घर, चाचू, बस अब उसे पाना चाहता हूं।
( यह रिपोर्ट इंडियन एक्सप्रेस से ली गई है जिसको सियासत के लिए नूरुद्दीन रहमान ने अनुवाद किया है)