लिबर्टी द्वीप पर खड़ी, स्टेचू ऑफ़ लिबर्टी स्वतंत्रता और आत्मज्ञान के लिए अमेरिका के गहरे समर्पण की अभिव्यक्ति है।
यह उन पहली संरचनाओं में से एक है जिन्हें प्रवासियों ने देखा जब वे 1892 से 1954 के बीच एलिस द्वीप पहुँच रहे थे।
इस संरचना को फ्रेंच मूर्तिकार फ्रेडेरिक ऑगस्ट बर्थोल्दी ने डिजाईन किया था, और माना जाता है कि यह मूर्ती स्वतंत्रता की रोमन देवी, लिबर्टस पर आधारित है।
हालाँकि, इस मूर्ती की स्थापना की जड़ें पश्चिम में नहीं थी बल्कि पूर्व में पायी गयी हैं।
सीएनबीसी के अनुसार, “अमेरिकी स्वतंत्रता का सबसे शक्तिशाली प्रतीकों में से एक स्टेचू ऑफ़ लिबर्टी ने एक मुस्लिम महिला के रूप में जीवन शुरू किया” और “यह मूल रूप से मिस्र के एक किसान का प्रतिनिधित्व करने का इरादा था।”
1855 में, बर्थोल्दी ने मिस्त्र की बड़ी प्रतिमाओं का अध्ययन करने के लिए वहां का दौरा किया। कुछ वर्षों बाद, उसने स्वेज नहर के उत्तरी द्वार पर पोर्ट सईद में एक मूर्ति बनाने का इरादा किया।
एनसाइकिलोपेडिया ने इस स्केच को “एक अफ़्रीकी-शैली की महिला छवि” कहा और गृह विभाग के एक ब्यूरो राष्ट्रीय उद्यान सेवा ने अपनी वेबसाइट पर पुष्टि की कि उसने मूल रूप से मशाल पकड़े एक औरत की विशाल प्रतिमा को डिजाईन किया था जिसे उसने ‘मिस्त्र एशिया में प्रकाश लाता है’ कहा था।
स्टेचू ऑफ़ लिबर्टी: एक ट्रान्साटलांटिक स्टोरी, के लेखक एडवर्ड बेरेंसन के अनुसार, इसकी अवधारणा एक विशाल महिला फेल्लाह या अरब किसान की थी, लेकिन उस वक़्त के नेता इस्माइल पाशा के इसमें बेहद खर्चीले होने की वजह से बनाने से मना करने के बाद, यह एक विशाल देवी के रूप में बदल गयी।
जॉर्ज एडम स्मिथ, सीरिया और पवित्र भूमि में लिखते हैं कि फेल्लाहिन (फेल्लाह का बहुवचन) एक मुस्लिम, द्रूज, ईसाई या यहूदी किसान को कहा जा सकता है।
हालांकि, यह देखते हुए कि उन्नीसवीं सदी में मिस्र में मुख्यतः मुस्लिम था, एक परिकल्पना है कि औरत की मूर्ति के मूल स्केच में मिस्त्र की एक मुस्लिम महिला को दर्शाया गया था।
लेकिन, यह जानकारी सभी के लिए आसानी से हज़म करना बेहद मुश्किल है इसलिए वह इसको एक झूठी खबर और प्रोपगंडा मान रहे हैं।