मुज़ाकरात और बाहमी तआवुन के ज़रीया चैलेंजों का हल मुम्किन

ज़हीरउद्दीन अली ख़ान कोनया । 13 अक्टूबर । नायब सदरे जमहूरीया हिंद जनाब हामिद अंसारी को बैन-उल-अक़वामी उमूर में नुमायां कारनामा अंजाम देने पर मौलाना रुम यूनीवर्सिटी की एज़ाज़ी डाक्टरेट की डिग्री अता की गई। यही नहीं बल्कि उन्हें कोनया के एज़ाज़ी शहरीयत से भी नवाज़ा गया है। इस मौक़ा पर ख़िताब करते हुए जनाब हामिद अंसारी ने हिंदूस्तान और तुर्की के सदीयों क़दीम तहज़ीबी, सक़ाफ़्ती और तिजारती रवाबित का तज़किरा किया। उन्हों ने कहा कि ये दोनों ममालिक रूहानियत, सूफ़ी अज़म और फ़लसफ़ा के शोबा में मुशतर्का इक़दार के हामिल हैं और किसी तरह की सरहदी पाबंदीयों से आज़ाद हैं। उन्हों ने बताया कि दोनों ममालिक के माबैन सदीयों क़दीम बाहमी रवाबित पाए जाते हैं। मौलाना जलाल उद्दीन रूमी ऒ और हज़रत ख़्वाजा मुईन उद्दीन चिशती ने बारहवीं सदी में रूहानियत और फ़लसफ़ा के इलावा सूफ़ी अज़म की मुस्तहकम बुनियादें रखिं, जिन के समरात आज तक महसूस किए जा रहे हैं। उन्हों ने शायर-ए-मशरिक़ अल्लामा इक़बाल का भी हवाला दिया और कहा कि अदबी शोबा में आप की ख़िदमात को दुनिया भर में तस्लीम किया जाता है। उन्हों ने इंसानी ज़हन और फ़िक्र को तबदील करदिया था। हिंदूस्तान और तुर्की अगरचे दो अलग ममालिक में हैं लेकिन रूहानियत और सूफ़ी अज़म उन्हें विरसा में मिली हैं और यही इक़दार दोनों ममालिक को मुत्तहिद रखती हैं। जनाब हामिद अंसारी ने कहा कि मौजूदा दौर में मुख़्तलिफ़ चैलेंजस से निमटने का वाहिद रास्ता बातचीत और बाहमी तआवुन है। उन्हों ने आलम अरब में जारी बदअमनी-ओ-अवामी एहतिजाज का हवाला देते हुए कहा कि लीबिया, शाम और मिस्र में बैरूनी मुदाख़िलत नहीं होनी चाहिए। इस के बजाय वहां के अवाम को जमहूरी अंदाज़ में अपनी तरक़्क़ी के मुताबिक़ हुकूमत मुंतख़ब करने का मौक़ा फ़राहम किया जाई। उन्हों ने हिंदूस्तान का मौक़िफ़ वाज़िह करते हुए कहा कि वो किसी भी मलिक के दाख़िली उमूर में मुदाख़िलत के ख़िलाफ़ है। उन्हों ने फ़लस्तीन का भी ज़िक्र किया और बताया कि यहां के अवाम इंसाफ़ ना मिलने की वजह से मायूसी का शिकार हैं। इस मुआमला में बैन-उल-अक़वामी बिरादरी को अपनी ज़िम्मेदारी पूरी करनी चाहिए। जनाब हामिद अंसारी ने अक़वाम-ए-मुत्तहिदा में इस्लाहात और नए तक़ाज़ों के मुताबिक़ दीगर ममालिक को भी मुअसिर नुमाइंदगी देने की ताईद की। अफ़्ग़ानिस्तान के मसला पर तुर्की ने 2010 में कान्फ़्रैंस मुनाक़िद की थी लेकिन हिंदूस्तान को मदऊ नहीं किया गया था। ताहम इस्तंबोल में अनक़रीब मुनाक़िद होने वाली कान्फ़्रैंस में हिंदूस्तान को शिरकत की दावत दी जा रही है, जिस से दोनों ममालिक के माबैन मुस्तहकम ताल्लुक़ात का इज़हार होता है। हिंदूस्तान ने ग्लोबलाइज़ेशन की नाकामी और दुनिया में हमा कुतुबी हुक्मरानी के फ़रोग़ का भी तज़किरा किया और कहा कि तरक़्क़ी पज़ीर ममालिक इस मुआमला में अहम रोल अदा करसकते हैं।