पार्लियामेंट और असेम्बलीयों में अरकान मुक़न्निना के किरदार पर फ़िक्रमंदी ज़ाहिर करते हुए नायाब सदर जम्हुरिया मुहम्मद हामिद अंसारी ने कहा कि अख़लाक़ के उसूल और तहज़ीब के मीआर ज़्यादा सख़्त बनाने चाहीए और क़ानूनसाज़ इदारों में उन्हें ज़्यादा सख़्ती के साथ नाफ़िज़ किया जाना चाहीए। वो केरला क़ानूनसाज़ इदारों की 125 वीं सालगिरा के मौक़े पर केरला असेम्बली के ख़ुसूसी इजलास से ख़िताब कररहे थे। उन्होंने कहा कि हालिया अर्से में मिसाली अरकान क़ानूनसाज़ वही तसव्वुर किए जाते हैं जो क़ानूनसाज़ इदारों की कार्रवाई में ख़ललअंदाज़ी करते हैं और शोर-ओ-गुल ख़ास तौर पर ऐवान के वस्त में जमा होकर हंगामा किया करते हैं।
उन्होंने कहा कि ये ग़ैर पारलीमानी तरीक़ेकार है जिसका मनफ़ी असर मुरत्तिब होता है। उन्होंने कहा कि मूसिर रुकन मुक़न्निना की नुमायां ख़ुसूसियत उसकी चीखने चली और ऐवान की कार्रवाई में ख़लल पैदा करने की काबिलियत समझी जा रही है। मुहम्मद हामिद अंसारी ने कहा कि जोश और वलवला क़ाबिल-ए-सिताइश है लेकिन ज़्यादा शोर-ओ-गुल करना और ज़बानी तकरार अरकान मुक़न्निना के वक़ार के ख़िलाफ़ है। लोक सभा , राज्य सभा की औसत सालाना नशिस्तें गुज़िश्ता कई बरसों से इन्हितात पज़ीर हैं। लोक सभा की नशिस्तें ओसन 124.2 और राज्य सभा की 90.5 , 1952 ता 1961 थीं लेकिन इन में मुसलसल इन्हितात पैदा हुआ और 2002 ता 2011 में ये अलतरतीब 70.3 और 69.6 होगईं।
गुज़श्ता कई बरसों के रेकॉर्ड्स से ज़ाहिर होता है कि मुख़्तलिफ़ कार्यवाईयों के लिए मुख़तस वक़्त बराए नाम इस्तेमाल किया जा रहा है। उसकी वजह ये है कि कार्रवाई में ख़ललअंदाज़ी पारलीमानी अमल का मुतरादिफ़ बिन गई है। उन्होंने कहा कि ये कई बरसों से तशवीश की बात बन गई है और इस के नतीजे में अवामी बरहमी पैदा हो रही है। उन्होंने कहा कि सियासी पार्टियों की उमा-ए-पर और उन के इल्म-ओ-इत्तिला के साथ पारलीमानी कार्यवाईयों में ख़ललअंदाज़ी पैदा की जा रही है। उन्होंने कहा कि उसकी वजह से क़ियादत और सियासी पार्टियां अवामी तवज्जु का मर्कज़ बन गई हैं।
आमिला उनकी मुजव्वज़ा कार्रवाई का रास्ता इख़तियार करने पर मजबूर होगया है। अरकान मुक़न्निना की इमतियाज़ी ख़ुसूसियत ऐवान की कार्रवाई को मुअत्तल बना देना होगई है। ये एक बद बख्ताना हक़ीक़त है कि आज उसूल-ओ-क़वाइद की खुल्लम खुल्ला ख़िलाफ़वरज़ी की जाती है। सच्चाई को फ़रामोश कर दिया गया है कि क़वाइद की पाबंदी ज़रूरी है। क़वाइद अब एक ज़िमनी चीज़ बन गए हैं।हामिद अंसारी ने कहा कि हिन्दुस्तान में जम्हूरियत जिसकी जड़ें गहराई तक पैवस्त है नासाज़गार हालात के बावजूद कामयाब है और उसे एक सियासी करिश्मा ही क़रार दिया जा सकता है। ये हमारे अवाम की अक़्लमंदी और बालिग़नज़री को ख़राज तहसीन है।
गुज़िश्ता 15 आम इंतेख़ाबात के दौरान हमारे तजुर्बात से हमारे निज़ाम की कोताहियां उजागर होती हैं। दस्तूर हिंद में पहले माज़ी बाद में ओहदे का उसूल मुक़र्रर किया गया था लेकिन अब वोटों की तादाद ही उम्मीदवारों की साख बन गई है।