यूपी के ज़िला मुज़फ़्फ़रनगर के शामली में हुए तारीख़ी फ़िर्कावाराना फ़साद को तक़रीबन दस माह का अर्सा गुज़र चुका है लेकिन इन आरिज़ी कैम्पों में रह रहे उन हज़ारों मज़लूमीन की हालत आज भी वही है जो उस वक़्त थी बल्कि इस से भी बदतर ज़िंदगी गुज़ारने पर मजबूर हैं ।
पारलीमानी इलेक्शन से क़ब्ल जिस साज़िश के तहत इस पूरे इलाक़े को फ़सादाद की आग में झोंक दिया गया वो किसी से पोशीदा नहीं । इस फ़साद को फ़िर्कावाराना फ़साद के बजाय एक सियासी फ़साद कहा जाये तो ग़लत नहीं होगा क्योंकि रोज़ अव्वल से उस को सियासी रंग देकर इस पर तमाम पार्टीयों ने ख़ूब सियासत की और अपने मुफ़ाद के लिए एक दूसरे को ज़िम्मा दार क़रार दिया लेकिन इन मज़लूमीन को इन इल्ज़ाम तराशी से किया फ़ायदा हुआ ये सवाल सब से अहम है?।
इस फ़साद में सैंकड़ों हलाक और तकरीबन 60 हज़ार से ज़ाइद मुसलमान बेघर हुए जिन में एक बड़ी तादाद आज भी मुख़्तलिफ़ मुक़ामात पर क़ायम आरिज़ी पनाह गज़ीं कैम्पों में नाक़ाबिल बयान हालात में रहने पर मजबूर है और उन लोगों का कोई पुर्साने हाल नहीं ।
इन आरिज़ी कैम्पों में जाने के बाद ये एहसास ही नहीं होता कि फ़सादाद को दस माह गुज़र गए क्योंकि वहां की ज़िंदगीयां ज्यों की त्यों हैं ,वही हंगामी हालात, वही परेशानी और तकलीफ़, जिस का लफ़्ज़ों में इज़हार करना नामुमकिन है । पनाह गज़ीनों के पास आज भी ना सिर छिपाने के लिए जगह है और ना एक वक़्त के खाने का इंतेज़ाम , ना तन ढकने के लिए कपड़े ,ना बच्चों की तालीम के लिए कोई स्कूल या मदरसा ,हर तरफ़ अफ़रातफ़री का माहौल ,जिस ख़ौफ़ और डर की वजह से इन कैम्पों में पनाह लिया था वही घबराहट और दहशत आज भी उन के दिलों में है, कल तक वो जाट से डरते थे और आज सरकारी आफ़िसरान से, क्योंकि आए दिन सरकारी ज़मीन ख़ाली कराने के बहाने ज़िला इंतेज़ामीया की धमकी और सख़्ती ने इन मज़लूमों का जीना दूश्वार कर दिया है ।
अभी हाल ही में कानधला ईदगाह कैंप के बाद रोटन कैंप पर महकमा जंगलात के आफ़िसरान ने अचानक बगै़र किसी इत्तिला के बुलडोज़र चलवा दिया और मुतास्सिरीन पनाह गज़ीनों को सामान तक निकालने का मौक़ा नहीं दिया गया । यहां रह रहे 42 ख़ानदान पर मुश्तमिल तमाम मुतास्सिरीन अब दरख़्तों के साय या फिर खुले आसमान के नीचे अपनी ज़िंदगी गुज़ारने पर मजबूर हैं ।
फ़साद के बाद जिस तरह से दुनिया भर के इंसानी हमदर्दी रखने वाले लोगों ने इन मुस्तहक़्क़ीन की मदद की उस की मिसाल नहीं मिलती है लेकिन इस वक़्ती मदद से उन के मसाएल हल नहीं हुए बल्कि वो आज भी परेशानी और लाचारी में ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं।
हर तरफ़ से उन्हें हिरासाँ किया जा रहा है , सरकारी इम्दाद के नाम पर अब तक इन में से बहुतों को कुछ भी नहीं मिला बल्कि यूपी हुकूमत ने जिस इम्दाद को बांटने की कोशिश की उसे ऊंट के मुँह में ज़ीरा कहा जाये तो बेहतर होगा ।इन कैम्पों में रह रहे लोगों से मिलने और बातचीत करने के बाद यही अंदाज़ा होता है कि वो आज भी उम्मीदों की ज़िंदगी जी रहे हैं ।
सरकारी यक़ीन दहानी के बावजूद अपने घर लौटने पर राज़ी नहीं हैं क्योंकि इस इलाक़े में जिस नफ़रतअंगेज़ माहौल को आम कर दिया गया है, इसे ख़त्म होने में बरसों लग सकते हैं ।यूपी में बरसर-ए-इक़तिदार अखिलेश सरकार ने जिस सौतेले पन के साथ इन मज़लूमों को नज़रअंदाज किया इस का ख़मयाज़ा वो भुगत रही है, और उसे आने वाले वक़्तों में मज़ीद भुगतने के लिए तैयार रहना चाहिए ।
मुलायम सिंह की पार्टी ने मुज़फ़्फ़रनगर फ़साद पर जो रवैय्या अपनाया है वो सिर्फ़ मुतास्सिरीन के साथ धोका नहीं बल्कि पूरी क़ौम के साथ एक मज़ाक़ है और इसी धोका और मज़ाक़ ने उसे पारलीमानी इलेक्शन में नाकामी का स्याह ( काला) दिन देखने पर मजबूर किया है ।
यूपी सरकार आज भी इन कैम्पों में पनाह गज़ीं हज़ारों मुतास्सिरीन को फ़साद मुतास्सिरीन मानने से इनकार कर रही है , ये सरासर ज़्यादती और ना इंसानी नहीं तो और क्या है । मुज़फ़्फ़रनगर फ़साद पर बहुत सारे सरकारी अहकामात जारी किए गए लेकिन आज भी मुसलमानों का क़त्ल-ए-आम करने वाले शरपसंद अनासिर खुले आम घूम रहे हैं।
रियासती हुकूमत की ना अहली ने इस फ़साद के बाद कई ऐसे सवालात खड़े कर दिए हैं ,जिनका जवाब देना सरकार के लिए मुश्किल ही नहीं,नामुमकिन है । अगर अख़लाक़ी तौर पर गुजरात फ़साद के लिए नरेंद्र मोदी को ज़िम्मेदार क़रार दिया जा सकता है, तो फिर मुज़फ़्फ़रनगर फ़साद के लिए अखिलेश को क्यों नहीं ?
