सिर्फ़ अपनी जान रख लिए हैं साथ में बाक़ी सब मर गया। ये अलफ़ाज़ एक 26 साला बेघर मुस्लिम नौजवान मेराज के थे जिन से फ़सादज़दा ज़िला मुज़फ़्फ़रनगर के दो बड़े रीलीफ़ कैम्पों में पनाह लिए हुए मुस्लमानों की सूरत-ए-हाल का अंदाज़ा होता है।
अक्सर पनाह गज़ीन अब भी रीलीफ़ कैम्पों को छोड़कर घर वापिस होने केलिए तैयार नहीं हैं। खेडी पट्टी क़ुतुब-कुतुबी दलहीर करथार खाराड बाड़ी सीसोली मॉरो उड़ा नवाड यडीहा और कैलोरी जैसे क़रीबी मवाज़आत के कई ख़ानदान रीलीफ़ कैम्पों में पनाह लिए हुए हैं। वज़ीर-ए-आज़म मनमोहन सिंह कांग्रेस की सदर सोनिया गांधी और नायब सदर कांग्रेस राहुल गांधी ने यहां पहुंच कर पनाह गज़ीनों से मुलाक़ात की।
बसी क्लास में एक दीनी मदर्रिसा को पनाह गज़ीन कैम्प में तबदील कर दिया गया है। टावली के इस इस्लामिया स्कूल में उन अफ़राद को पनाह दी गई है जो 48 अफ़राद की हलाकत का सबब बनने वाले फ़सादाद के दौरान घर छोड़ने वाले अफ़राद को पनाह दी गई है। अगरचे रियास्ती हुकूमत ने उन मुक़ामात को सहायता शेयर (इमदादी कैंप) का नाम दी है लेकिन वहां मुक़ीम अफ़राद का कहना है कि वो उन मुक़ामात को अपना घर बना लेंगे।
मौज़ा कुतुबी के एक देहाती जमील बसी ने कहा कि वज़ीर-ए-आज़म सोनिया जी और राहुल जी से हम कह चुके हैं कि अब हम अपने घर वापिस नहीं होंगे। वज़ीर-ए-आज़म से बातचीत के दौरान बसी अपने आँसू को रोक नहीं सका। मेराज ने कहा कि में सिर्फ़ अपनी जान बचा सका हूँ बाक़ी सब ख़त्म होगया।
मेरे बाक़ी अफ़राद ख़ानदान का कोई पता नहीं है। में कभी भी अपने घर वापिस नहीं हूँगा 32 साला महमूद हसन ने कहा कि वो मौज़ा पलाडी में अपनी ज़राअत शुरू करने केलिए बेचैन है और हालात के मामूल पर आने का मुंतज़िर है। महमूद हसन ने कहा कि फ़सादाद में वो सिर्फ़ अपने आप को और अपने अरकान ख़ानदान को ज़िंदा बचा पाए हैं बाक़ी सब तबाह-ओ-बर्बाद हो गया है।