मगर मसला सिर्फ़ इल्ज़ाम तराशी का नहीं, बल्कि उन मज़लूमीन के मसाइल हल करने का है , सरकार चाहे जिस की हो, लेकिन हर शहरी को तहफ़्फ़ुज़ फ़राहम करना हुकूमत की अव्वलीन ज़िम्मेदारी होती है , ज़मीनी हक़ीक़त से ऊपर उठ कर अखिलेश सरकार ने जो फ़ैसले लिए उन्हें बचकाना फ़ैसले के इलावा कुछ नहीं कहा जा सकता ।
यूपी में अमन के दुश्मन जिस सोच व फिक्र से काम कर रहे हैं वो इंतिहाई अफ़सोसनाक और तशवीशनाक है इस के ख़िलाफ़ जब तक सख़्त क़ानूनी कार्रवाई नहीं की जाएगी उस वक़्त तक हालात पर क़ाबू पाना बहुत मुश्किल है ।आज भी मग़रिबी उत्तरप्रदेश के अक्सर अज़ला में जाने के बाद यही महसूस होता है कि यहां कभी भी ,किसी भी वक़्त फ़सादाद हो सकते हैं ,क्योंकि फ़सादी के हौसले इतने बढ़ चुके हैं कि उन्हें क़ाबू में करना हुकूमत के लिए आसान नहीं है ।
इन हालात में हुकूमत से ज़्यादा हमारी ज़िम्मेदारी है कि इस पहलू पर ग़ौर व फ़िक्र करें कि आख़िर इन का मुक़ाबला किस तरह किया जाये?जो लोग मुतास्सिरीन और मज़लूमीन हैं उस की किस तरह मदद की जाये ताकि वो चैन व सुकून की ज़िंदगी जी सकें ।रमज़ान उल-मुबारक जैसा ख़ैर व बरकत का महीना शुरू हो चुका है, लेकिन इन मुसलमान भाईयों और बहनों में बहुत से ऐसे भी हैं ,जिन के पास इफ़तार तक के लिए कुछ नहीं है, फ़ाक़ाकशी पर मजबूर हैं,हमारा दीनी , मज़हबी,अख़लाक़ी-ओ-इंसानी फ़रीज़ा है कि हम इन मज़लूमीन की मदद करके इंसानी हमदर्दी का सबूत पेश करें ।
हमारी मिली तंज़ीमों में से, चंद एक को छोड़कर, अक्सरीयत ने मुज़फ़्फ़रनगर फ़साद मुतास्सिरीन के लिए अख़बारी बयानात के इलावा कुछ नहीं किया है, इन तंज़ीमों के ज़िम्मेदारान और दीगर इन तमाम अहल-ए-ख़ैर और मिली दर्दमंदी-ओ-फ़िक्रमंदी से सरशार मुसलमानों का फ़रीज़ा है कि इन मज़लूमीन के मसाइल के हल के लिए आगे आएं, नहीं तो वो आइन्दा इस से भी बदतर ज़िंदगी गुज़ारने पर मजबूर होंगे ,क्योंकि बज़ाहिर उन के हालात बेहतर होने के तवक़्क़ो करना फ़ुज़ूल है ,अगर हम ने अपनी क़ौम इस ज़ख्मख़ुर्दा उज़ू की सेहतयाबी का बेड़ा ख़ुद नहीं उठाया, तो मुस्तक़बिल में उन के सुरों से गुज़रने वाली किसी भी आफ़त के ज़िम्मेदार सरकार से ज़्यादा हम सब ख़ुद होंगे | (शाहनवाज़ बदर क़ासिमी)
———-बशुक्रिया: साहिल आनलाइन